मंगलवार, 18 मई 2021

👉 एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई

🏳️ध्यान से पढ़ियेगा👇

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एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई कि 

ये फिल्म अभिनेता (या अभिनेत्री) ऐसा क्या करते हैं कि इनको एक फिल्म के लिए 50 करोड़ '--

या 100 करोड़ रुपये मिलते हैं?

सुशांत सिंह की मृत्यु के बाद यह चर्चा चली थी कि 

जब वह इंजीनियरिंग का टॉपर था तो फिर उसने फिल्म का क्षेत्र क्यों चुना?

जिस देश में शीर्षस्थ वैज्ञानिकों , डाक्टरों , इंजीनियरों , प्राध्यापकों , अधिकारियों इत्यादि को प्रतिवर्ष 10 लाख से 20 लाख रुपये मिलता हो, 

जिस देश के राष्ट्रपति की कमाई प्रतिवर्ष 

1 करोड़ से कम ही हो-

उस देश में एक फिल्म अभिनेता प्रतिवर्ष 

10 करोड़ से 100 करोड़ रुपए तक कमा लेता है। आखिर ऐसा क्या करता है वह?

देश के विकास में क्या योगदान है इनका? आखिर वह ऐसा क्या करता है कि वह मात्र एक वर्ष में इतना कमा लेता है जितना देश के शीर्षस्थ वैज्ञानिक को शायद 100 वर्ष लग जाएं?

आज जिन तीन क्षेत्रों ने देश की नई पीढ़ी को मोह रखा है, वह है -  सिनेमा , क्रिकेट और राजनीति। 

इन तीनों क्षेत्रों से सम्बन्धित लोगों की कमाई और प्रतिष्ठा सभी सीमाओं के पार है। 

यही तीनों क्षेत्र आधुनिक युवाओं के आदर्श हैं,

जबकि वर्तमान में इनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगे हैं। स्मरणीय है कि विश्वसनीयता के अभाव में चीजें प्रासंगिक नहीं रहतीं और जब चीजें 

महँगी हों, अविश्वसनीय हों, अप्रासंगिक हों -

तो वह देश और समाज के लिए व्यर्थ ही है,

कई बार तो आत्मघाती भी।

सोंचिए कि यदि सुशांत या ऐसे कोई अन्य 

युवक या युवती आज इन क्षेत्रों की ओर आकर्षित होते हैं तो क्या यह बिल्कुल अस्वाभाविक है? 

मेरे विचार से तो नहीं। 

कोई भी सामान्य व्यक्ति धन , लोकप्रियता और चकाचौंध से प्रभावित हो ही जाता है ।

बॉलीवुड में ड्रग्स वा वेश्यावृत्ति, 

क्रिकेट में मैच फिक्सिंग, 

राजनीति में गुंडागर्दी  - भ्रष्टाचार 

इन सबके पीछे मुख्य कारक धन ही है 

और यह धन उन तक हम ही पहुँचाते हैं। 

हम ही अपना धन फूँककर अपनी हानि कर रहे हैं। मूर्खता की पराकाष्ठा है यह।

*70-80 वर्ष पहले तक प्रसिद्ध अभिनेताओं को     

 सामान्य वेतन मिला करता था। 

*30-40 वर्ष पहले तक क्रिकेटरों की कमाई भी 

  कोई खास नहीं थी।

*30-40 वर्ष पहले तक राजनीति भी इतनी पंकिल नहीं थी। धीरे-धीरे ये हमें लूटने लगे 

और हम शौक से खुशी-खुशी लुटते रहे। 

हम इन माफियाओं के चंगुल में फँस कर हम

अपने बच्चों का, अपने देश का भविष्य को

बर्बाद करते रहे।

50 वर्ष पहले तक फिल्में इतनी अश्लील और फूहड़ नहीं बनती थीं।  क्रिकेटर और नेता इतने अहंकारी नहीं थे - आज तो ये हमारे भगवान बने बैठे हैं। 

अब आवश्यकता है इनको सिर पर से उठाकर पटक देने की - ताकि इन्हें अपनी हैसियत पता चल सके।

एक बार वियतनाम के राष्ट्रपति 

हो-ची-मिन्ह भारत आए थे। 

भारतीय मंत्रियों के साथ हुई मीटिंग में उन्होंने पूछा -

" आपलोग क्या करते हैं ?"

इनलोगों ने कहा - " हमलोग राजनीति करते हैं ।"

वे समझ नहीं सके इस उत्तर को। 

उन्होंने दुबारा पूछा-

"मेरा मतलब, आपका पेशा क्या है?"

इनलोगों ने कहा - "राजनीति ही हमारा पेशा है।"

हो-ची मिन्ह तनिक झुंझलाए, बोला - 

"शायद आपलोग मेरा मतलब नहीं समझ रहे। 

राजनीति तो मैं भी करता हूँ ; 

लेकिन पेशे से मैं किसान हूँ , 

खेती करता हूँ। 

खेती से मेरी आजीविका चलती है। 

सुबह-शाम मैं अपने खेतों में काम करता हूँ। 

दिन में राष्ट्रपति के रूप में देश के लिए 

अपना दायित्व निभाता हूँ ।"

भारतीय प्रतिनिधिमंडल निरुत्तर हो गया

कोई जबाब नहीं था उनके पास।

जब हो-ची-मिन्ह ने दुबारा वही वही बातें पूछी तो प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य ने झेंपते हुए कहा - "राजनीति करना ही हम सबों का पेशा है।"

स्पष्ट है कि भारतीय नेताओं के पास इसका कोई उत्तर ही न था। बाद में एक सर्वेक्षण से पता चला कि भारत में 6 लाख से अधिक लोगों की आजीविका राजनीति से चलती थी। आज यह संख्या करोड़ों में पहुंच चुकी है।

कुछ महीनों पहले ही जब कोरोना से यूरोप तबाह हो रहा था , डाक्टरों को लगातार कई महीनों से थोड़ा भी अवकाश नहीं मिल रहा था , 

तब पुर्तगाल की एक डॉक्टरनी ने खीजकर कहा था -

"रोनाल्डो के पास जाओ न , 

जिसे तुम करोड़ों डॉलर देते हो।

मैं तो कुछ हजार डॉलर ही पाती हूँ।"

मेरा दृढ़ विचार है कि जिस देश में युवा छात्रों के आदर्श वैज्ञानिक , शोधार्थी , शिक्षाशास्त्री आदि न होकर अभिनेता, राजनेता और खिलाड़ी होंगे , उनकी स्वयं की आर्थिक उन्नति भले ही हो जाए , 

देश की उन्नत्ति कभी नहीं होगी। सामाजिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक, रणनीतिक रूप से देश पिछड़ा ही रहेगा हमेशा। ऐसे देश की एकता और अखंडता हमेशा खतरे में रहेगी।

जिस देश में अनावश्यक और अप्रासंगिक क्षेत्र का वर्चस्व बढ़ता रहेगा, वह देश दिन-प्रतिदिन कमजोर होता जाएगा। 

देश में भ्रष्टाचारी व देशद्रोहियों की संख्या बढ़ती रहेगी, ईमानदार लोग हाशिये पर चले जाएँगे व राष्ट्रवादी लोग कठिन जीवन जीने को विवश होंगे।

 सभी क्षेत्रों में कुछ अच्छे व्यक्ति भी होते हैं। 

उनका व्यक्तित्व मेरे लिए हमेशा सम्माननीय रहेगा ।

आवश्यकता है हम प्रतिभाशाली,ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, समाजसेवी, जुझारू, देशभक्त, राष्ट्रवादी, वीर लोगों को अपना आदर्श बनाएं।

नाचने-गानेवाले, ड्रगिस्ट, लम्पट, गुंडे-मवाली, भाई-भतीजा-जातिवाद और दुष्ट देशद्रोहियों को जलील करने और सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से बॉयकॉट करने की प्रवृत्ति विकसित करनी होगी हमें।

यदि हम ऐसा कर सकें तो ठीक, अन्यथा देश की अधोगति भी तय है।🙏 

आप स्वयं तय करो सलमान खान, आमिर खान, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, जितेंद्र,हेमा,रेखा, जया देश के विकास में इनका योगदान क्या है हमारे बच्चे मूर्खों की तरह इनको आइडियल बनाए हुए है।

शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

जीवन संगिनी - धर्म पत्नी की विदाई ....

अगर पत्नी है तो दुनिया में सब कुछ है।  राजा की तरह जीने और आज दुनिया में अपना सिर ऊंचा रखने के लिए अपनी पत्नी का शुक्रिया।  आपकी सुविधा असुविधा आपके बिना कारण के क्रोध को संभालती है।  तुम्हारे सुख से सुखी है और तुम्हारे दुःख से दुःखी है।  आप रविवार को देर से बिस्तर पर रहते हैं लेकिन इसका कोई रविवार या त्योहार नहीं होता है।  चाय लाओ, पानी लाओ, खाना लाओ।  ये ऐसा है और वो ऐसा है।  कब अक्कल आएगी तुम्हे? ऐसे ताने मारते हो।

    उसके पास बुद्धि है और केवल उसी के कारण तो आप जीवित है।  वरना दुनिया में आपको कोई भी  नहीं पूछेगा।  अब जरा इस स्थिति की सिर्फ कल्पना करें:

    एक दिन पत्नी अचानक  रात को गुजर जाती है !

