सोमवार, 21 सितंबर 2020

👉 प्रभु की कृपा

अन्धा आँख प्राप्ति को प्रभु की कृपा समझता है, गरीब धन प्राप्ति को प्रभु की कृपा समझता है, रोगी निरोग होने को प्रभु की कृपा समझता है; किन्तु ये सब धोखा है, ये सब प्रभु की कृपा नहीं है। प्रभु जिस पर कृपा करते हैं, उसे अपनी शरण में ले लेते हैं और उस जीव की सब आसक्तियों को लूट लेते हैं, तब जीव एक मात्र प्रभु का आश्रय लेता है। यही प्रभु की सच्ची कृपा है।

भगवान् की कृपा और माया की कृपा, जीव पर ये दो कृपा होती रहती हैं। इन दोनों कृपाओं में बहुत अंतर है।  माया जब खुश होकर कृपा करती है तो धन, दौलत, यश, सम्मान दे देती है। माया की कृपा से मैं और मेरा के भाव जागृत हो जाते हैं। भगवान् ने ध्रुव जी से कहा- 

सत्याआशिषो हि  ...  वत्सकमनुग्रहकातरोअस्मान।| श्रीमद्भागवत 04-09-17 

जब प्रभु कृपा करते हैं तो धन आदि देने से पहले, मैं व मेरा की वृत्ति हटा देते हैं। जैसे प्रभु ने सुदामा जी को धन तो दिया परन्तु देने से पहले उनमें मेरा-तेरा की भावना बिल्कुल खत्म कर दी। भगवान् अपने भक्त का सदा भला चाहते हैं। जैसे - नारद जी ने भगवान् को नारी-विरह का श्राप दिया, परन्तु भगवान् ने नारद जी का कल्याण ही किया, उन पर रुष्ट नहीं हुए।

भगवान् तीन तरह से कृपा करते हैं। एक कृपा साक्षात् दर्शन देकर करते हैं, दूसरी कृपा मन से मंगल चाहकर करते हैं, जैसे कि अनेक निमित्त बना देना, बिना किसी प्रयत्न के कार्य बना देना  और तीसरी कृपा संस्पर्श से करते हैं। जैसे मछली अण्डे को दूर से देखती है और उसका पालन करती है। कछुआ दूर से ही अपने अण्डे का चिंतन करता है, इसी से अण्डे का पालन होता है, और वह बढ़ता है। 

सूर्य कभी नहीं पूछता कि अन्धकार कितना पुराना है? अन्धकार आज का है या वर्षों पुराना है। सूर्य की किरणें तो अन्धकार के पास पहुँचते ही उसे मिटा देती हैं। ऐसे ही प्रभु की कृपा कभी यह नहीं पूछती कि सामने वाला कितना बड़ा पापी है? प्रभु की कृपा होते ही जीव के समस्त पाप व कष्ट मिट जाते हैं। अगर प्रभु की करुणा पाना चाहते हो तो अपनी अहंता को निकाल दो।


गुरुवार, 17 सितंबर 2020

👉 प्रोत्साहित करें.. हतोत्साहित नही....

पिता बेटे को डॉक्टर बनाना चाहता था। बेटा इतना मेधावी नहीं था कि PMT क्लियर कर लेता। इसलिए दलालों से MBBS की सीट खरीदने का जुगाड़ किया गया। जमीन, जायदाद जेवर गिरवी रख के 35 लाख रूपये दलालों को दिए, लेकिन वहाँ धोखा हो गया।

फिर किसी तरह विदेश में लड़के का एडमीशन कराया गया, वहाँ भी चल नहीं पाया। फेल होने लगा.. डिप्रेशन में रहने लगा। रक्षाबंधन पर घर आया और यहाँ फांसी लगा ली। 20 दिन बाद माँ बाप और बहन ने भी कीटनाशक खा के आत्म हत्या कर ली।

अपने बेटे को डॉक्टर बनाने की झूठी महत्वाकांक्षा ने पूरा परिवार लील लिया। माँ बाप अपने सपने, अपनी महत्वाकांक्षा अपने बच्चों से पूरी करना चाहते हैं ...

मैंने देखा कि कुछ माँ बाप अपने बच्चों को

Topper बनाने के लिए इतना ज़्यादा अनर्गल दबाव डालते हैं कि बच्चे का स्वाभाविक विकास ही रुक जाता है। 

आधुनिक स्कूली शिक्षा बच्चे की evaluation और grading ऐसे करती है जैसे सेब के बाग़ में सेब की खेती की जाती है। पूरे देश के करोड़ों बच्चों को एक ही syllabus पढ़ाया जा रहा है .......

For Example  -- जंगल में सभी पशुओं को एकत्र कर सबका इम्तहान लिया जा रहा है और पेड़ पर चढ़ने की क्षमता देख के Ranking निकाली जा रही है। यह शिक्षा व्यवस्था ये भूल जाती है कि इस प्रश्नपत्र में तो बेचारा हाथी का बच्चा फेल हो जाएगा और बन्दर First आ जाएगा।

अब पूरे जंगल में ये बात फ़ैल गयी कि कामयाब वो जो झट से कूद के पेड़ पर चढ़ जाए। बाकी सबका जीवन व्यर्थ है।

इसलिए उन सब जानवरों के,  जिनके बच्चे कूद के झटपट पेड़ पर न चढ़ पाए, उनके लिए कोचिंग Institute खुल गए, व्हाँ पर बच्चों को पेड़ पर चढ़ना सिखाया जाता है। चल पड़े हाथी, जिराफ, शेर और सांड़, भैंसे और समंदर की सब मछलियाँ चल पड़ीं अपने बच्चों के साथ, Coaching institute की ओर ........ हमारा बिटवा भी पेड़ पर चढ़ेगा और हमारा नाम रोशन करेगा।


हाथी के घर लड़का हुआ ....... 

