बुधवार, 17 जुलाई 2019

👉 क्या-क्या प्राप्त करना शेष

अभी हमारे लिए क्या-क्या प्राप्त करना शेष रहा है, जानते हो? देखो:-

प्रेम- 
क्योंकि अभी तक हमने केवल द्वेष और आत्मसंतोष की ही साधना की है।

ज्ञान? 
क्योंकि अभी तक हम केवल स्खलन अवलोकन और विचारशक्ति को ही प्राप्त कर सके हैं।

आनन्द? 
क्योंकि अभी तक हम केवल दुःख सुख तथा उदासीनता को ही प्राप्त कर सके हैं।

शक्ति? 
क्योंकि अभी तक निर्बलता, प्रयत्न और विजय पराजय तक ही हम पहुँच सके हैं।

जीवन? 
अर्थात् प्राण। अभी तक मानव केवल जन्म, मृत्यु और वृद्धि ही देख सका है।

अद्वैत? 
क्योंकि अभी तक मानवजाति को युद्ध और स्वार्थ साधन करने की विद्या ही आती है।

एक शब्द में कहें तो अभी हमें भगवान को प्राप्त करना है। हमें अपने को उसके दिव्य स्वरूप को प्रतिमा बनाकर आत्मा का पुनर्निर्माण करना है।

सोमवार, 15 जुलाई 2019

👉 ना सम्मान का मोह... ना अपमान का भय..

एक फ़क़ीर था, उसके दोनों बाज़ू नहीं थे। उस बाग़ में मच्छर भी बहुत होते थे। मैंने कई बार देखा उस फ़क़ीर को। आवाज़ देकर, माथा झुकाकर वह पैसा माँगता था। एक बार मैंने उस फ़क़ीर से पूछा – ” पैसे तो माँग लेते हो, रोटी कैसे खाते हो? ”

उसने बताया – ”जब शाम उतर आती है तो उस नानबाई को पुकारता हूँ, ‘ओ जुम्मा ! आके पैसे ले जा, रोटियाँ दे जा। ‘ वह भीख के पैसे उठा ले जाता है, रोटियाँ दे जाता है।”

मैंने पूछा – ” खाते कैसे हो बिना हाथों के? ”
वह बोला – ” खुद तो खा नहीं सकता। आने-जानेवालों को आवाज़ देता हूँ ‘ ओ जानेवालों ! प्रभु तुम्हारे हाथ बनाए रखे, मेरे ऊपर दया करो! रोटी खिला दो मुझे, मेरे हाथ नहीं हैं। ‘हर कोई तो सुनता नहीं, लेकिन किसी-किसी को तरस आ जाता है। वह प्रभु का प्यारा मेरे पास आ बैठता है। ग्रास तोड़कर मेरे मुँह में डालता जाता है, मैं खा लेता हूँ।”

सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने पूछ लिया – ” पानी कैसे पीते हो?”
उसने बताया – ”इस घड़े को टांग के सहारे झुका देता हूँ तो प्याला भर जाता है। तब पशुओं की तरह झुककर पानी पी लेता हूँ।”
मैंने कहा – ”यहाँ मच्छर बहुत हैं। यदि मच्छर लड़ जाए तो क्या करते हो?”
वह बोला – ”तब शरीर को ज़मीन पर रगड़ता हूँ। पानी से निकली मछली की तरह लोटता और तड़पता हूँ।”

हाय! केवल दो हाथ न होने से कितनी दुर्गति होती है!
अरे, इस शरीर की निंदा मत करो! यह तो अनमोल रत्न है! शरीर का हर अंग इतना कीमती है कि संसार का कोई भी खज़ाना उसका मोल नहीं चुका सकता। परन्तु यह भी तो सोचो कि यह शरीर मिला किस लिए है? इसका हर अंग उपयोगी है। इनका उपयोग करो!

स्मरण रहे कि ये आँखे पापों को ढूँढने के लिए नहीं मिलीं।
कान निंदा सुनने के लिए नहीं मिले।
हाथ दूसरों का गला दबाने के लिए नहीं मिले।
यह मन भी अहंकार में डूबने या मोह-माया में फसने को नहीं मिला।
ये आँख सच्चे सतगुरु की खोज के लिये मिली है जो हमें परमात्मा के बताये मार्ग पर चलना सिखाये।
ये हाथ प्राणी मात्र की सेवा करने को मिले हैं।
ये पैर उस रास्ते पर चलने को मिले है जो परम पद तक जाता हो।
ये कान उस संदेश सुनने को मिले है जिसमे परम पद पाने का मार्ग बताया जाता हो।
ये जिह्वा प्रभु का गुण गान करने को मिली है।
ये मन उस प्रभु का लगातार शुक्र और सुमिरन करने को मिला है।
प्रभु तेरा शुक्र है, शुक्र है..लाख लाख शुक्र है।

हम बदलेंगे, युग बदलेगा

👉 रिश्ते की रिश्तेदारी

निशा काम निपटा कर बैठी ही थी कि फोन की घंटी बजने लगी। 

मेरठ से विमला चाची का फोन था ,”बिटिया अपने बाबू जी को आकर ले जाओ यहां से। 

बीमार रहने लगे है , बहुत कमजोर हो गए हैं। 
हम भी कोई जवान तो हो नहीं रहें है,अब उनका करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। 
वैसे भी आखिरी समय अपने बच्चों के साथ बिताना चाहिए।”

निशा बोली,”ठीक है चाची जी इस रविवार को आतें हैं, बाबू जी को हम दिल्ली ले आएंगे।” 