    घर में रोने की आवाज आ रही है।  पत्नी का अंतिम दर्शन चल रहा था।

उस वक्त पत्नी की आत्मा जाते जाते जो कह रही है उसका वर्णन:

में अभी जा रही हूँ अब फिर कभी नहीं मिलेंगे

तो मैं जा रही हूँ।

जिस दिन शादी के फेरे लिए थे उस वक्त साथ साथ जियेंगे ऐसा वचन दिया था पर इस तरह अचानक अकेले जाना पड़ेगा ये मुझ को पता नहीं था।

मुझे जाने दो।

    अपने आंगन में अपना शरीर छोड़ कर जा रही हूँ।  

बहुत दर्द हो रहा है मुझे।

लेकिन मैं मजबूर हूँ अब मैं जा रही हूँ। मेरा मन नही मान रहा पर अब में कुछ नहीं कर सकती।

मुझे जाने दो।

    बेटा और बहु रो रहे है देखो। 

    मैं ऐसा नहीं देख सकती और उनको दिलासा भी नही दे सकती हूँ। पोता  बा  बा बा कर रहा है उसे शांत करो, बिल्कुल ध्यान नही दे रहे है।  हाँ और आप भी मन मजबूत रखना और बिल्कुल ढीले न हों।

मुझे जाने दो।

    अभी बेटी ससुराल से आएगी और मेरा मृत  शरीर देखकर बहुत रोएगी तब उसे संभालना और शांत करना। और आपभी  बिल्कुल नही रोना।

मुझे जाने दो।

    जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। जो भी इस दुनिया में आया है वो यहाँ से ऊपर गया है। धीरे धीरे मुझे भूल जाना, मुझे बहुत याद नही करना। और इस जीवन में फिर से काम मे डूब जाना। अब मेरे बिना जीवन जीने की आदत  जल्दी से डाल देना।

मुझे जाने दो।

    आप ने इस जीवन में मेरा कहा कभी नही माना है। अब जिद्द छोड़कर वयवहार में विनम्र रहना। आपको अकेला छोड़ कर जाते मुझे बहुत चिंता हो रही है। लेकिन मैं मजबूर हूं।

मुझे जाने दो।

    आपको BP और डायबिटीज है। गलती से भी मिठा नही कहना अन्यथा परेशानी होगी।  

सुबह उठते ही तो दवा लेना न भूलना। चाय अगर आपको देर से मिलती है तो बहु पर गुस्सा न करना। अब में नहीं हूं यह समझ कर जीना सीख लेना।

मुझे जाने दो।

    बेटा और बहू कुछ बोले तो

चुपचाप सब सुन लेना। कभी गुस्सा नही करना। हमेशा मुस्कुराते रहना कभी उदास नही होना। 

मुझे जाने दो।

    अपने बेटे के बेटे के साथ खेलना। अपने दोस्तों  के साथ समय बिताना। अब थोड़ा धार्मिक जीवन जिएं ताकि जीवन को संयमित किया जा सके। अगर मेरी याद आये  चुपचाप रो लेना लेकिन कभी कमजोर नही होना।

मुझे जाने दो।

    मेरा रूमाल कहां है, मेरी चाबी कहां है अब ऐसे चिल्लाना नही। सब कुछ ध्यान से रखने और याद रखने की आदत करना। सुबह और शाम नियमित रूप से दवा ले लेना। अगर बहु भूल जाय तो सामने से याद कर लेना। जो भी खाने को मिले प्यार से खा लेना और गुस्सा नही करना।

मेरी अनुपस्थिति खलेगी पर कमजोर नहीं होना।

मुझे जाने दो।

    बुढ़ापे की छड़ी भूलना नही और  धीरे धीरे से चलना।

यदि बीमार हो गए और बिस्तर में लेट गए तो किसी को भी सेवा  करना पसंद नहीं आएगा।

मुझे जाने दो।

    शाम को बिस्तर पर जाने से पहले एक लोटा पानी माँग लेना।  प्यास लगे तभी पानी पी लेना।

अगर आपको रात को उठना पड़े तो अंधेरे में कुछ लगे नही उसका ध्यान रखना।

मुझे जाने दो।

    शादी के बाद हम बहुत प्यार से साथ रहे। परिवार में फूल जैसे बच्चे दिए। अब उस फूलों की सुगंध मुझे नही मिलेगी।

मुझे जाने दो।

    उठो सुबह हो गई अब ऐसा कोई नहीं कहेगा। अब अपने आप उठने की आदत डाल देना किसी की प्रतीक्षा नही करना।

मुझे जाने दो।

    और हाँ .... एक बात तुमसे छिपाई है मुझे माफ कर देना।

आपको बिना बताए बाजू की पोस्ट ऑफिस में बचत खाता खुलवाकर 14 लाख रुपये जमा किये है। मेरी दादी ने सिखाया था। एक एक रुपया जमा कर के कोने में रख दिया। इसमें से पाँच पाँच लाख बहु और बेटी को देना और अपने खाते में चार लाख रखना आपके लिए।

मुझे जाने दो।

    भगवान की भक्ति और पूजा करना भूलना नही। अब  फिर कभी नहीं मिलेंगे !!

मुझसे कोई भी गलती हुई हो तो मुझे माफ कर देना।


मुझे जाने दो

मुझे जाने दो

🙏🙏

रविवार, 4 अक्तूबर 2020

👉 आसक्ति

प्रभु को यदि पाना है तो सब आसक्तियों को छोड़कर निर्वैर हो जाओ।

    भक्ति रसामृत सिंधु में आता है कि कामना ही राक्षसी है, ये जानता हुआ भक्त भगवान् या  भगवान् की भक्ति के अलावा और कोई भी कामना नहीं करता।  प्रभु को यदि पाना है तो सब आसक्तियों व कामनाओं को छोड़कर निर्वैर हो जाओ, प्रभु शीघ्र मिल जायेंगे। 

    जिसे एक गिलास पानी की भी आवश्यकता न हो, और न ही किसी से बात करने या बोलने की अपेक्षा हो, वो भक्त शान्त और निर्भय हो जाता है।  जैसे वर्षा पड़ने पर घास स्वतः उत्पन्न हो जाती है, उसी तरह आसक्तियों व कामनाओं को छोड़ने पर चारों ओर फिर प्रभु ही दिखाई देंगे। बिना आसक्ति छोड़े भगवद् भजन नहीं होता। 

    आसक्ति की रस्सी दिखाई नहीं देती है, परन्तु वह इतनी लम्बी होती है कि उसकी कोई सीमा नहीं है। आप अमेरिका में बैठे हैं, और आसक्ति की रस्सी वहीं से बाँधकर आपको ले आयेगी।  साधक को अपनी वृत्तियों को बचाकर रखना चाहिए।  यदि वृत्तियाँ  बँट गयीं तो साधक लुट जायेगा।  वृत्तियों के बँटने के बाद कुछ भी जप, तप व पाठ आदि करते रहो, कुछ नहीं मिलने वाला।  अपनी वृत्तियों को सब जगह से हटाकर एक श्री कृष्ण में लगा दो। जब तक कहीं भी आसक्ति है, चाहे थोड़ी ही क्यों न हो, तब तक वहाँ श्री कृष्ण प्रेम नहीं होता है।  

    प्रेम की उत्पत्ति तब ही होती है, जब जीव सब आसक्तियों को छोड़ देता है। इसलिए गोपियों ने श्री कृष्ण से कहा था कि हम सब कुछ छोड़कर तुम्हारे पास आयीं हैं। अपनी सब आसक्तियों को छोड़कर आयीं हैं। क्यों छोड़कर आयीं हैं ? तुम्हारी उपासना की आशा से। 


मैवं विभो अहर्ति.....   भजते मुमुक्षून्||  श्रीमद्भागवत 10-29-31

देवहूति जी ने कहा-

संगो  य:  संसृते..... .... कल्पते||   श्रीमद्भागवत 03-23-55

    आसक्ति बहुत ख़राब है, परन्तु आसक्ति से अच्छी वस्तु भी कोई नहीं। यदि आसक्ति महापुरुषों में हो जाय तो निश्चित कल्याण हो जाता है। यदि ये आसक्ति संसार से नहीं छूटती है तो इसको महापुरुषों से बाँध दो। तुम्हारा अवश्य कल्याण हो जायेगा। 

प्यार में ये सब कहाँ तक सही है...????



लड़के ने नम्बर मांगा आप ने दे दिया... 

लड़के ने तस्वीर मांगी आप ने दे दी...

लड़के ने वीडियो कॉल के लिए कहा आप ने कर ली...

लड़के ने दुपट्टा हटाने को कहा आप ने हटा दिया...

लड़के ने कुछ देखने की ख्वाहिश की आप ने पूरी कर दी...
लड़के ने मिलने को कहा आप माँ बाप को धोखा देकर आशिक़ से मिलने पहुंच गयीं...

लड़के ने बाग में बैठ कर आप की तारीफ़ करते हुए आपको सरसब्ज़ बाग दिखाए आपने देख लिये...
फिर जूस कार्नर पर जूस पीते वक़्त लड़के ने हाथ लगाया, इशारे किये, मगर कोई बात नहीं अब नया ज़माना है यह सब तो चलता ही है...
फिर लड़के ने होटल में कमरा लेने की बात की, आप ने शर्माते हुए इंकार कर दिया, कि शादी से पहले यह सब अच्छा तो नहीं लगता न...
फिर दो तीन बार कहने पर आप तैयार हो गयीं होटल के कमरे में जाने के लिए...

आप दोनों ने मिल कर खूब एंजॉय किया...
अंडरस्टेंडिंग के नाम पर दुल्हा दुल्हन बन गए बस बच्चा पैदा न हो इस पर ध्यान दिया...
फिर एक दिन झगड़ा हुआ और सब खत्म क्योंकि हराम रिश्तों का अंजाम कुछ ऐसा ही होता है...

लेकिन लेकिन...
यहां सरासर मर्द गलत नहीं है, वह भेड़िया है, वह मुजरिम है, वह सबकुछ है...
क्योंकि आप ने तो तस्वीर नहीं दी थी वह जबर्दस्ती आपके मोबाइल में घुस कर ले गया था...
आप ने तो अपना नम्बर नहीं दिया वह लड़का खुद आप के मोबाइल से नम्बर ले गया था...
आप ने तो वीडियो कॉल नहीं की वह लड़का खुद आप के घर पहुंच गया था आपको लाइव देखने...
जूस कार्नर पर भी जबरदस्ती ले गया था गन प्वाइंट पर...
होटल के कमरे तक भी वह आपको जबर्दस्ती आपके घर से ले गया था...

तो मुजरिम तो सिर्फ लड़का है आप तो बिल्कुल भी नहीं...
बच्ची हैं आप कोई चार साल की?
आपको समझ नहीं आती?

यह कचरे में पड़ी लाशें देख कर भी आपको अक़्ल नहीं आती?
यह बिना सर के मिलने वाले धड़ आपकी अक़्ल पर कोई चोट नहीं देते?
यह सोशल मीडिया पर आए दिन ज़्यादती के बढ़ती हुई घटना आपको कुछ नहीं बताती?
जूस कार्नर पर जाना, अपनी नंगी तस्वीर किसी गैर आदमी या लड़के को देना...
आपको नहीं पता था कि एक होटल के कमरे में या चारदीवारी में जिस्मों की प्यास बुझाई जाती है, 
सब पता था आपको, सब पता है आपको...
होटल के कमरे में मुहब्बत के अफसाने नहीं लिखे जाते,वहां कोई इबादत नही होती है

फिर शिकायत होती है के चार लड़कों ने ग्रुप रेप कर दिया... 
क्या लगता है वह आपका जो आपकी इज्ज़त का ख्याल रखे जो खुद आपको इसी मकसद के लिए लेकर जा रहा है?

