सोमवार, 18 दिसंबर 2017

असंयमित फैशन

यदि हमारे युवक - युवतियाँ अभिनेताओं तथा अभिनेत्रियों के पहनावा, श्रृंगार, मेकअप, फैशन, पैन्ट, बुश्शर्ट, साड़ियों का अंधानुकरण करते रहे तो असंयमित वासना के द्वार खुले रहेंगे। गंदी फिल्में निरन्तर हमारे युवकों को मानसिक व्यभिचार की ओर खींच रही हैं। उनका मन निरन्तर अभिनेत्रियों के रूप, सौन्दर्य, फैशन और नाज - नजरों में भँवर की तरह अटका रहता है। लाखों - करोड़ों न जाने कितने तरुण - तरुणियों पर इसका जहरीला असर हुआ है फिर भी हम इसे मनोरंजन मानते हैं।

रविवार, 1 अक्तूबर 2017

👉 रावण को जलाने से कुछ नहीं होगा....

🔴 मगर सोचो जरा आज कितने रावण हैं जो राह चलती बच्ची, लड़की या फिर औरत को  कैसे ओर किस तरह नोचते हैं... मेरी तो ये सब सुनकर भी रूह कांप जाती है, ओर उन लोगों में से दस प्रतिशत  को  भी सजा  नहीं  मिल पाती!         

🔵 जैसा आज के लोग कर रहे हैं, रावण ने तो ऐसा वैसा कोई काम भी नही किया था और आप उसे हर साल जलाते हो, और सोचो जरा कितने लोग ऐसे हैं जो नन्ही सी बच्ची तक  को अपहरण किये बगैर बलात्कार करके मार डालते हैं क्या कभी ऐसे लोगों को  रावण की जगह बीच चौराहों पर जला पाओगे... नहीं ना... क्योंकि कानून आड़े आता है अरे रावण को सदियों से जला रहे हो... कोई कानून आड़े आया... आया क्या... जो आज के बलात्कारी करते हैं वैसा कोई घिनोना काम भी तो रावण ने नहीं किया था फिर भी देशभर के हर चौराहों पर उसे जलाने का नाटक करते हो...!

🔴 जलाना हैं तो उन पाखंडी साधु संतों को जलाओ जो धर्म के नाम पर बहु बेटियों का शारीरिक शोषण कर रहे हैं....

🔵 जलाना है तो सफेद खादी वस्त्र धारण किये उन पाखंडियों को जलाओ जो धर्म और जाति के नाम पर उंच नीच में समाज को बाँट रहे हैं....जिनके दस नहीं हजारो सर हैं। 

🔴 मैं सिर्फ इतना ही कहूँगा कि रावण जलाने से कुछ हासिल नहीं होगा, खुद के अन्दर के रावण को जलाओ अपने अन्दर छुपी बुराईयों को जलाओ दुनिया में से एक रावण कम हो जाएगा!

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गुरुवार, 28 सितंबर 2017

हम मुसलमान नही हिन्दू हैं

हम मुसलमान नही हिन्दू हैं हमने विदेशी आक्रमणकारियों की वजह से मजहब बदला है – पाकिस्तानी एक्टिविस्ट

पाकिस्तान की ह्यूमन राईट एक्टिविस्ट फौजिया सईद खुलेआम कहती हैं कि हम पहले हिन्दू थे और हमने विदेशी आक्रमणकारियों की वजह से अपना मजहब बदल लिया है । परन्तु भारत में जब आरएसएस के प्रमुख मोहन  भागवत जब ये कहते हैं कि “भारत में रहने वाले सभी हिन्दू हैं चाहे वो किसी भी पूजा पद्धति को मानते हो “ तो हमारे देश में ही लोगों को एतराज़ हो जाता है । वोट बैंक की राजनीती के लिए इस देश और भू खंड की संस्कृति को भूलकर मुल्लों के तलवे चाटने वाली पार्टियों को फौजिया सईद जी का ये विडियो जरुर देखना चाहिए ।

बता दें कि फौजिया सईद का जन्म लाहौर में 3 जून 1951 को हुआ था – उन्होंने बहुत सारी किताबें भी लिखी हैं – वे पाकिस्तान हेरिटेज संस्था लोकविर्सा की डायरेक्टर भी हैं  , उनको पाकिस्तान में खुली मानसिकता और सच का साथ देने वाली महिला के तौर पर जाना जाता है , फ़ौज़िया को लगता है अगर पाकिस्तान कश्मीर का राग अलापना छोड़ दे तो भारत की मदद से वो एक समृद्ध देश बन सकता है लेकिन पाकिस्तान चीन के हाथों में खेल रहा है और मजहबी कट्टरपंथी मानसिकता से ग्रस्त है ।