फिर इधर उधर की बातें करके फोन काट दिया।

बाबूजी तीन भाई है , पुश्तैनी मकान है तीनों वहीं रहते हैं। 
निशा और उसका छोटा भाई विवेक दिल्ली में रहते हैं 
अपने अपने परिवार के साथ। तीन चार साल पहले विवेक को फ्लैट खरीदने की लिए पैसे की आवश्यकता पड़ी तो बाबूजी ने भाईयों से मकान के अपने एक तिहाई हिस्से का पैसा लेकर विवेक को दे दिया था,
कुछ खाने पहनने के लिए अपने लायक रखकर।
दिल्ली आना नहीं चाहते थे इसलिए एक छोटा सा कमरा रख लिया था जब तक जीवित थे तब तक के लिए। 
निशा को लगता था कि अम्मा के जाने के बाद बिल्कुल अकेले पड़ गए होंगे 
बाबूजी लेकिन वहां पुराने परिचितों के बीच उनका मन लगता था। 
दोनों चाचियां भी ध्यान रखती थी।
दिल्ली में दोनों भाई बहन की गृहस्थी भी मज़े से चल रही थी।

रविवार को निशा और विवेक का ही कार्यक्रम बन पाया मेरठ जाने का। 
निशा के पति अमित एक व्यस्त डाक्टर है महिने की लाखों की कमाई है उनका इस तरह से छुट्टी लेकर निकलना बहुत मुश्किल है,

मरीजों की बिमारी न रविवार देखती है न सोमवार। 

विवेक की पत्नी रेनू की अपनी जिंदगी है उच्च वर्गीय परिवारों में उठना बैठना है उसका , इस तरह के छोटे मोटे पारिवारिक पचड़ों में पड़ना उसे पसंद नहीं।

रास्ते भर निशा को लगा विवेक कुछ अनमना , गुमसुम सा बैठा है। 
वह बोली,”इतना परेशान मत हो, ऐसी कोई चिंता की बात नहीं है, उम्र हो रही है, थोड़े कमजोर हो गए हैं ठीक हो जाएंगे।”

विवेक झींकते हुए बोला,”अच्छा खासा चल रहा था,पता नहीं चाचाजी को एसी क्या मुसीबत आ गई दो चार साल और रख लेते तो। 
अब तो मकानों के दाम आसमान छू रहे हैं,तब कितने कम पैसों में अपने नाम करवा लिया तीसरा हिस्सा।”

निशा शान्त करने की मन्शा से बोली,”ठीक है न उस समय जितने भाव थे बाजार में उस हिसाब से दे दिए।
और बाबूजी आखरी समय अपने बच्चों के बीच बिताएंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा।”

विवेक उत्तेजित हो गया , बोला,”दीदी तेरे लिए यह सब कहना बहुत आसान है। तीन कमरों के फ्लैट में कहां रखूंगा उन्हें। 
रेनू से किट किट रहेगी सो अलग, उसने तो साफ़ मना कर दिया है

वह बाबूजी का कोई काम नहीं करेंगी | वैसे तो दीदी लड़कियां हक़ मांग ने तो बडी जल्दी खड़ी हो जाती हैं , करने के नाम पर क्यों पीछे हट जाती है।

आज कल लड़कियों की शिक्षा और शादी के समय में अच्छा खासा खर्च हो जाता है।
तू क्यों नहीं ले जाती बाबूजी को अपने घर, इतनी बड़ी कोठी है ,जिजाजी की लाखों की कमाई है?”

निशा को विवेक का इस तरह बोलना ठीक नहीं लगा।
पैसे लेते हुए कैसे वादा कर रहा था बाबूजी से,”आपको किसी भी वस्तु की आवश्यकता हो आप निसंकोच फोन कर देना मैं तुरंत लेकर आ जाऊंगा। 

बस इस समय हाथ थोड़ा तन्ग है।” नाममात्र पैसे छोडे थे बाबूजी के पास, और फिर कभी फटका भी नहीं उनकी सुध लेने।

निशा:”तू चिंता मत कर मैं ले जाऊंगी बाबूजी को अपने घर।”

सही है उसे क्या परेशानी, इतना बड़ा घर फिर पति रात दिन मरीजों की सेवा करते है, एक पिता तुल्य ससुर को आश्रय तो दे ही सकते हैं।

बाबूजी को देख कर उसकी आंखें भर आईं। इतने दुबले और बेबस दिख रहे थे,गले लगते हुए बोली,”पहले फोन करवा देते पहले लेने आ जाती।” बाबूजी बोलें,” तुम्हारी अपनी जिंदगी है क्या परेशान करता। 
वैसे भी दिल्ली में बिल्कुल तुम लोगों पर आश्रित हो जाऊंगा।”

रात को डाक्टर साहब बहुत देर से आएं,तब तक पिता और बच्चे सो चुके थे। 
खाना खाने के बाद सुकून से बैठते हुएं निशा ने डाक्टर साहब से कहा,” बाबूजी को मैं यहां ले आईं हूं। 
विवेक का घर बहुत छोटा है, 

उसे उन्हें रखने में थोड़ी परेशानी होती।” अमित के एक दम तेवर बदल गए,वह सख्त लहजे में बोला,” यहां ले आईं हूं से क्या मतलब है तुम्हारा❓
तुम्हारे पिताजी तुम्हारे भाई की जिम्मेदारी है।
मैंने बड़ा घर वृद्धाश्रम खोलने के लिए नहीं लिया था , अपने रहने के लिए लिया है। 
जायदाद के पैसे हड़पते हुए नहीं सोचा था साले साहब ने कि पिता की करनी भी पड़ेगी। 
रात दिन मेहनत करके पैसा कमाता हूं फालतू लुटाने के लिए नहीं है मेरे पास।”

पति के इस रूप से अनभिज्ञ थी निशा। “रात दिन मरीजों की सेवा करते हो मेरे पिता के लिए क्या आपके घर और दिल में इतना सा स्थान भी नहीं है।”

अमित के चेहरे की नसें तनीं हुईं थीं,वह लगभग चीखते हुए बोला,” मरीज़ बिमार पड़ता है पैसे देता है ठीक होने के लिए, मैं इलाज करता हूं पैसे लेता हूं। यह व्यापारिक समझोता है इसमें सेवा जैसा कुछ नहीं है।यह मेरा काम है मेरी रोजी-रोटी है।
बेहतर होगा तुम एक दो दिन में अपने पिता को विवेक के घर छोड़ आओ।”
निशा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। 
जिस पति की वह इतनी इज्जत करती है वें ऐसा बोल सकते हैं।

क्यों उसने अपने भाई और पति पर इतना विश्वास किया? 