अपनी सीमा में रहेंगी तो आपको कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता...
जिस्म के भूखो से दूर ही रहे लड़का हो या लड़की जब तक तुम साथ नही दोगी तब तक किसी लड़के की कोई औकात नही हैं कि वो तुम्हे किसी होटल के रूम तक ले जा सके।

🙏🙏🙏

शनिवार, 3 अक्तूबर 2020

माँ का पल्लू ....

मुझे नहीं लगता कि आज के बच्चे यह जानते होगे  कि पल्लू क्या होता है, 

इसका कारण यह है 

कि आजकल की माताएं अब साड़ी नहीं पहनती हैं।

 पल्लू बीते समय की बातें हो चुकी है।

माँ के पल्लू का सिद्धांत माँ को गरिमा मयी छवि प्रदान प्रदान करने के लिए था। लेकिन इसके साथ ही, यह गरम बर्तन को चूल्हा से  हटाते समय गरम बर्तन को पकड़ने के काम भी आता था।

पल्लू की बात ही निराली थी। पल्लू पर कितना ही लिखा जा सकता है।

साथ ही पल्लू बच्चों का पसीना / आँसू पूछने, गंदे कानों/मुंह की सफाई के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था। माँ इसको अपना हाथ तौलिया के रूप में भी इस्तेमाल का लेती थी। खाना खाने के बाद पल्लू से मुंह साफ करने का अपना ही आनंद होता था।

कभी आँख मे दर्द होने पर माँ अपने पल्लू को गोल बनाकर, फूँक मारकर, गरम करके आँख में लगा देतीं थी, सभी दर्द उसी समय गायब हो जाता था।

माँ की गोद मे सोने वाले बच्चों के लिए उसकी गोद गद्दा और उसका पल्लू चादर का काम करता था।

जब भी कोई अंजान घर पर आता, तो उसको, माँ के पल्लू की ओट ले कर देखते था। जब भी बच्चे को किसी बात पर शर्म आती, वो पल्लू से अपना मुंह ढक कर छुप जाता था।

और जब बच्चों को बाहर जाना होता, तब माँ का पल्लू  एक मार्गदर्शक का काम करता था। जब तक  बच्चे ने हाथ मे  थाम रखा होता, तो सारी कायनात उसकी मुट्ठी में होती।

और जब मौसम ठंडा होता था,  मां उसको अपने चारो और लपेट कर ठंड से बचने की कोशिश करती।

पल्लू एप्रन का काम भी करता था। पल्लू का उपयोग पेड़ों से गिरने वाले जामुन और मीठे सुगंधित फूलों को लाने के लिए किया जाता था। पल्लू घर मे रखे समान  से धूल हटाने मे भी बहुत सहायक होता था।

पल्लू मे गांठ लगा कर माँ एक चलता फिरता बैंक या तिजोरी  रखती थी और अगर सब कुछ ठीक रहा तो कभी कभी उस बैंक से कुछ पैसे भी मिल जाते थे।

मुझे नहीं लगता की विज्ञान इतनी तरक्की करने के बाद भी पल्लू का विकल्प ढूंढ पाया है।

पल्लू कुछ और नहीं बल्कि एक जादुई एहसास है। में पुरानी पीढ़ी से संबंध रखता हूं और अपनी माँ के प्यार और स्नेह को हमेशा महसूस करते हैं, जो कि आज की पीढ़ियों की समझ से शायद गायब है।


 👉 सभी विकसित, बहादुर और सुन्दर महिला शक्ति को समर्पित 🙏🙏


गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020

एक सोच बदलाव की . . . . .

काली कमाई के रास्ते खत्म कर दिए जाएँ, नोट बंदी की जरूरत ही क्यों होगी ?


मैं एक डॉक्टर हूं, और इस लिए


" सभी ईमानदार डॉक्टर्स से क्षमा सहित प्रार्थना ...! "


• ........हार्ट अटैक " हो गया ...

डॉक्टर कहता है -  Streptokinase इंजेक्शन ले के आओ ... 9,000/= रु का ... इंजेक्शन की असली कीमत 700/= - 900/= रु के बीच है .., पर उसपे MRP 9,000/= का है ! आप क्या करेंगे?


•..............टाइफाइड हो गया ...

डॉक्टर ने लिख दिया - कुल 14 Monocef लगेंगे ! होल - सेल दाम 25/= रु है ... अस्पताल का केमिस्ट आपको 53/= रु में देता है ... आप क्या करेंगे ??

•............,,,किडनी फेल हो गयी है .., हर तीसरे दिन Dialysis होता है .., Dialysis के बाद एक इंजेक्शन लगता है - MRP शायद 1800 रु है ! 

इंजेक्शन की असली कीमत 500/= है , पर डॉक्टर अपने अस्पताल में MRP पे यानि 1,800/= में देता है ... आप क्या करेंगे ??

..........इन्फेक्शन हो गया है .., 

डॉक्टर ने जो Antibiotic लिखी , वो 540/= रु का एक पत्ता है .., वही Salt किसी दूसरी कम्पनी का 150/= का है और जेनेरिक 45/= रु का ... पर केमिस्ट आपको मना कर देता है .., नहीं जेनेरिक हम रखते ही नहीं , दूसरी कम्पनी की देंगे नहीं .., वही देंगे , जो डॉक्टर साहब ने लिखी है ... यानी 540/= वाली ? आप क्या करेंगे ??

• बाज़ार में Ultrasound Test 750/= रु में होता है .., चैरिटेबल डिस्पेंसरी 240/= रु में करती है ! 750/= में डॉक्टर का कमीशन 300/= रु है !

MRI में डॉक्टर का कमीशन Rs. 2,000/= से 3,000/= के बीच है !

डॉक्टर और अस्पतालों की ये लूट , ये नंगा नाच , बेधड़क , बेखौफ्फ़ देश में चल रहा है !

Pharmaceutical कम्पनियों की Lobby इतनी मज़बूत है, की उसने देश को सीधे - सीधे बंधक बना रखा है !

डॉक्टर्स और दवा कम्पनियां मिली हुई हैं! दोनों मिल के सरकार को ब्लैकमेल करते हैं ...!!

सबसे बडा यक्ष प्रश्न ...

मीडिया दिन रात क्या दिखाता है?


गड्ढे में गिरा प्रिंस .., बिना ड्राईवर की कार, राखी सावंत, Bigboss, सास बहू और साज़िश, सावधान, क्राइम रिपोर्ट, Cricketer की Girl Friend, ये सब दिखाता है, किंतु ... Doctor's, Hospital's और Pharmaceutical company कम्पनियों की, ये खुली लूट क्यों नहीं दिखाता?

मीडिया नहीं दिखाएगा, तो कौन दिखाएगा?

मेडिकल Lobby की दादागिरी कैसे रुकेगी?

इस Lobby ने सरकार को लाचार कर रखा है?

Media क्यों चुप है?

20/= रु मांगने पर ऑटोरिक्सा वाले को, तो आप कालर पकड़ के मारेंगे, ..!

डॉक्टर साहब का क्या करेंगे???

यदि आपको ये सत्य लगता है, तो कर दो फ़ॉरवर्ड, सब को! जागरूकता लाइए और दूसरों को भी जागरूक बनाने में अपना सहयोग दीजिये !!!

The Makers of Ideal Society 

एक सोच बदलाव की . . . . .

👉 एक हृदयस्पर्शी घटना

सुबह सूर्योदय हुआ ही था कि एक वयोवृद्ध सज्जन डॉक्टर के दरवाजे पर आकर घंटी बजाने लगा।सुबह-सुबह कौन आ गया? कहते हुए डॉक्टर की पत्नी ने दरवाजा खोला। वृद्ध को देखते ही डॉक्टर की पत्नी ने कहा, दादा आज इतनी सुबह? क्या परेशानी हो गयी आपको?

    वयोवृद्ध ने कहा अपने अंगूठे के टांके कटवाने आया हूं, डॉक्टर साहब के पास। मुझे 9 बजे दूसरी जगह पहुंचना होता है, इसलिए जल्दी आया। सॉरी डॉक्टर साहब।

    कोई बात नहीं दादा, बैठो। दिखाओ अपना अंगूठा। डॉक्टर ने पूरे ध्यान से अंगूठे के टांके खोले और कहा कि दादा बहुत बढ़िया है। आपका घाव भर गया है।फिर भी मैं पट्टी लगा देता हूं कि कहीं,चोंट न पहुंचे। डाक्टर तो बहुत होते हैं परंतु यह डॉक्टर बहुत हमदर्दी रखने वाले और दयालु प्रवर्ति के थे।

    डॉक्टर ने पट्टी बांधने के बाद पूछा – दादा आपको 9 बजे कहां पहुंचना पड़ता है। आपको देर हो गई हो तो मैं चलकर आपको छोड़ आता हूं ।

    वृद्ध ने कहा नहीं नहीं ,डॉक्टर साहब, अभी तो मैं घर जाऊंगा, नाश्ता तैयार करूंगा, फिर निकलूंगा और करीब 9 बजे पहुंच जाऊंगा। उन्होंने डॉक्टर का आभार माना और जाने के लिए खड़े हुए । पैसे लेकर के उपचार करने वाले तो बहुत डॉक्टर होते हैं परंतु दिल से उपचार करने वाले कम ही होते हैं।

    दादा खड़े हुए तभी डॉक्टर की पत्नी ने आकर कहा कि दादा नाश्ता यहीं कर लो। वृद्ध ने कहा, ना बहन। मैं तो यहां नाश्ता कर लेता परंतु उसको नाश्ता कौन कराएगा? डॉक्टर ने पूछा किस को नाश्ता कराना है?

    वृद्ध ने कहा कि मेरी पत्नी को । वह कहां रहती है और 9 बजे आपको उसके यहां कहां पहुंचना है? वृद्ध ने कहा, डॉक्टर साहब वह तो मेरे बिना रहती ही नहीं थी, परंतु अब वो अस्वस्थ है तो नर्सिंग होम में एडमिट है। डॉक्टर ने पूछा, उनको क्या तकलीफ है?