देखें ये विडियो और जाने पाकिस्तान की इस स्कॉलर का सच का क़बूलनामा, जिसको देखकर बड़े बड़े कट्टरपंथियों की बोलती हो जाएगी बंद।




शनिवार, 23 सितंबर 2017

👉 धर्म के लिए मरना बेहतर समझा

🌹 अगर गुरु तेगबहादुर जी नहीं होते तो शायद इस देश में अभी हिन्दू नाम मात्र के लिए भी नहीं बचते थे और हम सभी भी यही कोशिश कर रहे होते कि पुरे संसार का इस्लामीकरण केसे किया जाए?
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🔴 औरंगजेब के शासन काल की बात है. औरंगजेब के दरबार में एक विद्वान पंडित आकर रोज़ गीता के श्लोक पढ़ता और उसका अर्थ सुनाता था, पर वह पंडित गीता में से कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था.

🔵 एक दिन पंडित बीमार हो गया और औरंगजेब को गीता सुनाने के लिए उसने अपने बेटे को भेज दिया परन्तु उसे बताना भूल गया कि उसे किन-किन श्लोकों का अर्थ राजा को नहीं बताना. पंडित के बेटे ने जाकर औरंगजेब को पूरी गीता का अर्थ सुना दिया. गीता का पूरा अर्थ सुनकर औरंगजेब को यह ज्ञान हो गया कि प्रत्येक धर्म अपने आपमें महान है किन्तु औरंगजेब की हठधर्मिता थी कि उसे अपने धर्म के धर्म के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा सहन नहीं थी.

🔴 औरंगजेब ने सबको इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दे दिया और संबंधित अधिकारी को यह कार्य सौंप दिया. औरंगजेब ने कहा, “‘सबसे कह दो या तो इस्लाम धर्म कबूल करें या मौत को गले लगा लें.” इस प्रकार की ज़बरदस्ती शुरू हो जाने से अन्य धर्म के लोगों का जीवन कठिन हो गया.

🔵 जुल्म से ग्रस्त कश्मीर के पंडित गुरु तेगबहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस प्रकार ‍इस्लाम को स्वीकार करने के लिए अत्याचार किया जा रहा है, यातनाएं दी जा रही हैं. और उनसे अपने धर्म को बचाने की गुहार लगाई.

🔴 तत्पश्चात गुरु तेगबहादुर जी ने पंडितों से कहा कि आप जाकर औरंगजेब से कह ‍दें कि यदि गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उनके बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे और यदि आप गुरु तेगबहादुर जी से इस्लाम धारण नहीं करवा पाए तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नहीं करेंगे’. औरंगजेब ने यह स्वीकार कर लिया.

🔵 गुरु तेगबहादुर दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में स्वयं गए. औरंगजेब ने उन्हें बहुत से लालच दिए, पर गुरु तेगबहादुर जी नहीं माने तो उन पर ज़ुल्म किए गये, उन्हें कैद कर लिया गया, दो शिष्यों को मारकर गुरु तेगबहादुर जी को ड़राने की कोशिश की गयी, पर वे नहीं माने. उन्होंने औरंगजेब से कहा- ‘यदि तुम ज़बरदस्ती लोगों से इस्लाम धर्म ग्रहण करवाओगे तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो क्योंकि इस्लाम धर्म यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म करके मुस्लिम बनाया जाए.’

🌹 गुरुद्वारा शीश गंज साहिब

🔴 औरंगजेब यह सुनकर आगबबूला हो गया. उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने का हुक्म ज़ारी कर दिया और गुरुतेग बहादुर जी ने हंसते-हंसते बलिदान दे दिया. गुरुतेग बहादुर जी की याद में उनके ‘शहीदी स्थल’ पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा ‘शीश गंज साहिब’ है.