क्यों उसने शुरू से ही एक एक पैसा का हिसाब नहीं रखा?

अच्छी खासी नौकरी करती थी , पहले पुत्र के जन्म पर अमित ने यह कह कर छुड़वा दी कि मैं इतना कमाता हूं तुम्हें नौकरी करने की क्या आवश्यकता है।

तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं रहेगी आराम से घर रहकर बच्चों की देखभाल करो।

आज अगर नौकरी कर रही होती तो अलग से कुछ पैसे होते उसके पास या दस साल से घर में सारा दिन काम करने के बदले में पैसे की मांग करती तो इतने तो हो ही जाते की पिता जी की देखभाल अपने दम पर कर पाती। 

कहने को तो हर महीने बैंक में उसके नाम के खाते में पैसे जमा होते हैं लेकिन उन्हें खर्च करने की बिना पूछे उसे इजाज़त नहीं थी।

भाई से भी मन कर रहा था कह दे शादी में जो खर्च हुआ था वह निकाल कर जो बचता है उसका आधा आधा कर दे।
कम से कम पिता इज्जत से तो जी पाएंगे। 
पति और भाई दोनों को पंक्ति में खड़ा कर के बहुत से सवाल करने का मन कर रहा था, जानती थी जवाब कुछ न कुछ तो अवश्य होंगे। 
लेकिन इन सवाल जवाब में रिश्तों की परतें दर परतें उखड़ जाएंगी और जो नग्नता सामने आएगी

उसके बाद रिश्ते ढोने मुश्किल हो जाएंगे। 
सामने तस्वीर में से झांकती दो जोड़ी आंखें जिव्हा पर ताला डाल रहीं थीं।
अगले दिन अमित के हस्पताल जाने के बाद जब नाश्ता लेकर निशा बाबूजी के पास पहुंची तो वे समान बांधे बैठें थे।
उदासी भरे स्वर में बोले,” मेरे कारण अपनी गृहस्थी मत ख़राब कर।
पता नहीं कितने दिन है मेरे पास कितने नहीं।
मैंने इस वृद्धाश्रम में बात कर ली है जितने पैसे मेरे पास है, उसमें मुझे वे लोग रखने को तैयार है।

ये ले पता तू मुझे वहां छोड़ आ , और निश्चित होकर अपनी गृहस्थी सम्भाल।”
निशा समझ गई बाबूजी की देह कमजोर हो गई है दिमाग नहीं।

दमाद काम पर जाने से पहले मिलने भी नहीं आया साफ़ बात है ससुर का आना उसे अच्छा नहीं लगा। 
क्या सफाई देती चुप चाप टैक्सी बुलाकर उनके दिए पते पर उन्हें छोड़ने चल दी। नजरें नहीं मिला पा रही थी,न कुछ बोलते बन रहा था। 
बाबूजी ने ही उसका हाथ दबाते हुए कहा,” परेशान मत हो बिटिया, परिस्थितियों पर कब हमारा बस चलता है। 
मैं यहां अपने हम उम्र लोगों के बीच खुश रहूंगा।”
तीन दिन हो गए थे बाबूजी को वृद्धाश्रम छोड़कर आए हुए।

निशा का न किसी से बोलने का मन कर रहा था न कुछ खाने का। 

फोन करके पूछने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी वे कैसे हैं? 

इतनी ग्लानि हो रही थी कि किस मुंह से पूछे। वृद्धाश्रम से ही फोन आ गया कि बाबूजी अब इस दुनिया में नहीं रहे।
दस बजे थे बच्चे पिकनिक पर गए थे आठ नौ बजे तक आएंगे, अमित तो आतें ही दस बजे तक है। 
किसी की भी दिनचर्या पर कोई असर नहीं पड़ेगा, किसी को सूचना भी क्या देना। 
विवेक आफिस चला गया होगा बेकार छुट्टी लेनी पड़ेगी।

रास्ते भर अविरल अश्रु धारा बहती रही कहना मुश्किल था पिता के जाने के ग़म में या अपनी बेबसी पर आखिरी समय पर

पिता के लिए कुछ नहीं कर पायी। 
तीन दिन केवल तीन दिन अमित ने उसके पिता को मान और आश्रय दे दिया होता तो वह हृदय से अमित को परमेश्वर का मान लेती।
वृद्धाश्रम के सन्चालक महोदय के साथ मिलकर उसने औपचारिकताएं पूर्ण की। 

वह बोल रहे थे,” इनके बहू , बेटा और दमाद भी है रिकॉर्ड के हिसाब से।उनको भी सूचना दे देते तो अच्छा रहता।

वह कुछ सम्भल चुकी थी बोली, नहीं इनका कोई नहीं है न बहू न बेटा और न दामाद।
बस एक बेटी है वह भी नाम के लिए ।”

सन्चालक महोदय अपनी ही धुन में बोल रहे थे,” परिवार वालों को सांत्वना और बाबूजी की आत्मा को शांति मिले।”

निशा सोच रही थी ‘ बाबूजी की आत्मा को शांति मिल ही गई होगी। जाने से पहले सबसे मोह भंग हो गया था। समझ गये होंगे कोई किसी का नहीं होता,

फिर क्यों आत्मा अशान्त होगी।’

” हां, परमात्मा उसको इतनी शक्ति दें कि किसी तरह वह बहन और पत्नी का रिश्ता निभा सकें | “

ये पैसा ही है जो एक हर रिश्ते की रिश्तेदारी निभा रहा है।

मैं भी एक बेटी हूँ मगर एक बात कहना चाहती हूँ कि हर इंसान को अपने हाथ नहीं काट देने चाहिए ममता मे हो के ........

अपने भाविष्य के लिए कुछ न कुछ रख लेना चाहिए       

........बाद में तो उनका ही हैं मगर जीते जी मरने से तो अच्छा है ....