    वृद्ध व्यक्ति ने कहा, मेरी पत्नी को अल्जाइमर हो गया है, उसकी याददाश्त चली गई है। पिछले 5 साल से वह मेरे को पहचानती नहीं है। मैं नर्सिंग होम में जाता हूं, उसको नाश्ता खिलाता हूं तो वह फटी फ़टी आंख से शून्य नेत्रों से मुझे देखती है। मैं उसके लिए अनजाना हो गया हूं। ऐसा कहते कहते वृद्ध की आंखों में आंसू आ गए।

    डॉक्टर और उसकी पत्नी की आंखें भी नम हो गई। याद रखें प्रेम निस्वार्थ होता है। प्रेम सब के दिल मे होता है परंतु “एक पक्षिय प्रेम” यह दुर्लभ है, पर होता है। कबीर ने लिखा है, “प्रेम ना बाड़ी उपजे प्रेम न हाट बिकाय।

    डॉक्टर और उसकी पत्नी ने कहा, दादा 5 साल से आप रोज नर्सिंग होम में उनको नाश्ता कराने जाते हो? इतने वृद्ध हो आप,थकते नहीं हो, ऊबते नहीं हो?

    उन्होंने कहा कि मैं तीन बार जाता हूं। डॉक्टर साहब, उसने जिंदगी में मेरी बहुत सेवा की और आज मैं उसके सहारे जिंदगी जी रहा हूं। उसको देखता हूं तो मेरा मन भर आता है। मैं उसके पास बैठता हूं तो मुझ में शक्ति आ जाती है। अगर वह न होती तो अभी तक मैं भी बिस्तर पकड़ लेता लेकिन उसको ठीक करना है , उसकी संभालना है, इसलिए मुझ में रोज ताकत आ जाती है। उसके कारण ही मुझ में इतनी फुर्ती है। सुबह उठता हूं तो तैयार होकर के काम में लग जाता हूं। ये भाव रहता है कि उससे मिलने जाना है, उसके साथ नाश्ता करना है, उसको नाश्ता कराना है। उसके साथ नाश्ता करने का आनंद ही अलग है। मैं अपने हाथ से उसको नाश्ता खिलाता हूं।

    डॉक्टर ने कहा, दादा एक बात पूछूं? ‘पूछो ना’ डॉक्टर साहब। डॉक्टर ने कहा, दादा वह तो आपको पहचानती तक नहीं। न आपसे बोलती भी है, न हंसती है तब भी तुम मिलने जाते हो।

    तब उस समय वृद्ध ने जो शब्द कहे वो शब्द दुनिया में सबसे अधिक हृदयस्पर्शी और मार्मिक हैं। वृद्ध बोले,

डॉक्टर साहब वह नहीं जानती कि मैं कौन हूं, पर मैं तो जानता हूं ना कि वह कौन है। इतना कहते कहते हैं वृद्ध की आंखों से पानी की धारा बहने लगी।

    डॉक्टर और उनकी पत्नी की भी आंखें भी भर आई और सोचा कि पारिवारिक जीवन में ‘स्वार्थ’ अभिशाप है और ‘प्रेम’ आशीर्वाद।

प्रेम कम होता है तभी परिवार टूटता है।

सोमवार, 21 सितंबर 2020

👉 प्रभु की कृपा

अन्धा आँख प्राप्ति को प्रभु की कृपा समझता है, गरीब धन प्राप्ति को प्रभु की कृपा समझता है, रोगी निरोग होने को प्रभु की कृपा समझता है; किन्तु ये सब धोखा है, ये सब प्रभु की कृपा नहीं है। प्रभु जिस पर कृपा करते हैं, उसे अपनी शरण में ले लेते हैं और उस जीव की सब आसक्तियों को लूट लेते हैं, तब जीव एक मात्र प्रभु का आश्रय लेता है। यही प्रभु की सच्ची कृपा है।

भगवान् की कृपा और माया की कृपा, जीव पर ये दो कृपा होती रहती हैं। इन दोनों कृपाओं में बहुत अंतर है।  माया जब खुश होकर कृपा करती है तो धन, दौलत, यश, सम्मान दे देती है। माया की कृपा से मैं और मेरा के भाव जागृत हो जाते हैं। भगवान् ने ध्रुव जी से कहा- 

सत्याआशिषो हि  ...  वत्सकमनुग्रहकातरोअस्मान।| श्रीमद्भागवत 04-09-17 

जब प्रभु कृपा करते हैं तो धन आदि देने से पहले, मैं व मेरा की वृत्ति हटा देते हैं। जैसे प्रभु ने सुदामा जी को धन तो दिया परन्तु देने से पहले उनमें मेरा-तेरा की भावना बिल्कुल खत्म कर दी। भगवान् अपने भक्त का सदा भला चाहते हैं। जैसे - नारद जी ने भगवान् को नारी-विरह का श्राप दिया, परन्तु भगवान् ने नारद जी का कल्याण ही किया, उन पर रुष्ट नहीं हुए।

भगवान् तीन तरह से कृपा करते हैं। एक कृपा साक्षात् दर्शन देकर करते हैं, दूसरी कृपा मन से मंगल चाहकर करते हैं, जैसे कि अनेक निमित्त बना देना, बिना किसी प्रयत्न के कार्य बना देना  और तीसरी कृपा संस्पर्श से करते हैं। जैसे मछली अण्डे को दूर से देखती है और उसका पालन करती है। कछुआ दूर से ही अपने अण्डे का चिंतन करता है, इसी से अण्डे का पालन होता है, और वह बढ़ता है। 

सूर्य कभी नहीं पूछता कि अन्धकार कितना पुराना है? अन्धकार आज का है या वर्षों पुराना है। सूर्य की किरणें तो अन्धकार के पास पहुँचते ही उसे मिटा देती हैं। ऐसे ही प्रभु की कृपा कभी यह नहीं पूछती कि सामने वाला कितना बड़ा पापी है? प्रभु की कृपा होते ही जीव के समस्त पाप व कष्ट मिट जाते हैं। अगर प्रभु की करुणा पाना चाहते हो तो अपनी अहंता को निकाल दो।


गुरुवार, 17 सितंबर 2020

👉 प्रोत्साहित करें.. हतोत्साहित नही....

पिता बेटे को डॉक्टर बनाना चाहता था। बेटा इतना मेधावी नहीं था कि PMT क्लियर कर लेता। इसलिए दलालों से MBBS की सीट खरीदने का जुगाड़ किया गया। जमीन, जायदाद जेवर गिरवी रख के 35 लाख रूपये दलालों को दिए, लेकिन वहाँ धोखा हो गया।

फिर किसी तरह विदेश में लड़के का एडमीशन कराया गया, वहाँ भी चल नहीं पाया। फेल होने लगा.. डिप्रेशन में रहने लगा। रक्षाबंधन पर घर आया और यहाँ फांसी लगा ली। 20 दिन बाद माँ बाप और बहन ने भी कीटनाशक खा के आत्म हत्या कर ली।

अपने बेटे को डॉक्टर बनाने की झूठी महत्वाकांक्षा ने पूरा परिवार लील लिया। माँ बाप अपने सपने, अपनी महत्वाकांक्षा अपने बच्चों से पूरी करना चाहते हैं ...

मैंने देखा कि कुछ माँ बाप अपने बच्चों को

Topper बनाने के लिए इतना ज़्यादा अनर्गल दबाव डालते हैं कि बच्चे का स्वाभाविक विकास ही रुक जाता है। 

आधुनिक स्कूली शिक्षा बच्चे की evaluation और grading ऐसे करती है जैसे सेब के बाग़ में सेब की खेती की जाती है। पूरे देश के करोड़ों बच्चों को एक ही syllabus पढ़ाया जा रहा है .......

For Example  -- जंगल में सभी पशुओं को एकत्र कर सबका इम्तहान लिया जा रहा है और पेड़ पर चढ़ने की क्षमता देख के Ranking निकाली जा रही है। यह शिक्षा व्यवस्था ये भूल जाती है कि इस प्रश्नपत्र में तो बेचारा हाथी का बच्चा फेल हो जाएगा और बन्दर First आ जाएगा।

अब पूरे जंगल में ये बात फ़ैल गयी कि कामयाब वो जो झट से कूद के पेड़ पर चढ़ जाए। बाकी सबका जीवन व्यर्थ है।

इसलिए उन सब जानवरों के,  जिनके बच्चे कूद के झटपट पेड़ पर न चढ़ पाए, उनके लिए कोचिंग Institute खुल गए, व्हाँ पर बच्चों को पेड़ पर चढ़ना सिखाया जाता है। चल पड़े हाथी, जिराफ, शेर और सांड़, भैंसे और समंदर की सब मछलियाँ चल पड़ीं अपने बच्चों के साथ, Coaching institute की ओर ........ हमारा बिटवा भी पेड़ पर चढ़ेगा और हमारा नाम रोशन करेगा।


हाथी के घर लड़का हुआ ....... 

तो उसने उसे गोद में ले के कहा- 'हमरी जिन्दगी का एक ही मक़सद है कि हमार बिटवा पेड़ पर चढ़ेगा।' और जब बिटवा पेड़ पर नहीं चढ़ पाया, तो हाथी ने सपरिवार ख़ुदकुशी कर ली।

अपने बच्चे को पहचानिए। वो क्या है, ये जानिये। हाथी है या शेर ,चीता, लकडबग्घा , जिराफ ऊँट है या मछली , या फिर हंस , मोर या कोयल ? क्या पता वो चींटी ही हो ?

और यदि चींटी है आपका बच्चा, तो हताश निराश न हों। चींटी धरती का सबसे परिश्रमी जीव है और अपने खुद के वज़न की तुलना में एक हज़ार गुना ज्यादा वजन उठा सकती है। 

इसलिए अपने बच्चों की क्षमता को परखें और जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें.. हतोत्साहित नही......