🔵 शर्म कि बात तो ये हे कि आज ओरंगजेब के नाम से अनेको सड़के हे और आज भी चल रही हे

शनिवार, 18 मार्च 2017

तरबूज की कहानी

मनोहर पार्रिकर द्वारा तरबूज की सच्ची कहानी

"मैं गोवा के पारा गाँव से हूँ इसलिए हमें पार्रिकर कहा जाता है।हमारा गाँव अपने तरबूजों के लिए प्रसिद्ध है। जब मैं छोटा था मेरे गाँव के किसान फसल के अंत में मई महीने में तरबूज खाने की प्रतियोगिता आयोजित करते थे।

गाँव और आस पास के सभी बच्चे तरबूज खाने के लिए बुलाए जाते थे और उन्हें अधिक से अधिक जितना तरबूज वे खा सकते थे खाना होता था।

वर्षों बाद मैं I.I.T.MUMBAI इंजीनियरिंग पढ़ने आ गया। मैं लगभग 6•5 वर्ष बाद अपने गाँव पहुँचा। मैंने तरबूजों के खेत और बाजार देखे।तरबूजे गायब थे। जो थोड़े बहुत थे वह भी काफी छोटे थे।

मैं उन किसानों को देखने पहुँचा जो तरबूज खाने की प्रतियोगिताएँ आयोजित करते थे। अब यह जिम्मेदारी उनके बेटे देख रहे थे। लेकिन मुझे पहले से कुछ अंतर दिखाई दिया।

पहले बुजुर्ग किसान हमें तरबूज खाने के बाद बीज थूकने के लिए कटोरी देते थे। एक शर्त यह भी होती थी कि तरबूज खाते समय कोई भी बीज कटना नहीं चाहिए।

वह हमें खाने के लिए अपने खेत के अच्छे से अच्छा, बड़े से बड़ा और मीठे से मीठा तरबूज देता थे। इस तरह से वह अपनी अगली फसल के लिए सर्वश्रेष्ठ सर्वोत्तम बीज चुन लेता थे। अगली फसल के तरबूज और भी अच्छे, बड़े और मीठे होते थे। हम वास्तव में बिना वेतन के सर्वश्रेष्ठ बीज चयन करने वाले कुशल बाल श्रमिक होते थे। यह मुझे बाद में पता चला।

उनके बेटों को लगा कि बड़े और मीठे तरबूज बाजार में बेचने पर अधिक धन मिलेगा। इसलिए उन्होंने बड़े, मीठे और अच्छे तरबूज बेचने शुरू कर दिए और प्रतियोगिता में छोटे और कम मीठे तरबूज रखने शुरू कर दिए।

इस प्रकार वर्ष प्रति वर्ष तरबूजे छोटे और छोटे होते गए। तरबूज की उत्पादकता एक वर्ष की होती है। इस प्रकार सात वर्ष में गोवा के पारा गाँव के सर्वश्रेष्ठ तरबूज विलुप्त हो गए।"

"मनुष्य में औसत उत्पादकता 25 वर्ष है। नस्ल परिवर्तन में लगभग 200 वर्ष लग जाते हैं। हम अपनी पीढ़ियों को शिक्षित करने में क्या गलती कर रहे हैं इसका असर 200 वर्ष बाद पता चलेगा। और निश्चित रूप से उसको सुधारने में भी ।"

"जब तक हम अपनी शिक्षा व्यवस्था में सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षित एवं सुयोग्य अध्यापकों को स्थान नहीं देंगे हम विश्व में सर्वश्रेष्ठ नहीं हो सकते। हमें शिक्षा व्यवस्था में सर्वश्रेष्ठ लोगों को बिना भेदभाव के स्थान देना चाहिए।"

अगली पीढ़ी तक अपनी संस्कृति एवं सभ्यता एवं ज्ञान की विविधता को पहुँचाने की जिम्मेदारी सबकी है भारत के प्रत्येक नागरिक की है।और सभी को यह जिम्मेदारी पूरी लगन और ईमानदारी से निभाना चाहिए।


गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

16 साल से जिस घोटले पर थी कांग्रेस सरकार चुप

आपको ये जानकार हैरानी होगी कि भारतीय सेना द्वारा गुलाम कश्मीर की जमीन का किराया दिया जाता रहा है. लेकिन ये बात पूरी तरह से सही है. सीबीआई के अनुसार भारतीय सेना पिछले 16 सालों से गुलाम कश्मीर स्तिथ चार प्लाटों का किराया दे रही थी. सीबीआई ने अब इसकी जांच शुरू कर दी है.

सीबीआइ ने अब इस मामले की जांच पड़ताल शुरू कर दी है. सीबीआई की एफआइआर के अनुसार खसरा नंबर- 3,000, 3,035, 3,041, 3,045 की 122 कनाल और 18 मारला जमीन का इस्तेमाल भारतीय सेना कर रही है. और सच्चाई यह है कि इस खसरा नंबर की जमीन गुलाम कश्मीर में चली गई है. लेकिन पिछले 16 वर्षों से इस जमीन के किराये की रकम सरकारी खजाने से निकाली जा रही थी.