शनिवार, 6 जुलाई 2019

👉 सबसे ऊँची प्रार्थना

चार शब्दों की उच्चतम प्रार्थना

एक जादूगर जो मृत्यु के करीब था, मृत्यु से पहले अपने बेटे को चाँदी के सिक्कों से भरा थैला देता है और बताता है की "जब भी इस थैले से चाँदी के सिक्के खत्म हो जाएँ तो मैं तुम्हें एक प्रार्थना बताता हूँ, उसे दोहराने से चाँदी के सिक्के फिर से भरने लग जाएँगे। उसने बेटे के कान में चार शब्दों की प्रार्थना कही और वह मर गया। अब बेटा चाँदी के सिक्कों से भरा थैला पाकर आनंदित हो उठा और उसे खर्च करने में लग गया। वह थैला इतना बड़ा था की उसे खर्च करने में कई साल बीत गए, इस बीच वह प्रार्थना भूल गया। जब थैला खत्म होने को आया तब उसे याद आया कि "अरे! वह चार शब्दों की प्रार्थना क्या थी।" उसने बहुत याद किया, उसे याद ही नहीं आया।

अब वह लोगों से पूँछने लगा। पहले पड़ोसी से पूछता है की "ऐसी कोई प्रार्थना तुम जानते हो क्या, जिसमें चार शब्द हैं। पड़ोसी ने कहा, "हाँ, एक चार शब्दों की प्रार्थना मुझे मालूम है, "ईश्वर मेरी मदद करो।" उसने सुना और उसे लगा की ये वे शब्द नहीं थे, कुछ अलग थे। कुछ सुना होता है तो हमें जाना-पहचाना सा लगता है। फिर भी उसने वह शब्द बहुत बार दोहराए, लेकिन चाँदी के सिक्के नहीं बढ़े तो वह बहुत दुःखी हुआ। फिर एक फादर से मिला, उन्होंने बताया की "ईश्वर तुम महान हो" ये चार शब्दों की प्रार्थना हो सकती है, मगर इसके दोहराने से भी थैला नहीं भरा। वह एक नेता से मिला, उसने कहा "ईश्वर को वोट दो" यह प्रार्थना भी कारगर साबित नहीं हुई। वह बहुत उदास हुआ।

उसने सभी से मिलकर देखा मगर उसे वह प्रार्थना नहीं मिली, जो पिताजी ने बताई थी। वह उदास होकर घर में बैठा हुआ था तब एक भिखारी उसके दरवाजे पर आया। उसने कहा, "सुबह से कुछ नहीं खाया, खाने के लिए कुछ हो तो दो।" उस लड़के ने बचा हुआ खाना भिखारी को दे दिया। उस भिखारी ने खाना खाकर बर्तन वापस लौटाया और ईश्वर से प्रार्थना की, "हे ईश्वर ! तुम्हारा धन्यवाद।" अचानक वह चोंक पड़ा और चिल्लाया की "अरे! यही तो वह चार शब्द थे।" उसने वे शब्द दोहराने शुरू किए-"हे ईश्वर तुम्हारा धन्यवाद"........और उसके सिक्के बढ़ते गए... बढ़ते गए... इस तरह उसका पूरा थैला भर गया।

इससे समझें की जब उसने किसी की मदद की तब उसे वह मंत्र फिर से मिल गया। "हे ईश्वर ! तुम्हारा धन्यवाद।" यही उच्च प्रार्थना है क्योंकि जिस चीज के प्रति हम धन्यवाद देते हैं, वह चीज बढ़ती है। अगर पैसे के लिए धन्यवाद देते हैं तो पैसा बढ़ता है, प्रेम के लिए धन्यवाद देते हैं तो प्रेम बढ़ता है। ईश्वर या गुरूजी के प्रति धन्यवाद के भाव निकलते हैं की ऐसा ज्ञान सुनने तथा पढ़ने का मौका हमें प्राप्त हुआ है। बिना किसी प्रयास से यह ज्ञान हमारे जीवन में उतर रहा है वर्ना ऐसे अनेक लोग हैं, जो झूठी मान्यताओं में जीते हैं और उन्हीं मान्यताओं में ही मरते हैं। मरते वक्त भी उन्हें सत्य का पता नहीं चलता। उसी अंधेरे में जीते हैं, मरते हैं।

ऊपर दी गई कहानी से समझें की "हे ईश्वर ! तुम्हारा धन्यवाद" ये चार शब्द, शब्द नहीं प्रार्थना की शक्ति हैं। अगर यह चार शब्द दोहराना किसी के लिए कठिन है तो इसे तीन शब्दों में कह सकते हैं, "ईश्वर तुम्हार धन्यवाद।" ये तीन शब्द भी ज्यादा लग रहे हों तो दो शब्द कहें, "ईश्वर धन्यवाद !" और दो शब्द भी ज्यादा लग रहे हों तो सिर्फ एक ही शब्द कह सकते हैं, "धन्यवाद।" आइए, हम सब मिलकर एक साथ धन्यवाद दें उस ईश्वर को, जिसने हमें मनुष्य जन्म दिया और उसमें दी दो बातें - पहली "साँस का चलना" दूसरी "सत्य की प्यास।" यही प्यास हमें खोजी से भक्त बनाएगी। भक्ति और प्रार्थना से होगा आनंद, परम आनंद, तेज आनंद।

👉 आदमी और रिश्ते

 एक-एक भिंडी को प्यार से धोते पोंछते हुये वह काट रही थी। अचानक एक भिंडी के ऊपरी हिस्से में छेद दिख गया, सोचा भिंडी खराब हो गई, वह फेंक देगी लेकिन नहीं, उसने ऊपर से थोड़ा काटा, कटे हुये हिस्से को फेंक दिया। फिर ध्यान से बची भिंडी को देखा, शायद कुछ और हिस्सा खराब था, उसने थोड़ा और काटा और फेंक दिया फिर तसल्ली की, बाक़ी भिंडी ठीक है कि नहीं। तसल्ली होने पर काट के सब्ज़ी बनाने के लिये रखी भिंडी में मिला दिया।