मंगलवार, 15 सितंबर 2020

👉 अपने इष्ट के चरणों से अनुराग करो।

भगवान् के चरणों की शरण में गये बिना किसी भी साधन से माया को नहीं जीता जा सकता, क्योंकि एक तो ये माया दुस्तर है, दूसरा हमारा साधन भी सीमित है। किन्तु यदि भगवान् की कृपा दृष्टि पड़ जाये तो निश्चित वहाँ से माया भाग जायेगी। भगवान् का स्वभाव है, कि वो अपने आश्रित के दोष नहीं देखते और यदि उसमें थोड़ा सा भी गुण होता है तो प्रभु उसीसे रीझ जाते हैं।  

तुम पापी हो, भले हो, पुण्यात्मा हो, बुरे हो, ये सब मत सोचो। ऐसा सोचना तुम्हें दुर्बल बना देगा। केवल प्रभु के चरणों का ध्यान करो। उनके चरणों के आश्रय से अनन्त पाप नष्ट हो जाते हैं। हमें सिर्फ इतना सोचना है कि हम उनके चरणों में कैसे जाँये ? महत्व भले या बुरे का नहीं है अपितु इस बात का है कि हम जैसे भी हैं प्रभु के हैं। इसी बात को सूरदास जी ने अपने पद में कहा कि – 

प्रभु हम भले बुरे सो तेरे।
सब तजि तुम शरणागत आयो, दृढ़ करि चरण गहेरे।|
हम किसी और के नहीं हैं। हमको किसी और से लेना देना नहीं है। भगवान् का तो विरद है कि चाहे कोई सारे संसार का द्रोही है, सारे संसार का कत्ल करके आया है, तब भी उसे नहीं त्यागते। 

शरण गये प्रभु काहू न त्यागा, विश्व द्रोह कृत अघ जेही लागा।|
तुमने सुना होगा कि एक बार अमेरिका ने जापान में बम गिराया था। जो व्यक्ति हवाई जहाज से बम को गिराने के लिए गया था, जब उसने बम गिरा दिया तो वो दूर से दूरबीन में देखने लगा कि क्या हुआ ? वहाँ से उसने देखा कि लाखों लोग तड़फ रहे हैं। जहरीली गैस से लोगों का दम घुट रहा है, और वे तड़फ-तडफ कर मर रहे हैं तो यह देखकर वह व्यक्ति पागल हो गया क्योंकि उसने विश्व द्रोह किया था। 

यस्य नाहड़कृतो .....   हन्ति न निबध्यते।|  श्रीमद्भगवत्गीता 18/17
भगवान्  कहते हैं कि अगर तुम इतने बड़े पापी भी हो कि विश्व द्रोह करके आये हो, परन्तु यदि तुम मेरी शरण में आ जाओ तो तुरंत उसी समय क्षमा कर दिये जाओगे। भगवान् इतने बड़े क्षमाशील हैं कि तुम जैसे भी हो यदि भगवान्  की शरण में आ गये तो जैसे लोहा पारस के स्पर्श से सोना बन जाता है, वैसे ही तुम भी उसी समय सोना बन जाओगे ! अर्थात् तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जायेंगे। सूरदास जी कहते हैं -  
" बड़ी है कृष्ण नाम की ओट, 
शरण गये प्रभु नाहीं निकारे, करत कृपा की कोट
बैठत सबै सभा हरि जू की, कौन बड़ो को छोट 
सूरदास पारस के परसे, मिटे लोह की खोट ”

एक तो ये मार्ग है कि गुणों का अर्जन करते हुए भक्ति करो। परन्तु दूसरा मार्ग प्रह्लाद जी कहते हैं- कि “अपने इष्ट के चरणों की आराधना करो गुण तो तुम्हारे अंदर स्वतः ही आ जायेंगे।”  अतः गुणों का भी आश्रय मत करो। गुण अपने देवताओं सहित स्वतः चले आयेंगे, सिर्फ अपने इष्ट के चरणों में अनुराग करो। 

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

प्रेम निश्चित ही दीवाना है इसलिए

प्रेम निश्चित ही दीवाना है  इसलिए चतुर वंचित रह जाते हैं प्रेम से......

उन नासमझों को, उन नादानों को पता ही नहीं चलता कि कितनी बड़ी संपदा गंवा बैठे! वे तो अपनी अकड़ में ही रह जाते हैं--समझ की अकड़। वे तो अपनी बुद्धिमानी में ही घिरे रह जाते हैं। उन्हें पता ही नहीं चलता कि जीवन में एक और शराब भी थी, जिसे पीते तो अमृत का अनुभव होता, कि एक और रसधार भी थी जो पास ही बहती थी, 

जरा आंख भीतर मोड़ने की जरूरत थी। मगर बुद्धिमान बाहर ही देखता रहता है। बुद्धिमानों से ज्यादा बुद्धू व्यक्ति खोजने मुश्किल हैं। बुद्धू इसलिए कि कूड़ा-कर्कट तो इकट्ठा कर लेते हैं--धन-संपदा, पद-प्रतिशठा; और जीवन की जो असली संपदा है, जो शाश्वत संपदा है, उससे वंचित रह जाते हैं। प्रेम के अतिरिक्त और कुछ भी शाश्वत नहीं है। शेष सब क्षणभंगुर है। शेष बस यूं है जैसे इं(धनुष--दिखाई तो पड़ता है बहुत रंगीन; दिखाई तो पड़ता है बड़ा प्यारा--मगर है वहां कुछ भी नहीं। मुट्ठी बांधोगे तो हाथ कुछ भी न लगेगा। शेष सब कुछ ऐसे ही है जैसे सुबह की धूप में चमकते हुए ओस-कण, लगें कि मोती ही मोती फैल गए हैं आज दूब पर; और पास जाओ जो कुछ भी नहीं है। दूर से मोती हैं; पास जाओ तो मिट्टी भी नहीं। ऐसे ही हमारे धन हैं, पद है, प्रतिशठा है। और इस सबके पीछे चलने वाली दौड़ है--क्षणभंगुर, पानी के बबूलों जैसी। बुद्धिमान उसी में अटका रह जाता है। वह रुपये ही गिनता रहता है। और गिनते-गिनते ही मर जाता है। कुछ जान नहीं पाता, कुछ जी नहीं पाता।

प्रेम है द्वार जीने का, जानने का। प्रेम एक अनूठा ही मार्ग है जानने का। एक मार्ग तो है शास्त्र-ज्ञान, शब्द-ज्ञान; वह जानने का धोखा है। उससे बस प्रतीति होती है कि जाना, और जानने में कुछ आता नहीं। पढ़ो वेद, पढ़ो कुरान, पढ़ो बाइबिल। हो जाएंगे याद तुम्हें शब्द, दोहराने लगोगे उन शब्दों को। सुंदर और प्यारे शब्द हैं। और दोहराओगे तो खुद को भी अच्छा लगेगा, हृदय में गुदगुदी होगी। लेकिन खाली आए, खाली ही जाओगे। 

बुद्धि से जाना नहीं जाता; जाना जाता है हृदय से। तर्क से नहीं जाना जाता; जाना जाता है प्रीति से। 
प्रीति है रीति जानने की.........🌹

रविवार, 29 मार्च 2020

"शर्त "

👉 महान लेखक टालस्टाय की एक कहानी है- "शर्त "

इस कहानी में दो मित्रो में आपस मे शर्त लगती है कि, यदि उसने 1 माह एकांत में बिना किसी से मिले,बातचीत किये एक कमरे में बिता देता है, तो उसे 10 लाख नकद वो देगा। इस बीच, यदि वो शर्त पूरी नहीं करता, तो वो हार जाएगा। पहला मित्र ये शर्त स्वीकार कर लेता है। उसे दूर एक खाली मकान में बंद करके रख दिया जाता है। बस दो जून का भोजन और कुछ किताबें उसे दी गई।

उसने जब वहां अकेले रहना शुरू किया तो 1 दिन 2 दिन किताबो से मन बहल गया फिर वो खीझने लगा। उसे बताया गया था कि थोड़ा भी बर्दाश्त से बाहर हो तो वो घण्टी बजा के संकेत दे सकता है और उसे वहां से निकाल लिया जाएगा।

जैसे जैसे दिन बीतने लगे उसे एक एक घण्टे युगों से लगने लगे। वो चीखता, चिल्लाता लेकिन शर्त का खयाल कर बाहर किसी को नही बुलाता। वो अपने बाल नोचता, रोता, गालियां देता तड़फ जाता, मतलब अकेलेपन की पीड़ा उसे भयानक लगने लगी पर वो शर्त की याद कर अपने को रोक लेता।

कुछ दिन और बीते तो धीरे धीरे उसके भीतर एक अजीब शांति घटित होने लगी। अब उसे किसी की आवश्यकता का अनुभव नही होने लगा। वो बस मौन बैठा रहता। एकदम शांत उसका चीखना चिल्लाना बंद हो गया। 

इधर, उसके दोस्त को चिंता होने लगी कि एक माह के दिन पर दिन बीत रहे हैं पर उसका दोस्त है कि बाहर ही नही आ रहा है। माह के अब अंतिम 2 दिन शेष थे, इधर उस दोस्त का व्यापार चौपट हो गया वो दिवालिया हो गया। उसे अब चिंता होने लगी कि यदि उसके मित्र ने शर्त जीत ली तो इतने पैसे वो उसे कहाँ से देगा।

वो उसे गोली मारने की योजना बनाता है और उसे मारने के लिये जाता है। जब वो वहां पहुँचता है तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नही रहता। वो दोस्त शर्त के एक माह के ठीक एक दिन पहले वहां से चला जाता है और एक खत अपने दोस्त के नाम छोड़ जाता है।

खत में लिखा होता है-
प्यारे दोस्त इन एक महीनों में मैंने वो चीज पा ली है जिसका कोई मोल नही चुका सकता। मैंने अकेले मे रहकर असीम शांति का सुख पा लिया है और मैं ये भी जान चुका हूं कि जितनी जरूरतें हमारी कम होती जाती हैं उतना हमें असीम आनंद और शांति मिलती है मैंने इन दिनों परमात्मा के असीम प्यार को जान लिया है। इसीलिए मैं अपनी ओर से यह शर्त तोड़ रहा हूँ अब मुझे तुम्हारे शर्त के पैसे की कोई जरूरत नही।

इस उद्धरण से समझें कि लॉकडाउन के इस परीक्षा की घड़ी में खुद को झुंझलाहट, चिंता और भय में न डालें, उस परमात्मा की निकटता को महसूस करें और जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयत्न कीजिये, इसमे भी कोई अच्छाई होगी यह मानकर सब कुछ भगवान को समर्पण कर दें।

विश्वास मानिए अच्छा ही होगा।
लॉक डाउन का पालन करे। स्वयं सुरक्षित रहें, परिवार, समाज और राष्ट्र को सुरक्षित रखें।

लॉक डाउन के बाद जी तोड़ मेहनत करना है, स्वयं, परिवार और राष्ट्र के लिए... देश की गिरती अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए👍🏻👍🏻👍🏻

सभी को प्रणाम🙏🏻🙏🏻🙏🏻

शनिवार, 28 मार्च 2020

👉 तिरस्कार या मजबूरी

गोपाल किशन जी  एक सेवानिवृत अध्यापक हैं। सुबह  दस बजे तक ये एकदम स्वस्थ प्रतीत हो रहे थे। शाम के सात बजते-बजते तेज बुखार के साथ-साथ वे सारे लक्षण दिखायी देने लगे जो एक कोरोना पॉजीटिव मरीज के अंदर दिखाई देते हैं। 