तो उसने उसे गोद में ले के कहा- 'हमरी जिन्दगी का एक ही मक़सद है कि हमार बिटवा पेड़ पर चढ़ेगा।' और जब बिटवा पेड़ पर नहीं चढ़ पाया, तो हाथी ने सपरिवार ख़ुदकुशी कर ली।

अपने बच्चे को पहचानिए। वो क्या है, ये जानिये। हाथी है या शेर ,चीता, लकडबग्घा , जिराफ ऊँट है या मछली , या फिर हंस , मोर या कोयल ? क्या पता वो चींटी ही हो ?

और यदि चींटी है आपका बच्चा, तो हताश निराश न हों। चींटी धरती का सबसे परिश्रमी जीव है और अपने खुद के वज़न की तुलना में एक हज़ार गुना ज्यादा वजन उठा सकती है। 

इसलिए अपने बच्चों की क्षमता को परखें और जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें.. हतोत्साहित नही......

मंगलवार, 15 सितंबर 2020

👉 अपने इष्ट के चरणों से अनुराग करो।

भगवान् के चरणों की शरण में गये बिना किसी भी साधन से माया को नहीं जीता जा सकता, क्योंकि एक तो ये माया दुस्तर है, दूसरा हमारा साधन भी सीमित है। किन्तु यदि भगवान् की कृपा दृष्टि पड़ जाये तो निश्चित वहाँ से माया भाग जायेगी। भगवान् का स्वभाव है, कि वो अपने आश्रित के दोष नहीं देखते और यदि उसमें थोड़ा सा भी गुण होता है तो प्रभु उसीसे रीझ जाते हैं।  

तुम पापी हो, भले हो, पुण्यात्मा हो, बुरे हो, ये सब मत सोचो। ऐसा सोचना तुम्हें दुर्बल बना देगा। केवल प्रभु के चरणों का ध्यान करो। उनके चरणों के आश्रय से अनन्त पाप नष्ट हो जाते हैं। हमें सिर्फ इतना सोचना है कि हम उनके चरणों में कैसे जाँये ? महत्व भले या बुरे का नहीं है अपितु इस बात का है कि हम जैसे भी हैं प्रभु के हैं। इसी बात को सूरदास जी ने अपने पद में कहा कि – 

प्रभु हम भले बुरे सो तेरे।
सब तजि तुम शरणागत आयो, दृढ़ करि चरण गहेरे।|
हम किसी और के नहीं हैं। हमको किसी और से लेना देना नहीं है। भगवान् का तो विरद है कि चाहे कोई सारे संसार का द्रोही है, सारे संसार का कत्ल करके आया है, तब भी उसे नहीं त्यागते। 

शरण गये प्रभु काहू न त्यागा, विश्व द्रोह कृत अघ जेही लागा।|
तुमने सुना होगा कि एक बार अमेरिका ने जापान में बम गिराया था। जो व्यक्ति हवाई जहाज से बम को गिराने के लिए गया था, जब उसने बम गिरा दिया तो वो दूर से दूरबीन में देखने लगा कि क्या हुआ ? वहाँ से उसने देखा कि लाखों लोग तड़फ रहे हैं। जहरीली गैस से लोगों का दम घुट रहा है, और वे तड़फ-तडफ कर मर रहे हैं तो यह देखकर वह व्यक्ति पागल हो गया क्योंकि उसने विश्व द्रोह किया था। 

यस्य नाहड़कृतो .....   हन्ति न निबध्यते।|  श्रीमद्भगवत्गीता 18/17
भगवान्  कहते हैं कि अगर तुम इतने बड़े पापी भी हो कि विश्व द्रोह करके आये हो, परन्तु यदि तुम मेरी शरण में आ जाओ तो तुरंत उसी समय क्षमा कर दिये जाओगे। भगवान् इतने बड़े क्षमाशील हैं कि तुम जैसे भी हो यदि भगवान्  की शरण में आ गये तो जैसे लोहा पारस के स्पर्श से सोना बन जाता है, वैसे ही तुम भी उसी समय सोना बन जाओगे ! अर्थात् तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जायेंगे। सूरदास जी कहते हैं -  
" बड़ी है कृष्ण नाम की ओट, 
शरण गये प्रभु नाहीं निकारे, करत कृपा की कोट
बैठत सबै सभा हरि जू की, कौन बड़ो को छोट 
सूरदास पारस के परसे, मिटे लोह की खोट ”

एक तो ये मार्ग है कि गुणों का अर्जन करते हुए भक्ति करो। परन्तु दूसरा मार्ग प्रह्लाद जी कहते हैं- कि “अपने इष्ट के चरणों की आराधना करो गुण तो तुम्हारे अंदर स्वतः ही आ जायेंगे।”  अतः गुणों का भी आश्रय मत करो। गुण अपने देवताओं सहित स्वतः चले आयेंगे, सिर्फ अपने इष्ट के चरणों में अनुराग करो। 

👉 एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई

🏳️ध्यान से पढ़ियेगा👇      〰️〰️〰️〰️〰️ एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई कि  ये फिल्म अभिनेता (या अभिनेत्री) ऐसा क्या करते हैं कि इनको एक फिल्म...