वाह क्या बात है, पच्चीस पैसे की भिंडी को भी हम कितने ख्याल से, ध्यान से सुधारते हैं, प्यार से काटते हैं, जितना हिस्सा सड़ा है उतना ही काट के अलग करते हैं, बाक़ी अच्छे हिस्से को स्वीकार कर लेते हैं।

ये तो क़ाबिले तारीफ है, लेकिन अफसोस। इंसानों के लिये कठोर हो जाते हैं एक ग़लती दिखी नहीं कि उसके पूरे व्यक्तित्व को काट के फेंक देते हैं, उसके सालों के अच्छे कार्यों को दरकिनार कर देते हैं। महज अपने ईगो को संतुष्ट करने के लिए उससे हर नाता तोड़ देते हैं।

क्या पच्चीस पैसे की एक भिंडी से भी कमतर हो गया है आदमी और रिश्ते??? 🤔
विचार करें। 🙏

बुधवार, 19 जून 2019

👉 "नियम का महत्व"

एक संत थे। एक दिन वे एक किसान के घर गए। किसान ने उनकी बड़ी सेवा की। सन्त ने उसे कहा कि रोजाना नाम -जप करने का कुछ नियम ले लो। किसान ने कहा बाबा, हमारे को वक्त नहीं मिलता। सन्त ने कहा कि अच्छा, रोजाना ठाकुर जी की मूर्ति के दर्शन कर आया करो। किसान ने कहा मैं तो खेत में रहता हूँ और ठाकुर जी की मूर्ति गाँव के मंदिर में है, कैसे करूँ ? 

संत ने उसे कई साधन बताये, कि वह कुछ-न-कुछ नियम ले लें। पर वह यही कहता रहा कि मेरे से यह बनेगा नहीं, मैं खेत में काम करूँ या माला लेकर जप करूँ। इतना समय मेरे पास कहाँ है ? बाल-बच्चों का पालन पोषण करना है। आपके जैसे बाबा जी थोड़े ही हूँ। कि बैठकर भजन करूँ। संत ने कहा कि अच्छा तू क्या कर सकता है ? किसान बोला कि पड़ोस में एक कुम्हार रहता है। उसके साथ मेरी मित्रता है। उसके और मेरे खेत भी पास-पास हैं, और घर भी पास-पास है। रोजाना एक बार उसको देख लिया करूँगा। सन्त ने कहा कि ठीक है, उसको देखे बिना भोजन मत करना। किसान ने स्वीकार कर लिया। जब उसकी पत्नी कहती कि भोजन कर लो। तो वह चट बाड़ पर चढ़कर कुम्हार को देख लेता। और भोजन कर लेता। इस नियम में वह पक्का रहा। 
  
एक दिन किसान को खेत में जल्दी जाना था। इसलिए भोजन जल्दी तैयार कर लिया। उसने बाड़ पर चढ़कर देखा तो कुम्हार दीखा नहीं। पूछने पर पता लगा कि वह तो मिट्टी खोदने बाहर गया है। किसान बोला कि कहाँ मर गया, कम से कम देख तो लेता। अब किसान उसको देखने के लिए तेजी से भागा। उधर कुम्हार को मिट्टी खोदते-खोदते एक हाँडी मिल गई। जिसमें तरह-तरह के रत्न, अशर्फियाँ भरी हुई थीं। उसके मन में आया कि कोई देख लेगा तो मुश्किल हो जायेगी। अतः वह देखने के लिए ऊपर चढा तो सामने वह किसान आ गया।

कुम्हार को देखते ही किसान वापस भागा। तो कुम्हार ने समझा कि उसने वह हाँडी देख ली। और अब वह आफत पैदा करेगा। कुम्हार ने उसे रूकने के लिए आवाज लगाई। किसान बोला कि बस देख लिया, देख लिया। कुम्हार बोला कि अच्छा, देख लिया तो आधा तेरा आधा मेरा, पर किसी से कहना मत। 

किसान वापस आया तो उसको धन मिल गया। उसके मन में विचार आया कि संत से अपना मनचाहा नियम लेने में इतनी बात है। अगर सदा उनकी आज्ञा का पालन करूँ तो कितना लाभ है। ऐसा विचार करके वह किसान और उसका मित्र कुम्हार दोनों ही भगवान् के भक्त बन गए।

तात्पर्य यह है कि हम दृढता से अपना एक उद्देश्य बना ले, नियम ले लें तो वह भी हमारी डुबती किश्ती पार लगा सकता है। 

👉 सच्चा पुण्य

पर्व के अगले दिन एक भिखारी एक सज्जन की दुकान पर भीख मांगने पहुंचा। सज्जन व्यक्ति ने 1 रुपये का सिक्का निकाल कर उसे दे दिया।
भिखारी को प्यास भी लगी थी, वो बोला बाबूजी एक गिलास पानी भी पिलवा दो,गला सूखा जा रहा है। सज्जन व्यक्ति गुस्से में तुम्हारे बाप के नौकर बैठे हैं क्या हम यहां, पहले पैसे, अब पानी, थोड़ी देर में रोटी मांगेगा,चल भाग यहां से।

भिखारी बोला:-
बाबूजी गुस्सा मत कीजिये मैं आगे कहीं पानी पी लूंगा। पर जहां तक मुझे याद है, कल इसी दुकान के बाहर मीठे पानी की छबील लगी थी और आप स्वयं लोगों को रोक रोक कर जबरदस्ती अपने हाथों से गिलास पकड़ा रहे थे, मुझे भी कल आपके हाथों से दो गिलास शर्बत पीने को मिला था। मैंने तो यही सोचा था, आप बड़े धर्मात्मा आदमी है, पर आज मेरा भरम टूट गया।
कल की छबील तो शायद आपने लोगों को दिखाने के लिये लगाई थी।
मुझे आज आपने कड़वे वचन बोलकर अपना कल का सारा पुण्य खो दिया। मुझे माफ़ करना अगर मैं कुछ ज्यादा बोल गया हूँ तो।
सज्जन व्यक्ति को बात दिल पर लगी, उसकी नजरों के सामने बीते दिन का प्रत्येक दृश्य घूम गया। उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था। वह स्वयं अपनी गद्दी से उठा और अपने हाथों से गिलास में पानी भरकर उस बाबा को देते हुए उसे क्षमा प्रार्थना करने लगा।