परिवार के सदस्यों के चेहरों पर खौफ़ साफ़ दिखाई पड़ रहा था। उनकी चारपाई घर के एक पुराने बड़े से बाहरी कमरे में डाल दी गयी जिसमें इनके पालतू कुत्ते मार्शल का बसेरा है। गोपाल किशन जी कुछ साल पहले एक छोटा सा घायल पिल्ला सड़क से उठाकर लाये थे और अपने बच्चे की तरह पालकर इसको नाम दिया मार्शल।

इस कमरे में अब गोपाल किशन जी, उनकी चारपाई और उनका प्यारा मार्शल हैं।दोनों बेटों -बहुओं ने दूरी बना ली और बच्चों को भी पास ना जानें के निर्देश दे दिए गये। 

सरकार द्वारा जारी किये गये नंबर पर फोन करके सूचना दे दी गयी। खबर मुहल्ले भर में फैल चुकी थी लेकिन मिलने कोई नहीं आया। साड़ी के पल्ले से मुँह लपेटे हुए,  हाथ में छड़ी लिये पड़ोस की कोई एक बूढी अम्मा आई और गोपाल किशन जी की पत्नी से बोली -"अरे कोई इसके पास दूर से खाना भी सरका दो, वे अस्पताल वाले तो इसे भूखे को ही ले जाएँगे उठा के"। 

अब प्रश्न ये था कि उनको खाना देनें  के लिये कौन जाए। बहुओं ने खाना अपनी सास को पकड़ा दिया अब गोपाल किशन जी की पत्नी के हाथ, थाली पकड़ते ही काँपने लगे, पैर मानो खूँटे से बाँध दिये गए हों। 

इतना देखकर वह पड़ोसन बूढ़ी अम्मा बोली "अरी तेरा तो  पति है तू भी ........।  मुँह बाँध के चली जा और दूर से थाली सरका दे वो अपने आप उठाकर खा लेगा"। सारा वार्तालाप गोपाल किशन जी चुपचाप सुन रहे थे, उनकी आँखें नम थी और काँपते होठों से उन्होंने कहा कि "कोई मेरे पास ना आये तो बेहतर है, मुझे भूख भी नहीं है"। 

इसी बीच एम्बुलेंस आ जाती है और गोपाल किशन जी को एम्बुलेंस में बैठने के लिये बोला जाता है। गोपाल किशन जी घर के दरवाजे पर आकर एक बार पलटकर अपने घर की तरफ देखते हैं। पोती -पोते First floor की खिड़की से मास्क लगाए दादा को निहारते हुए और उन बच्चों के पीछे सर पर पल्लू रखे उनकी दोनों बहुएँ दिखाई पड़ती हैं। Ground floor पर, दोनों बेटे काफी दूर,  अपनी माँ के साथ खड़े थे। 

विचारों का तूफान गोपाल किशन जी के अंदर उमड़ रहा था। उनकी पोती ने उनकी तरफ हाथ हिलाते हुए Bye कहा। एक क्षण को उन्हें लगा कि 'जिंदगी ने  अलविदा कह दिया' 

गोपाल किशन जी की आँखें लबलबा उठी। उन्होंने बैठकर अपने घर की देहरी को चूमा और एम्बुलेंस में जाकर बैठ गये। 

उनकी पत्नी ने तुरंत पानी से  भरी बाल्टी घर की उस  देहरी पर उलेड दी जिसको गोपाल किशन चूमकर एम्बुलेंस में बैठे थे। 

इसे तिरस्कार कहो या मजबूरी, लेकिन ये दृश्य देखकर कुत्ता भी रो पड़ा और उसी एम्बुलेंस के पीछे - पीछे हो लिया जो गोपाल किशन जी को अस्पताल लेकर जा रही थी। 

गोपाल किशन जी अस्पताल में 14 दिनों के अब्ज़र्वेशन पीरियड में  रहे। उनकी सभी जाँच सामान्य थी। उन्हें पूर्णतः स्वस्थ घोषित करके छुट्टी दे दी गयी। जब वह अस्पताल से बाहर निकले तो उनको अस्पताल के गेट पर उनका कुत्ता मार्शल बैठा दिखाई दिया। दोनों एक दूसरे से लिपट गये। एक की आँखों से गंगा तो एक की आँखों से यमुना बहे जा रही थी। 

जब तक उनके बेटों की लम्बी गाड़ी उन्हें लेने पहुँचती तब तक वो अपने कुत्ते को लेकर किसी दूसरी दिशा की ओर निकल चुके थे। 

उसके बाद वो कभी दिखाई नहीं दिये। आज उनके फोटो के साथ उनकी  गुमशुदगी की खबर  छपी है अखबार में लिखा है कि सूचना देने वाले को 40 हजार का ईनाम दिया जायेगा। 

40 हजार - हाँ पढ़कर ध्यान आया कि इतनी ही तो मासिक पेंशन आती थी उनकी जिसको वो परिवार के ऊपर हँसते गाते उड़ा दिया करते थे।

👉 एक सूफी कहानी 🔥

एक फकीर जो एक वृक्ष के नीचे ध्यान कर रहा था,  रोज एक लकड़हारे को लकड़ी काटते ले जाते देखता था। एक दिन उससे कहा कि सुन भाई, दिन— भर लकड़ी काटता है, दो जून रोटी भी नहीं जुट पाती। तू जरा आगे क्यों नहीं जाता। वहां आगे चंदन का जंगल है। एक दिन काट लेगा, सात दिन के खाने के लिए काफी हो जाएगा।

गरीब लकड़हारे को भरोसा तो नहीं आया, क्योंकि वह तो सोचता था कि जंगल को जितना वह जानता है और कौन जानता है! जंगल में ही तो जिंदगी बीती। लकड़ियां काटते ही तो जिंदगी बीती। यह फकीर यहां बैठा रहता है वृक्ष के नीचे, इसको क्या खाक पता होगा? मानने का मन तो न हुआ, लेकिन फिर सोचा कि हर्ज क्या है, कौन जाने ठीक ही कहता हो! फिर झूठ कहेगा भी क्यों? शांत आदमी मालूम पड़ता है, मस्त आदमी मालूम पड़ता है। कभी बोला भी नहीं इसके पहले। एक बार प्रयोग करके देख लेना जरूरी है।

तो गया। लौटा फकीर के चरणों में सिर रखा और कहा कि मुझे क्षमा करना, मेरे मन में बड़ा संदेह आया था, क्योंकि मैं तो सोचता था कि मुझसे ज्यादा लकड़ियां कौन जानता है। मगर मुझे चंदन की पहचान ही न थी। मेरा बाप भी लकड़हारा था, उसका बाप भी लकड़हारा था। हम यही काटने की, जलाऊ—लकड़ियां काटते—काटते जिंदगी बिताते रहे, हमें चंदन का पता भी क्या, चंदन की पहचान क्या! हमें तो चंदन मिल भी जाता तो भी हम काटकर बेच आते उसे बाजार में ऐसे ही। तुमने पहचान बताई, तुमने गंध जतलाई, तुमने परख दी। जरूर जंगल है। मैं भी कैसा अभागा! काश, पहले पता चल जाता! फकीर ने कहा कोई फिक्र न करो, जब पता चला तभी जल्दी है। जब घर आ गए तभी सबेरा है। दिन बड़े मजे में कटने लगे। एक दिन काट लेता, सात— आठ दिन, दस दिन जंगल आने की जरूरत ही न रहती। 

एक दिन फकीर ने कहा; मेरे भाई, मैं सोचता था कि तुम्हें कुछ अक्ल आएगी। जिंदगी— भर तुम लकड़ियां काटते रहे, आगे न गए; तुम्हें कभी यह सवाल नहीं उठा कि इस चंदन के आगे भी कुछ हो सकता है? उसने कहा; यह तो मुझे सवाल ही न आया। क्या चंदन के आगे भी कुछ है? उस फकीर ने कहा : चंदन के जरा आगे जाओ तो वहां चांदी की खदान है। लकडिया—वकडिया काटना छोड़ो। एक दिन ले आओगे, दो—चार छ: महीने के लिए हो गया।

अब तो भरोसा आया था। भागा। संदेह भी न उठाया। चांदी पर हाथ लग गए, तो कहना ही क्या! चांदी ही चांदी थी! चार—छ: महीने नदारद हो जाता। एक दिन आ जाता, फिर नदारद हो जाता। लेकिन आदमी का मन ऐसा मूढ़ है कि फिर भी उसे खयाल न आया कि और आगे कुछ हो सकता है। फकीर ने एक दिन कहा कि तुम कभी जागोगे कि नहीं, कि मुझी को तुम्हें जगाना पड़ेगा। आगे सोने की खदान है मूर्ख! तुझे खुद अपनी तरफ से सवाल, जिज्ञासा, मुमुक्षा कुछ नहीं उठती कि जरा और आगे देख लूं? अब छह महीने मस्त पड़ा रहता है, घर में कुछ काम भी नहीं है, फुरसत है। जरा जंगल में आगे देखकर देखूं यह खयाल में नहीं आता?

उसने कहा कि मैं भी मंदभागी, मुझे यह खयाल ही न आया, मैं तो समझा चांदी, बस आखिरी बात हो गई, अब और क्या होगा? गरीब ने सोना तो कभी देखा न था, सुना था। फकीर ने कहा : थोड़ा और आगे सोने की खदान है। और ऐसे कहानी चलती है। फिर और आगे हीरों की खदान है। और ऐसे कहानी चलती है। और एक दिन फकीर ने कहा कि नासमझ, अब तू हीरों पर ही रुक गया? अब तो उस लकड़हारे को भी बडी अकड़ आ गई, बड़ा धनी भी हो गया था, महल खड़े कर लिए थे। उसने कहा अब छोड़ो, अब तुम मुझे परेशांन न करो। अब हीरों के आगे क्या हो सकता है?

उस फकीर ने कहा. हीरों के आगे मैं हूं। तुझे यह कभी खयाल नहीं आया कि यह आदमी मस्त यहां बैठा है, जिसे पता है हीरों की खदान का, वह हीरे नहीं भर रहा है, इसको जरूर कुछ और आगे मिल गया होगा! हीरों से भी आगे इसके पास कुछ होगा, तुझे कभी यह सवाल नहीं उठा?

