गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

16 साल से जिस घोटले पर थी कांग्रेस सरकार चुप

आपको ये जानकार हैरानी होगी कि भारतीय सेना द्वारा गुलाम कश्मीर की जमीन का किराया दिया जाता रहा है. लेकिन ये बात पूरी तरह से सही है. सीबीआई के अनुसार भारतीय सेना पिछले 16 सालों से गुलाम कश्मीर स्तिथ चार प्लाटों का किराया दे रही थी. सीबीआई ने अब इसकी जांच शुरू कर दी है.

सीबीआइ ने अब इस मामले की जांच पड़ताल शुरू कर दी है. सीबीआई की एफआइआर के अनुसार खसरा नंबर- 3,000, 3,035, 3,041, 3,045 की 122 कनाल और 18 मारला जमीन का इस्तेमाल भारतीय सेना कर रही है. और सच्चाई यह है कि इस खसरा नंबर की जमीन गुलाम कश्मीर में चली गई है. लेकिन पिछले 16 वर्षों से इस जमीन के किराये की रकम सरकारी खजाने से निकाली जा रही थी.

ये बात सामने आयी है कि डिफेंस एस्टेट विभाग के कुछ अधिकारियों ने आपराधिक साजिश के तहत इस जमीन को भारत में दिखाकर उसे सेना के उपयोग में दिखा दिया और इसके लिए किराया भी दिया जाने लगा. अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि किराया किसी एक व्यक्ति को दिया जाता था या कई लोगों में बांटा जाता था. सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हो सकता है कि इस घोटाले में सेना के कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हों.

सीबीआइ की एफआइआर से यह पता लगा है कि तत्कालीन सब डिविजनल डिफेंस एस्टेट अधिकारी आरएएस चंद्रवंशी, नौशेरा के पटवारी दर्शन कुमार ने राजेश कुमार और अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर यह काम किया था. इन लोगों ने जमीन के फर्जी दस्तावेज जमा किए थे. सेना अधिकारी, एस्टेट अधिकारी और अन्य अधिकारियों वाले बोर्ड ने जमीन के लिए 4.99 लाख रुपये जारी किए. इस मामले में सरकारी खजाने को छह लाख रुपये का नुकसान पहुंचा. एफआइआर में यह भी कहा गया है कि सेना ने नागरिकों से यह जमीन अधिग्रहीत की थी. बोर्ड ने जमीन की जांच करने के बाद किराए के लिए मंजूरी प्रदान की थी. लेकिन अधिकारियों के बोर्ड ने एक दूसरे के साठगांठ कर जांच में गलत जानकारी दी थी. सीबीआइ ने बताया कि बोर्ड की बैठक वर्ष 2000 में बुलाई गई जिसमें चंद्रवंशी और दर्शन कुमार को रक्षा बलों में कार्यरत बताया गया और राजेश कुमार को 4.99 लाख रुपये किराए के जारी किए गए.

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

एक ईमानदार को मिटाने

जो लड़ते थे कभी कुत्तो की तरह, उनमे अब संधि हो गई !
एक ईमानदार को मिटाने के लिए, सारी सियासत नंगी हो गई!!

तीन लड्डू

एक बुज़ुर्ग दंपत्ति का बेटा जो दिल्ली के एक बड़े विवि में पढता था कुछ दिन की छुट्टियों में गाँव आया, माँ ने लाड़ले के आने की ख़ुशी में प्यार से लड्डू बनाये थे, सो लाकर सामने रख दिये बोली ले बेटा लड्डू खा तेरे लिए बनाये हैं! बेटा प्लेट की ओर देखा तो उसमें 2 लड्डू थे....हर बात में तर्क करने वाला बेटा 'प्रगतिशीलता' दिखाते हुए बोला माँ तीन लड्डू क्यों दे दिए 2 वापस ले जाओ! माँ बोली बेटा 3 कहाँ हैं? 2 ही तो हैं....देख अच्छे से! बेटा बोला कैसे 2 हैं....पूरे तीन लड्डू हैं मैं साबित कर सकता हूँ....बेचारी माँ ठहरी गँवार बोली कैसे? उसनें कुछ यूँ गिनती शुरू की....1 और 2, इन्हें जोड़ कर हुए ना तीन? माँ बोली नहीं बेटा मुझे तो 2 ही दिख रहे हैं.....बेटा तो बेटा अड़ गया बोला 3 ही हैं....बार बार वही तर्क, साबित करने का वही तरीका 1 और 2 इन्हें जोड़ हो गए ना पूरे 3....