भिखारी:-
बाबूजी मुझे आपसे कोई शिकायत नही, परन्तु अगर मानवता को अपने मन की गहराइयों में नही बसा सकते तो एक दो दिन किये हुए पुण्य व्यर्थ है।
मानवता का मतलब तो हमेशा शालीनता से मानव व जीव की सेवा करना है।
आपको अपनी गलती का अहसास हुआ, ये आपके व आपकी सन्तानों के लिये अच्छी बात है।
आप व आपका परिवार हमेशा स्वस्थ व दीर्घायु बना रहे ऐसी मैं कामना करता हूँ, यह कहते हुए भिखारी आगे बढ़ गया।

सेठ ने तुरंत अपने बेटे को आदेश देते हुए कहा:-
कल से दो घड़े पानी दुकान के आगे आने जाने वालों के लिये जरूर रखे हो। उसे अपनी गलती सुधारने पर बड़ी खुशी हो रही थी।

सिर्फ दिखावे के लिए किये गए पुण्यकर्म निष्फल हैं, सदा हर प्राणी के लिए आपके मन में शुभकामना शुभ भावना हो यही सच्चा पुण्य है🙏🏼

👉 जाने क्यों -❓

🔵➖ खाने को सादा दाल रोटी होती थी, लेकिन फिर भी किसी को खून की कमी नहीं होती थी,--- ना (जाने क्यों ?)

🔵➖ स्कूल मे अध्यापक खूब कान खींचते थे, डंडों से पिटाई होती थी, लेकिन कोई बच्चा स्कूल में डिप्रेशन के कारण आत्महत्या नहीं करता था,---ना (जाने क्यों,,?)

🔵➖ बचपन मे महँगे खिलौने नहीं मिलते थे, लेकिन हर खेल बहुत आनंदित करता था,----ना (जाने क्यों),?

🔵➖ घर कच्चे होते थे, कमरे कम होते थे,---लेकिन (((माता -पिता कभी वृद्धाश्रम))) नहीं जाते थे,,------ना (जाने क्यों),?

🔵➖ घर मे गाय की, कुत्ते की,अतिथि की मेहमानों की रोटियां बनती थी, फिर भी घर का बजट संतुलित रहता था,--- आज सिर्फ़ अपने परिवार की रोटी महंगी हो गयीं है,----ना (जाने क्यों),? 

🔵➖ महिलाओं के लिए कोई जिम या कसरत के विशेष  साधन नहीं थे, फिर भी महिलाएं संपूर्ण रूप से स्वस्थ्य रहती थी,------ना (जाने क्यों),?

🔵➖ भाई -भाई मे, भाई-बहनों मे अनेक बार खूब झगड़ा होता था, आपस मे कुटाई तक होती थी,-परंतु आपस  मे मनमुटाव कभी नहीं होता था,,---ना( जाने क्यों),?

🔵➖ परिवार बहुत बडे होते थे, पडोसियों के बच्चे भी दिनभर खेलते थे, फिर भी ((घरों में ही शादियां)) होती थी,,-----ना (जाने क्यों),?

🔵➖ माता-पिता थोडी सी बात पर थप्पड़ मार देते थे, लेकिन उनका मान-सम्मान कभी कम नहीं होता था,----ना (जाने क्यों),?

मंगलवार, 18 जून 2019

👉 कर्म का सिद्धान्त

आंख ने पेड़ पर फल देखा .. लालसा जगी.. 
आंख तो फल तोड़ नही सकती इसलिए पैर गए पेड़ के पास फल तोड़ने..
पैर तो फल तोड़ नही सकते इसलिए हाथों ने फल तोड़े और मुंह ने फल खाएं और वो फल पेट में गए.
अब देखिए जिसने देखा वो गया नही, जो गया उसने तोड़ा नही, जिसने तोड़ा उसने खाया नही, जिसने खाया उसने रक्खा नहीं क्योंकि वो पेट में गया
अब जब माली ने देखा तो डंडे पड़े पीठ पर जिसकी कोई गलती नहीं थी ।
लेकिन जब डंडे पड़े पीठ पर तो आंसू आये आंख में क्योंकि सबसे पहले फल देखा था आंख ने।

👉 गर्व से कहो मैं हिंदू हूँ

जब से मैंने होश संभाला है लगातार सुनता आ रहा हूँ कि

बनिया कंजूस होता है,
नाई चतुर होता है,
ब्राह्मण धर्म के नाम पर सबको बेवकूफ बनाता है,
यादव की बुद्धि कमजोर होती है,
राजपूत अत्याचारी होते हैं,
चमार गंदे होते हैं,
जाट और गुर्ज्जर बेवजह लड़ने वाले होते हैं,
मारवाड़ी लालची होते हैं...

और ना जाने ऐसी कितनी असत्य परम ज्ञान की बातें सभी हिन्दुओं को आहिस्ते - आहिस्ते सिखाई गयी !
नतीजा हीन भावना, एक दूसरे की जाति पर शक और द्वेष धीरे- धीरे आपस में टकराव होना शुरू हुआ और अंतिम परिणाम हुआ कि मजबूत, कर्मयोगी और सहिष्णु हिन्दू समाज आपस में ही लड़कर कमजोर होने लगा !

उनको उनका लक्ष्य प्राप्त हुआ ! हजारों साल से आप साथ थे...आपसे लड़ना मुश्किल था..अब आपको मिटाना आसान है !