रोने लगा वह आदमी। सिर पटक दिया चरणों पर। कहा कि मैं कैसा मूढ़ हूं मुझे यह सवाल ही नहीं आता। तुम जब बताते हो, तब मुझे याद आता है। यह तो मेरे जन्मों—जन्मों में नहीं आ सकता था खयाल कि तुम्हारे पास हीरों से भी बड़ा कोई धन है। 

फकीर ने कहा : उसी धन का नाम ध्यान है। 

अब खूब तेरे पास धन है, अब धन की कोई जरूरत नहीं। अब जरा अपने भीतर की खदान खोद, जो सबसे कीमती है।

👉 लंगर की महिमा

एक बार गुरु नानक देव जी मरदाने के साथ किसी नगर को गए
वहाँ सारे नगर वासी इकठे हो गए
वहाँ एक भगतनि श्री गुरु नानक देव जी से कहने लगी 
महाराज मेने तो सुना है आप सभी के दुःख दूर करते हो 
मेरे भी दुःख दूर करो में बहुत दुखी हूँ 
में तो आप के गुरुद्वारे में रोज 50 रोटी अपने घर से बना कर बाटती हूँ
फिर भी दुखी हूँ
गुरु नानक देव जी ने बोला 
तू दुसरो का दुःख अपने घर लाती हो इस लिए दुखी हो 
वो कहने लगी महाराज मुझे कुछ समझ नही आया मुझ अज्ञानी को ज्ञान दो 
गुरु नानक देव जी कहने लगे तू 50 रोटी गुरु द्वारे में बाटती हो
बदले में क्या ले जाती हो 
वो कहने लगी कुछ भी नही सिर्फ आप के लंगर के सिवा 
गुरु नानक देव जी कहने लगे 
लंगर का मतलब है एक रोटी खाना ओर अपने गुरु का शुकर मनाना
पर तु तो रोज बड़ी बड़ी थैलियों में दाल  मखनी  मटर पनीर रायता 
खीर और 10  15 रोटी भर भर के ले जाती हो
3 तीन दिन वो लंगर तेरे घर मे रहता है तू अपने घर आने वाले सभी परिवार को वो खिलाती हो 
अपनी शान बढ़ाने को
 में इतनी अमीर हूँ
पर तु नही जानती गुरु घर के लंगर की  रोटी के एक टुकड़े में भी गुरु जी की वो ही किरपा रहती है जितना गुरु जी के भंडारे में होती है
तू कहती है मेरे बच्चे घर है उसके लिए मेरे पोतों के लिए मेरी बहु के लिए मेरे बेटे के लिए
इनके सब के लिए भरपूर लंगर ले जाना जाना है
तू ले जाती है 
पर तु ये नही जानती इसको गुरु द्वारे में कितनो के चखने से दुःख दूर होने थे 
पर तूने अपने सुख के लिए दुसरो के दुख दूर नही होने दिए 
इसी लिए तू उनके सारे दुख अपने घर ले जाती हो और दुखी रहती हो 
तेरे दुख तो दिन दुगने रात चोगने बढ़ रहे है 
उसमे हम क्या करे बता

उसकी आँखों से परदा हट गया 
वो जार जार रोने लगी 
महाराज में अंधकार में डूबी थी 
मुझे क्षमा करो अपने चरणों से लगाओ
अब में लंगर में एक एक चम्मच का लंगर करूंगी 

इसी लिए कहते है इंसान अपने दुःख खुद खरीदता है 

लंगर में गुरु का प्रसाद 
प्रसाद समझ के एक चम्मच भी लोगे तो भी गुरु की किरपा उतनी ही होगी जितना भर पेट खाओगे 

बुधवार, 17 जुलाई 2019

👉 क्या-क्या प्राप्त करना शेष

अभी हमारे लिए क्या-क्या प्राप्त करना शेष रहा है, जानते हो? देखो:-

प्रेम- 
क्योंकि अभी तक हमने केवल द्वेष और आत्मसंतोष की ही साधना की है।

ज्ञान? 
क्योंकि अभी तक हम केवल स्खलन अवलोकन और विचारशक्ति को ही प्राप्त कर सके हैं।

आनन्द? 
क्योंकि अभी तक हम केवल दुःख सुख तथा उदासीनता को ही प्राप्त कर सके हैं।

शक्ति? 
क्योंकि अभी तक निर्बलता, प्रयत्न और विजय पराजय तक ही हम पहुँच सके हैं।

जीवन? 
अर्थात् प्राण। अभी तक मानव केवल जन्म, मृत्यु और वृद्धि ही देख सका है।

अद्वैत? 
क्योंकि अभी तक मानवजाति को युद्ध और स्वार्थ साधन करने की विद्या ही आती है।

एक शब्द में कहें तो अभी हमें भगवान को प्राप्त करना है। हमें अपने को उसके दिव्य स्वरूप को प्रतिमा बनाकर आत्मा का पुनर्निर्माण करना है।

सोमवार, 15 जुलाई 2019

👉 ना सम्मान का मोह... ना अपमान का भय..

एक फ़क़ीर था, उसके दोनों बाज़ू नहीं थे। उस बाग़ में मच्छर भी बहुत होते थे। मैंने कई बार देखा उस फ़क़ीर को। आवाज़ देकर, माथा झुकाकर वह पैसा माँगता था। एक बार मैंने उस फ़क़ीर से पूछा – ” पैसे तो माँग लेते हो, रोटी कैसे खाते हो? ”

उसने बताया – ”जब शाम उतर आती है तो उस नानबाई को पुकारता हूँ, ‘ओ जुम्मा ! आके पैसे ले जा, रोटियाँ दे जा। ‘ वह भीख के पैसे उठा ले जाता है, रोटियाँ दे जाता है।”

मैंने पूछा – ” खाते कैसे हो बिना हाथों के? ”
वह बोला – ” खुद तो खा नहीं सकता। आने-जानेवालों को आवाज़ देता हूँ ‘ ओ जानेवालों ! प्रभु तुम्हारे हाथ बनाए रखे, मेरे ऊपर दया करो! रोटी खिला दो मुझे, मेरे हाथ नहीं हैं। ‘हर कोई तो सुनता नहीं, लेकिन किसी-किसी को तरस आ जाता है। वह प्रभु का प्यारा मेरे पास आ बैठता है। ग्रास तोड़कर मेरे मुँह में डालता जाता है, मैं खा लेता हूँ।”

सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने पूछ लिया – ” पानी कैसे पीते हो?”
उसने बताया – ”इस घड़े को टांग के सहारे झुका देता हूँ तो प्याला भर जाता है। तब पशुओं की तरह झुककर पानी पी लेता हूँ।”
मैंने कहा – ”यहाँ मच्छर बहुत हैं। यदि मच्छर लड़ जाए तो क्या करते हो?”
वह बोला – ”तब शरीर को ज़मीन पर रगड़ता हूँ। पानी से निकली मछली की तरह लोटता और तड़पता हूँ।”

हाय! केवल दो हाथ न होने से कितनी दुर्गति होती है!
अरे, इस शरीर की निंदा मत करो! यह तो अनमोल रत्न है! शरीर का हर अंग इतना कीमती है कि संसार का कोई भी खज़ाना उसका मोल नहीं चुका सकता। परन्तु यह भी तो सोचो कि यह शरीर मिला किस लिए है? इसका हर अंग उपयोगी है। इनका उपयोग करो!

स्मरण रहे कि ये आँखे पापों को ढूँढने के लिए नहीं मिलीं।
कान निंदा सुनने के लिए नहीं मिले।
हाथ दूसरों का गला दबाने के लिए नहीं मिले।
यह मन भी अहंकार में डूबने या मोह-माया में फसने को नहीं मिला।
ये आँख सच्चे सतगुरु की खोज के लिये मिली है जो हमें परमात्मा के बताये मार्ग पर चलना सिखाये।
ये हाथ प्राणी मात्र की सेवा करने को मिले हैं।
ये पैर उस रास्ते पर चलने को मिले है जो परम पद तक जाता हो।
ये कान उस संदेश सुनने को मिले है जिसमे परम पद पाने का मार्ग बताया जाता हो।
ये जिह्वा प्रभु का गुण गान करने को मिली है।
ये मन उस प्रभु का लगातार शुक्र और सुमिरन करने को मिला है।
प्रभु तेरा शुक्र है, शुक्र है..लाख लाख शुक्र है।

हम बदलेंगे, युग बदलेगा

👉 रिश्ते की रिश्तेदारी

निशा काम निपटा कर बैठी ही थी कि फोन की घंटी बजने लगी। 

मेरठ से विमला चाची का फोन था ,”बिटिया अपने बाबू जी को आकर ले जाओ यहां से। 

बीमार रहने लगे है , बहुत कमजोर हो गए हैं। 
हम भी कोई जवान तो हो नहीं रहें है,अब उनका करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। 
वैसे भी आखिरी समय अपने बच्चों के साथ बिताना चाहिए।”

निशा बोली,”ठीक है चाची जी इस रविवार को आतें हैं, बाबू जी को हम दिल्ली ले आएंगे।” 

फिर इधर उधर की बातें करके फोन काट दिया।

बाबूजी तीन भाई है , पुश्तैनी मकान है तीनों वहीं रहते हैं। 
निशा और उसका छोटा भाई विवेक दिल्ली में रहते हैं 
अपने अपने परिवार के साथ। तीन चार साल पहले विवेक को फ्लैट खरीदने की लिए पैसे की आवश्यकता पड़ी तो बाबूजी ने भाईयों से मकान के अपने एक तिहाई हिस्से का पैसा लेकर विवेक को दे दिया था,
कुछ खाने पहनने के लिए अपने लायक रखकर।
दिल्ली आना नहीं चाहते थे इसलिए एक छोटा सा कमरा रख लिया था जब तक जीवित थे तब तक के लिए। 
निशा को लगता था कि अम्मा के जाने के बाद बिल्कुल अकेले पड़ गए होंगे 
बाबूजी लेकिन वहां पुराने परिचितों के बीच उनका मन लगता था। 
दोनों चाचियां भी ध्यान रखती थी।
दिल्ली में दोनों भाई बहन की गृहस्थी भी मज़े से चल रही थी।

रविवार को निशा और विवेक का ही कार्यक्रम बन पाया मेरठ जाने का। 
निशा के पति अमित एक व्यस्त डाक्टर है महिने की लाखों की कमाई है उनका इस तरह से छुट्टी लेकर निकलना बहुत मुश्किल है,

मरीजों की बिमारी न रविवार देखती है न सोमवार। 

विवेक की पत्नी रेनू की अपनी जिंदगी है उच्च वर्गीय परिवारों में उठना बैठना है उसका , इस तरह के छोटे मोटे पारिवारिक पचड़ों में पड़ना उसे पसंद नहीं।

रास्ते भर निशा को लगा विवेक कुछ अनमना , गुमसुम सा बैठा है। 
वह बोली,”इतना परेशान मत हो, ऐसी कोई चिंता की बात नहीं है, उम्र हो रही है, थोड़े कमजोर हो गए हैं ठीक हो जाएंगे।”

विवेक झींकते हुए बोला,”अच्छा खासा चल रहा था,पता नहीं चाचाजी को एसी क्या मुसीबत आ गई दो चार साल और रख लेते तो। 
अब तो मकानों के दाम आसमान छू रहे हैं,तब कितने कम पैसों में अपने नाम करवा लिया तीसरा हिस्सा।”

निशा शान्त करने की मन्शा से बोली,”ठीक है न उस समय जितने भाव थे बाजार में उस हिसाब से दे दिए।
और बाबूजी आखरी समय अपने बच्चों के बीच बिताएंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा।”

विवेक उत्तेजित हो गया , बोला,”दीदी तेरे लिए यह सब कहना बहुत आसान है। तीन कमरों के फ्लैट में कहां रखूंगा उन्हें। 
रेनू से किट किट रहेगी सो अलग, उसने तो साफ़ मना कर दिया है

वह बाबूजी का कोई काम नहीं करेंगी | वैसे तो दीदी लड़कियां हक़ मांग ने तो बडी जल्दी खड़ी हो जाती हैं , करने के नाम पर क्यों पीछे हट जाती है।

आज कल लड़कियों की शिक्षा और शादी के समय में अच्छा खासा खर्च हो जाता है।
तू क्यों नहीं ले जाती बाबूजी को अपने घर, इतनी बड़ी कोठी है ,जिजाजी की लाखों की कमाई है?”