ये बात सामने आयी है कि डिफेंस एस्टेट विभाग के कुछ अधिकारियों ने आपराधिक साजिश के तहत इस जमीन को भारत में दिखाकर उसे सेना के उपयोग में दिखा दिया और इसके लिए किराया भी दिया जाने लगा. अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि किराया किसी एक व्यक्ति को दिया जाता था या कई लोगों में बांटा जाता था. सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हो सकता है कि इस घोटाले में सेना के कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हों.

सीबीआइ की एफआइआर से यह पता लगा है कि तत्कालीन सब डिविजनल डिफेंस एस्टेट अधिकारी आरएएस चंद्रवंशी, नौशेरा के पटवारी दर्शन कुमार ने राजेश कुमार और अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर यह काम किया था. इन लोगों ने जमीन के फर्जी दस्तावेज जमा किए थे. सेना अधिकारी, एस्टेट अधिकारी और अन्य अधिकारियों वाले बोर्ड ने जमीन के लिए 4.99 लाख रुपये जारी किए. इस मामले में सरकारी खजाने को छह लाख रुपये का नुकसान पहुंचा. एफआइआर में यह भी कहा गया है कि सेना ने नागरिकों से यह जमीन अधिग्रहीत की थी. बोर्ड ने जमीन की जांच करने के बाद किराए के लिए मंजूरी प्रदान की थी. लेकिन अधिकारियों के बोर्ड ने एक दूसरे के साठगांठ कर जांच में गलत जानकारी दी थी. सीबीआइ ने बताया कि बोर्ड की बैठक वर्ष 2000 में बुलाई गई जिसमें चंद्रवंशी और दर्शन कुमार को रक्षा बलों में कार्यरत बताया गया और राजेश कुमार को 4.99 लाख रुपये किराए के जारी किए गए.

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

एक ईमानदार को मिटाने

जो लड़ते थे कभी कुत्तो की तरह, उनमे अब संधि हो गई !
एक ईमानदार को मिटाने के लिए, सारी सियासत नंगी हो गई!!

तीन लड्डू

एक बुज़ुर्ग दंपत्ति का बेटा जो दिल्ली के एक बड़े विवि में पढता था कुछ दिन की छुट्टियों में गाँव आया, माँ ने लाड़ले के आने की ख़ुशी में प्यार से लड्डू बनाये थे, सो लाकर सामने रख दिये बोली ले बेटा लड्डू खा तेरे लिए बनाये हैं! बेटा प्लेट की ओर देखा तो उसमें 2 लड्डू थे....हर बात में तर्क करने वाला बेटा 'प्रगतिशीलता' दिखाते हुए बोला माँ तीन लड्डू क्यों दे दिए 2 वापस ले जाओ! माँ बोली बेटा 3 कहाँ हैं? 2 ही तो हैं....देख अच्छे से! बेटा बोला कैसे 2 हैं....पूरे तीन लड्डू हैं मैं साबित कर सकता हूँ....बेचारी माँ ठहरी गँवार बोली कैसे? उसनें कुछ यूँ गिनती शुरू की....1 और 2, इन्हें जोड़ कर हुए ना तीन? माँ बोली नहीं बेटा मुझे तो 2 ही दिख रहे हैं.....बेटा तो बेटा अड़ गया बोला 3 ही हैं....बार बार वही तर्क, साबित करने का वही तरीका 1 और 2 इन्हें जोड़ हो गए ना पूरे 3....