आपको पूछना चाहिए था कि अत्याचारी राजपूतों ने सभी जातियों की रक्षा के लिए हमेशा अपना खून क्यों बहाया ?

आपको पूछना था कि अगर चमार, दलित को ब्राह्मण इतना ही गन्दा समझते थे तो बाल्मीकि रामायण जो एक दलित ने लिखा उसकी सभी पूजा क्यों करते हैं? माता सीता क्यों महृषि वाल्मीकि के आश्रम में रहती। 

आपने नहीं पूछा कि आपको सोने का चिड़ियाँ बनाने में मारवाड़ियों और बनियों का क्या योगदान था? सभी मंदिर स्कूल हॉस्पिटल बनाने वाले लोक कल्याण का काम करने वाले बनिया होते हैं सभी को रोजगार देने वाली बनिया होते हैं सबसे ज्यादा आयकर देने वाले बनिया होते हैं

जिस डूम को आपने नीच मान लिया, उसे आपने पर भोजन karwane के लिए हज़ारों रुपये ख़र्चा करते है वो भी गाजें बाजे से कर। उसी के दिए अग्नि से आपको मुक्ति क्यों मिलती है?

यादव, जाट और गुर्जर अगर लड़ाके नहीं होते तो आपके लिए अन्न का उत्पादन कौन करता सेना में भर्ती कौन होता।

जैसे ही कोई किसी जाति की कोई मामूली सी भी बुरी बात करे, टोकिये और ऐतराज़ कीजिये!

याद रहे, आप सिर्फ हिन्दू हैं। हिन्दू वो जो हिन्दूस्तान में रहते आये है हमने कभी किसी अन्य धर्म का अपमान नहीं किया तो फिर अपने हिन्दू भाइयों को कैसे अपमानित करते हो और क्यों? अब न अपमानित करेंगे और न होने देंगे।

एक रहे सशक्त रहें !
मिलजुल कर मजबूत भारत का निर्माण करें । 

मैं ब्राम्हण हूँ
जब मै पढ़ता हूँ और पढ़ाता हूँ।
मैं क्षत्रिय हूँ
जब मैं अपने परिवार की रक्षा करता हूँ।
मैं वैश्य हूँ
जब मैं अपने घर का प्रबंधन करता हूँ।
मैं शूद्र हूँ
जब मैं अपना घर साफ रखता हूँ

ये सब मेरे भीतर है इन सबके संयोजन से मैं बना हूँ। 

क्या मेरे अस्तित्व से किसी एक क्षण भी इन्हें अलग कर सकते हैं? क्या किसी भी जाति के हिन्दू के भीतर से ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र को अलग कर सकते हैं?

वस्त्तुतः सच यह है कि हम सुबह से रात तक इन चारों वर्णों के बीच बदलते रहते हैं।

मुझे गर्व है कि मैं एक हिंदू हूँ
मेरे टुकड़े-टुकड़े करने की कोई कोशिश न करे।

मैं हिन्दू हूँ हिन्दुस्तान का
मैं पहचान हूँ हिन्दुस्तान का।

शनिवार, 15 जून 2019

👉 दुष्ट अपने कर्मों का फल अवश्य पाता है

एक बार एक चक्रवर्ती सम्राट आखेट हेतु वन गमन पर थे। दैववश वे अपने सहायको से अलग हो गए। विशाल वन के किसी अनजान छोर पर उन्हें मार्ग पर एक सांप दिखा जो "उल्टा "चल रहा था मतलब सर से पुंछ की तरफ। राजा को देख वह अत्यंत ही दारुन्य अवस्था में राजा से बोला "राजन मै एक दुर्धुष रोग से अत्यंत ही पीड़ित हूँ। मेरी सहायता करे। मै आपका शरणागत हूँ। 

राजा द्रवित हो गए जैसा की हिन्दू राजाओ के डीएनए में है। पूछा क्या उपचार है इसका। 
सर्प बोला, " राजन किसी स्वस्थ व्यक्ति के उदर मे यदि मुझे 4 महीने शरण मिले तो मै स्वस्थ हो सकता हु अन्यथा कोई और उपाय नहीं है जीवन का। 
राजा ने परोपकार के महत्व का स्मरण कर सर्प को अपने उदर में शरण दे दी। 

वन से निकलते ही राजा एक अनजान राज्य के अनजान नगर में आ पहुंचे। उदरस्थ सर्प के प्रभाव से राजा रुग्ण हो गए और शक्तिहीन होकर एक चोराहे पर गिर पड़े। 
दैवयोग से तभी एक दण्डित युवती को उसके पिता द्वारा उसी चोराहे पर लाया गया और सजा के रूप में उस रुग्ण भिखारी से दिख रहे राजा से उसका विवाह करवा दिया गया। 
युवती अपने पति राजा को लेकर एक खंडहर में रुकी और अपने पति को शारीरिक रूप से पुष्ट करने का प्रयास करने लगी। कुछ पारिश्रमिक भी वह लाती और खंडहर में छुपा देती। 

कई दिन हो गए युवती के प्रयास को लेकिन राजा की तबियत और बिगड़ती चली गई साथ ही रोज ही छुपाया हुआ परिश्रमिक भी चोरी हो जाता। युवती परेशां हो गई। 
रोज मंदिर जाने लगी।  एक दिन थोडा जल्दी ही अचानक अपने खंडहर आ गई।  दो लोगो की आवाज आती देख वह ओट से छुप कर देखने लगी की एक बिल से एक विशाल काला सर्प राजा के पास आकर एक सांप को बुरा भला कह रहा था। 

"अरे दुष्ट वाम मार्गी सर्प बाहर निकल क्यों इस तरुण सुदर्शन व्यक्ति का शरीर नष्ट कर रहा है इसके उदर में स्थित होकर। इसने तुझे आश्रय दिया और तू उसे ही निगल रहा है दुष्ट। "