माँ बेचारी कहाँ तक बहस करती, चौंका चूल्हा करना था चुपचाप बेटे की हाँ में हाँ मिलाकर चली गई, जाते जाते 'अजी सुनते हो' की टेर लगा गई....सो वहीं पास में ही बाबू जी बैठे थे, कुछ काम कर रहे थे, पर माँ-बेटे की बात भी सुन रहे थे, उन्होंने सब सुना पर एक माँ और बेटे के बीच बोलना ठीक ना समझा....पर अब माँ जा चुकी थी, वे चुपचाप उठकर आये और बोले हाँ बेटा क्या समझा रहे थे अपनी माँ को? ज़रा हम भी तो सुनें....बेटा बोला रहने दीजिए बाबू जी आप नहीं समझेंगे, बाबू जी बोले....बिलकुल समझेंगे बेटा बताओ तो सही....बेटा फिर शुरू, बोला बाबू जी ये कितने लड्डू हैं? 3 ना....बाबू जी, देखे और बोले 2 हैं बेटा....लड़का फिर वही तरीका अपनाया 1 और 2 = 3....बाबू जी JNU में पढ़ने वाले बेटे का क्रांतिकारी स्वभाव तत्काल भाँप गए और बोले.....हाँ बेटा तुम सही कहते हो, तुम्हारी माँ गँवार है ना, कहाँ समझती ये सब, लड्डू 2 नहीं 3 ही हैं, मैं तुमसे सहमत हूँ....बेटा खुश हो गया, उसे लगा उसनें सच्चा क्रांतिकारी बनने की पहली परीक्षा पास कर ली।

तभी उन्होंने क्रांति कुमार की माँ को आवाज़ दी, माँ भागी चली आई....बाबू जी बोले 1 लड्डू उठाओ, खाओ, माँ ने खा लिया, दूसरा खुद बाबू जी खा गए और बेटे से कहा बेटा वो जो तीसरा वाला है ना, तुम खा लेना....बेटा अब बाप का मुँह देखते रह गया, जब उन्होंने धीरे से बताया कि वो बचपन में शाखा जाया करते थे। 

गुंडागर्दी जायज़ नहीं है. लेकिन............

रानी पद्मावती पर फिल्म बना रहे संजय लीला भंसाली के साथ जो हुआ, कितना उचित, कितना अनुचित ।

कहते हैं सिनेमा समाज का आईना होता है, ठीक वैसे ही जैसे साहित्य समाज का आइना होता है. फिर   ये आइना अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने की छूट कैसे दे देता है ? 

"...यहां प्रताप का वतन पला है आज़ादी के नारों पे, 
कूद पड़ी थी यहां हज़ारों पद्मिनियां अंगारों पे.
बोल रही है कण कण से कुर्बानी राजस्थान की..."

फिल्म के लिए रिसर्च करते समय संजय लीला भंसाली ये नहीं पढ़ा या सुना था क्या? भाई पद्मिनी पे पिक्चर बना रहे थे तो मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत भी पढ़ा ही होगा. 

जब इतिहास के हर दस्तावेज़ में पद्मिनी को जगह ही इस लिए मिली कि वो अलाउद्दीन खिलजी के आने के पहले हज़ारों औरतों के साथ आग में कूद गई, तो कौन से ‘अल्टरनेट व्यू’ से आप खिलजी और पद्मिनी को प्रेम कहानी के खांचे में ढाल रहे हैं? और अगर ‘अल्टरनेट व्यू’ के नाम पे कुछ भी जायज़ है तो फिर विरोध के ‘अल्टरनेट’ तरीके पर इतना हंगामा काहे के लिए है? 

करनी सेना ने संजय लीला भंसाली के साथ सही नहीं किया.

लेकिन करनी सेना जैसे संगठनों को ताकत कहां से आती है? 

उसी बॉलीवुड से आती है, जो संजय लीला भंसाली को थप्पड़ पड़ने पे तो अभिव्यक्ति की आज़ादी चिल्लाने लगता है, लेकिन ए आर रहमान के खिलाफ़ फतवा आने के बाद मुंह ढंक कर सोया रहता है. 

करनी सेना को ताकत उस कोर्ट से आती है जो जल्ली कट्टू को जानवरों पर अत्याचार मान कर बैन कर देता है, लेकिन बकरीद के खिलाफ़ याचिका को सुनने से ही इंकार कर देता है. 

करनी सेना को ताकत उस सिस्टम से मिलती है जो एम एफ़ हुसैन को हिंदू देवी देवताओं की अश्लील तस्वीरें बनाने पर तो सुरक्षा मुहैया कराता है लेकिन चार्ली हेब्दो वाला कार्टून अपने पब्लीकेशन में छापने वाली औरत को दर दर धक्के खाने के लिए मजबूर कर देता है. 

गुंडागर्दी जायज़ नहीं है. लेकिन अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर अपनी ‘इंटेलेक्चुअल गुंडागर्दी’ भी तो बंद कीजिए !

👉 एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई

🏳️ध्यान से पढ़ियेगा👇      〰️〰️〰️〰️〰️ एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई कि  ये फिल्म अभिनेता (या अभिनेत्री) ऐसा क्या करते हैं कि इनको एक फिल्म...