माँ बेचारी कहाँ तक बहस करती, चौंका चूल्हा करना था चुपचाप बेटे की हाँ में हाँ मिलाकर चली गई, जाते जाते 'अजी सुनते हो' की टेर लगा गई....सो वहीं पास में ही बाबू जी बैठे थे, कुछ काम कर रहे थे, पर माँ-बेटे की बात भी सुन रहे थे, उन्होंने सब सुना पर एक माँ और बेटे के बीच बोलना ठीक ना समझा....पर अब माँ जा चुकी थी, वे चुपचाप उठकर आये और बोले हाँ बेटा क्या समझा रहे थे अपनी माँ को? ज़रा हम भी तो सुनें....बेटा बोला रहने दीजिए बाबू जी आप नहीं समझेंगे, बाबू जी बोले....बिलकुल समझेंगे बेटा बताओ तो सही....बेटा फिर शुरू, बोला बाबू जी ये कितने लड्डू हैं? 3 ना....बाबू जी, देखे और बोले 2 हैं बेटा....लड़का फिर वही तरीका अपनाया 1 और 2 = 3....बाबू जी JNU में पढ़ने वाले बेटे का क्रांतिकारी स्वभाव तत्काल भाँप गए और बोले.....हाँ बेटा तुम सही कहते हो, तुम्हारी माँ गँवार है ना, कहाँ समझती ये सब, लड्डू 2 नहीं 3 ही हैं, मैं तुमसे सहमत हूँ....बेटा खुश हो गया, उसे लगा उसनें सच्चा क्रांतिकारी बनने की पहली परीक्षा पास कर ली।

तभी उन्होंने क्रांति कुमार की माँ को आवाज़ दी, माँ भागी चली आई....बाबू जी बोले 1 लड्डू उठाओ, खाओ, माँ ने खा लिया, दूसरा खुद बाबू जी खा गए और बेटे से कहा बेटा वो जो तीसरा वाला है ना, तुम खा लेना....बेटा अब बाप का मुँह देखते रह गया, जब उन्होंने धीरे से बताया कि वो बचपन में शाखा जाया करते थे। 

गुंडागर्दी जायज़ नहीं है. लेकिन............

रानी पद्मावती पर फिल्म बना रहे संजय लीला भंसाली के साथ जो हुआ, कितना उचित, कितना अनुचित ।

कहते हैं सिनेमा समाज का आईना होता है, ठीक वैसे ही जैसे साहित्य समाज का आइना होता है. फिर   ये आइना अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने की छूट कैसे दे देता है ? 

"...यहां प्रताप का वतन पला है आज़ादी के नारों पे, 
कूद पड़ी थी यहां हज़ारों पद्मिनियां अंगारों पे.
बोल रही है कण कण से कुर्बानी राजस्थान की..."

फिल्म के लिए रिसर्च करते समय संजय लीला भंसाली ये नहीं पढ़ा या सुना था क्या? भाई पद्मिनी पे पिक्चर बना रहे थे तो मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत भी पढ़ा ही होगा. 

जब इतिहास के हर दस्तावेज़ में पद्मिनी को जगह ही इस लिए मिली कि वो अलाउद्दीन खिलजी के आने के पहले हज़ारों औरतों के साथ आग में कूद गई, तो कौन से ‘अल्टरनेट व्यू’ से आप खिलजी और पद्मिनी को प्रेम कहानी के खांचे में ढाल रहे हैं? और अगर ‘अल्टरनेट व्यू’ के नाम पे कुछ भी जायज़ है तो फिर विरोध के ‘अल्टरनेट’ तरीके पर इतना हंगामा काहे के लिए है? 

करनी सेना ने संजय लीला भंसाली के साथ सही नहीं किया.

लेकिन करनी सेना जैसे संगठनों को ताकत कहां से आती है? 

उसी बॉलीवुड से आती है, जो संजय लीला भंसाली को थप्पड़ पड़ने पे तो अभिव्यक्ति की आज़ादी चिल्लाने लगता है, लेकिन ए आर रहमान के खिलाफ़ फतवा आने के बाद मुंह ढंक कर सोया रहता है. 

करनी सेना को ताकत उस कोर्ट से आती है जो जल्ली कट्टू को जानवरों पर अत्याचार मान कर बैन कर देता है, लेकिन बकरीद के खिलाफ़ याचिका को सुनने से ही इंकार कर देता है. 

करनी सेना को ताकत उस सिस्टम से मिलती है जो एम एफ़ हुसैन को हिंदू देवी देवताओं की अश्लील तस्वीरें बनाने पर तो सुरक्षा मुहैया कराता है लेकिन चार्ली हेब्दो वाला कार्टून अपने पब्लीकेशन में छापने वाली औरत को दर दर धक्के खाने के लिए मजबूर कर देता है. 

गुंडागर्दी जायज़ नहीं है. लेकिन अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर अपनी ‘इंटेलेक्चुअल गुंडागर्दी’ भी तो बंद कीजिए !

👉 एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई

🏳️ध्यान से पढ़ियेगा👇      〰️〰️〰️〰️〰️ एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई कि  ये फिल्म अभिनेता (या अभिनेत्री) ऐसा क्या करते हैं कि इनको एक फिल्म...