निशा को विवेक का इस तरह बोलना ठीक नहीं लगा।
पैसे लेते हुए कैसे वादा कर रहा था बाबूजी से,”आपको किसी भी वस्तु की आवश्यकता हो आप निसंकोच फोन कर देना मैं तुरंत लेकर आ जाऊंगा। 

बस इस समय हाथ थोड़ा तन्ग है।” नाममात्र पैसे छोडे थे बाबूजी के पास, और फिर कभी फटका भी नहीं उनकी सुध लेने।

निशा:”तू चिंता मत कर मैं ले जाऊंगी बाबूजी को अपने घर।”

सही है उसे क्या परेशानी, इतना बड़ा घर फिर पति रात दिन मरीजों की सेवा करते है, एक पिता तुल्य ससुर को आश्रय तो दे ही सकते हैं।

बाबूजी को देख कर उसकी आंखें भर आईं। इतने दुबले और बेबस दिख रहे थे,गले लगते हुए बोली,”पहले फोन करवा देते पहले लेने आ जाती।” बाबूजी बोलें,” तुम्हारी अपनी जिंदगी है क्या परेशान करता। 
वैसे भी दिल्ली में बिल्कुल तुम लोगों पर आश्रित हो जाऊंगा।”

रात को डाक्टर साहब बहुत देर से आएं,तब तक पिता और बच्चे सो चुके थे। 
खाना खाने के बाद सुकून से बैठते हुएं निशा ने डाक्टर साहब से कहा,” बाबूजी को मैं यहां ले आईं हूं। 
विवेक का घर बहुत छोटा है, 

उसे उन्हें रखने में थोड़ी परेशानी होती।” अमित के एक दम तेवर बदल गए,वह सख्त लहजे में बोला,” यहां ले आईं हूं से क्या मतलब है तुम्हारा❓
तुम्हारे पिताजी तुम्हारे भाई की जिम्मेदारी है।
मैंने बड़ा घर वृद्धाश्रम खोलने के लिए नहीं लिया था , अपने रहने के लिए लिया है। 
जायदाद के पैसे हड़पते हुए नहीं सोचा था साले साहब ने कि पिता की करनी भी पड़ेगी। 
रात दिन मेहनत करके पैसा कमाता हूं फालतू लुटाने के लिए नहीं है मेरे पास।”

पति के इस रूप से अनभिज्ञ थी निशा। “रात दिन मरीजों की सेवा करते हो मेरे पिता के लिए क्या आपके घर और दिल में इतना सा स्थान भी नहीं है।”

अमित के चेहरे की नसें तनीं हुईं थीं,वह लगभग चीखते हुए बोला,” मरीज़ बिमार पड़ता है पैसे देता है ठीक होने के लिए, मैं इलाज करता हूं पैसे लेता हूं। यह व्यापारिक समझोता है इसमें सेवा जैसा कुछ नहीं है।यह मेरा काम है मेरी रोजी-रोटी है।
बेहतर होगा तुम एक दो दिन में अपने पिता को विवेक के घर छोड़ आओ।”
निशा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। 
जिस पति की वह इतनी इज्जत करती है वें ऐसा बोल सकते हैं।

क्यों उसने अपने भाई और पति पर इतना विश्वास किया? 

क्यों उसने शुरू से ही एक एक पैसा का हिसाब नहीं रखा?

अच्छी खासी नौकरी करती थी , पहले पुत्र के जन्म पर अमित ने यह कह कर छुड़वा दी कि मैं इतना कमाता हूं तुम्हें नौकरी करने की क्या आवश्यकता है।

तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं रहेगी आराम से घर रहकर बच्चों की देखभाल करो।

आज अगर नौकरी कर रही होती तो अलग से कुछ पैसे होते उसके पास या दस साल से घर में सारा दिन काम करने के बदले में पैसे की मांग करती तो इतने तो हो ही जाते की पिता जी की देखभाल अपने दम पर कर पाती। 

कहने को तो हर महीने बैंक में उसके नाम के खाते में पैसे जमा होते हैं लेकिन उन्हें खर्च करने की बिना पूछे उसे इजाज़त नहीं थी।

भाई से भी मन कर रहा था कह दे शादी में जो खर्च हुआ था वह निकाल कर जो बचता है उसका आधा आधा कर दे।
कम से कम पिता इज्जत से तो जी पाएंगे। 
पति और भाई दोनों को पंक्ति में खड़ा कर के बहुत से सवाल करने का मन कर रहा था, जानती थी जवाब कुछ न कुछ तो अवश्य होंगे। 
लेकिन इन सवाल जवाब में रिश्तों की परतें दर परतें उखड़ जाएंगी और जो नग्नता सामने आएगी

उसके बाद रिश्ते ढोने मुश्किल हो जाएंगे। 
सामने तस्वीर में से झांकती दो जोड़ी आंखें जिव्हा पर ताला डाल रहीं थीं।
अगले दिन अमित के हस्पताल जाने के बाद जब नाश्ता लेकर निशा बाबूजी के पास पहुंची तो वे समान बांधे बैठें थे।
उदासी भरे स्वर में बोले,” मेरे कारण अपनी गृहस्थी मत ख़राब कर।
पता नहीं कितने दिन है मेरे पास कितने नहीं।
मैंने इस वृद्धाश्रम में बात कर ली है जितने पैसे मेरे पास है, उसमें मुझे वे लोग रखने को तैयार है।

ये ले पता तू मुझे वहां छोड़ आ , और निश्चित होकर अपनी गृहस्थी सम्भाल।”
निशा समझ गई बाबूजी की देह कमजोर हो गई है दिमाग नहीं।

दमाद काम पर जाने से पहले मिलने भी नहीं आया साफ़ बात है ससुर का आना उसे अच्छा नहीं लगा। 
क्या सफाई देती चुप चाप टैक्सी बुलाकर उनके दिए पते पर उन्हें छोड़ने चल दी। नजरें नहीं मिला पा रही थी,न कुछ बोलते बन रहा था। 
बाबूजी ने ही उसका हाथ दबाते हुए कहा,” परेशान मत हो बिटिया, परिस्थितियों पर कब हमारा बस चलता है। 
मैं यहां अपने हम उम्र लोगों के बीच खुश रहूंगा।”
तीन दिन हो गए थे बाबूजी को वृद्धाश्रम छोड़कर आए हुए।

निशा का न किसी से बोलने का मन कर रहा था न कुछ खाने का। 

फोन करके पूछने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी वे कैसे हैं? 

इतनी ग्लानि हो रही थी कि किस मुंह से पूछे। वृद्धाश्रम से ही फोन आ गया कि बाबूजी अब इस दुनिया में नहीं रहे।
दस बजे थे बच्चे पिकनिक पर गए थे आठ नौ बजे तक आएंगे, अमित तो आतें ही दस बजे तक है। 
किसी की भी दिनचर्या पर कोई असर नहीं पड़ेगा, किसी को सूचना भी क्या देना। 
विवेक आफिस चला गया होगा बेकार छुट्टी लेनी पड़ेगी।

रास्ते भर अविरल अश्रु धारा बहती रही कहना मुश्किल था पिता के जाने के ग़म में या अपनी बेबसी पर आखिरी समय पर

पिता के लिए कुछ नहीं कर पायी। 
तीन दिन केवल तीन दिन अमित ने उसके पिता को मान और आश्रय दे दिया होता तो वह हृदय से अमित को परमेश्वर का मान लेती।
वृद्धाश्रम के सन्चालक महोदय के साथ मिलकर उसने औपचारिकताएं पूर्ण की। 

वह बोल रहे थे,” इनके बहू , बेटा और दमाद भी है रिकॉर्ड के हिसाब से।उनको भी सूचना दे देते तो अच्छा रहता।

वह कुछ सम्भल चुकी थी बोली, नहीं इनका कोई नहीं है न बहू न बेटा और न दामाद।
बस एक बेटी है वह भी नाम के लिए ।”

सन्चालक महोदय अपनी ही धुन में बोल रहे थे,” परिवार वालों को सांत्वना और बाबूजी की आत्मा को शांति मिले।”

निशा सोच रही थी ‘ बाबूजी की आत्मा को शांति मिल ही गई होगी। जाने से पहले सबसे मोह भंग हो गया था। समझ गये होंगे कोई किसी का नहीं होता,

फिर क्यों आत्मा अशान्त होगी।’

” हां, परमात्मा उसको इतनी शक्ति दें कि किसी तरह वह बहन और पत्नी का रिश्ता निभा सकें | “

ये पैसा ही है जो एक हर रिश्ते की रिश्तेदारी निभा रहा है।

मैं भी एक बेटी हूँ मगर एक बात कहना चाहती हूँ कि हर इंसान को अपने हाथ नहीं काट देने चाहिए ममता मे हो के ........

अपने भाविष्य के लिए कुछ न कुछ रख लेना चाहिए       

........बाद में तो उनका ही हैं मगर जीते जी मरने से तो अच्छा है ....

👉 एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई

🏳️ध्यान से पढ़ियेगा👇      〰️〰️〰️〰️〰️ एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई कि  ये फिल्म अभिनेता (या अभिनेत्री) ऐसा क्या करते हैं कि इनको एक फिल्म...