ये सब सुनकर अचानक राजा के मुह से एक विशाल हरा सर्प बाहर आया पहले पूछ फिर सिर। बाहर आकर उल्टा चलता हुआ उस काले नाग पर प्रतिप्रहार करने लगा। 
'सरे महाधूर्त काले नाग तू तो और भी निकृष्ट है जो अथाह धन पर बैठ कर रोज इस पुरुष की स्त्री द्वारा अर्जित किये हुए धन को निगल जाता है। स्त्री का कमाया धन चुराता है पापी। 

दोनों एक दूसरे पर लगातार आरोप लगा रहे थे की अचानक कालनाग बोला, " क्या कोई नहीं जानता की छाछ को गर्म करके उसमे कटु निम्ब के नरम पत्ते डाल कर इस व्यक्ति को पिलाया जाए तो तू इसके शरीर से बाहर आकर मृत्यु को प्राप्त हो जाए। 

यह सुनकर वामी सर्प बोला की यह भी सभी जानते है सरसो के तेल को गर्म करके उसमे कर्पूर डाल कर तेरे बिल में डाल दिया जाए तो तू भी तत्काल अपने गिरोह के साथ मारा जायेगा और सारा धन उस व्यक्ति को सिद्ध हो जायेगा। 

युवती ने दोनों की बात सुन ली। वह अत्यंत हर्षित हुई। फटाफट बाजार से सभी सामान लाकर उसने राजा को छाछ पिला दी कुछ ही देर मे राजा को वमन के साथ वह वाम हरित सर्प बाहर आ गया और तड़पता हुआ मर गया। फिर युवती ने बिल में तेल डाल दिया वहा भी वह काल सर्प मारा गया और खजाना युवती ने प्राप्त कर लिया। 

कुछ ही दिनों में राजा स्वस्थ हो गए। स्त्री से पूछा। स्त्री ने सब कह सुनाया। राजा ने परिचय दिया की वे एक चक्रवर्ती सम्राट है। 

👉 अंधभक्त

👉 बाबा जी को किसी भगवान पे विश्वास नहीं होता.. बाबा जी Z सिक्योरिटी में बैठकर कहते हैं कि," जीवन-मरण ऊपर वाले के हाथ में है "

अंधभक्त श्रद्धा से सुनते हैं, वे सोचते नहीं हैं....

👉 बाबा जी दौलत के ढेर पे बैठकर बोलते हैं कि," मोह-माया छोड़ दो "

लेकिन उत्तराधिकारी अपने बेटे को ही बनायेंगे.. अंधभक्त श्रद्धा से सुनते हैं, वे सोचते नहीं हैं.....

👉 भक्तों को लगता है कि उनके सारे मसले बाबा जी हल करते हैं, लेकिन जब बाबा जी मसलों में फंसते हैं, तब बाबा जी बड़े वकीलों की मदद लेते हैं.. अंधभक्त बाबा जी के लिये दुखी होते हैं, लेकिन सोचते नहीं हैं.....

👉 भक्त बीमार होते हैं..डॉक्टर से दवा लेते हैं.. जब ठीक हो जाते हैं तो कहते हैं, " बाबा जी ने बचा लिया " बाबा जी बीमार होते हैं तो बड़े डॉक्टरों से महंगे हस्पतालों में इलाज़ करवाते हैं. अंधभक्त उनके ठीक होने की दुआ करते हैं लेकिन सोचते नहीं हैं.....

👉 अंधभक्त अपने बाबा को भगवान समझते हैं...उनके चमत्कारों की सौ-सौ कहानियां सुनाते हैं.

👉 लेकिन जब बाबा किसी अपराध में जेल जाते हैं, तब वे कोई चमत्कार नहीं दिखाते.. तब अंधभक्त बाबा के लिये लड़ते-मरते हैं, लेकिन वे कुछ सोचते नहीं हैं.....

👉 इन्सान आंखों से अंधा हो तो उसकी बाकी ज्ञान इन्द्रियाँ ज़्यादा काम करने लगती हैं,लेकिन अक्ल के अंधों की कोई भी ज्ञान इंद्री काम नहीं करती...

👉 अतः तार्किक बनें❗अक्ल के अंधे नहीं❗ ये है... हमारे अंचल के "संत" बाबा

लक्झरी गाडी,आलीशान आश्रम,.. करोडो का व्यापार.. होटल, कॉलेज, पेट्रोलपंप, सेकड़ो बीघा जमीन,

सत्तासीन नेताओ से सांठगाँठ, वैभवशाली जीवन, सामाजिक सम्प्पतियो पर कब्ज़ा, फिर भी ये ....

"संत" माने जाते है..?

👉 विनम्रता गुण

विनम्रता आपके आंतरिक प्रेम की शक्ति से आती है। दूसरों को सहयोग व सहायता का भाव ही आपको विनम्र बनाता है। यह कहना गलत है कि यदि आप विनम्र बनेंगे तो दूसरे आपका अनुचित लाभ उठाएँगे। जबकि यथार्थ स्वरूप में विनम्रता आपमें गज़ब का धैर्य पैदा करती है। आपमे सोचने समझने की क्षमता का विकास करती है। विनम्र व्यक्तित्व का एक प्रचंड आभामण्डल होता है। धूर्तो के मनोबल उस आभा से निस्तेज हो स्वयं परास्त हो जाते है। उल्टे जो विमम्र नहीं होते वे आसानी से धूर्तों के प्रभाव में आ जाते है क्योंकि धूर्त को तो अहंकारी का मात्र चापलूसी से अहं सहलाना भर होता है। बस चापलूसी से अहंकार प्रभावित हो जाता है। किन्तु जहाँ विनम्रता होती है वहाँ तो व्यक्ति को सत्य की अथाह शक्ति प्राप्त होती है। सत्य की शक्ति, मनोबल प्रदान करती है।

विनम्रता के प्रति पूर्ण समर्पण युक्त आस्था जरूरी है। मात्र दिखावे की ओढी हुई विनम्रता, अक्सर असफ़ल ही होती है। सोचा जाता है-‘पहले  विन्रमता से निवेदन करूंगा यदि काम न हुआ तो भृकुटि टेढी करूंगा’ यह चतुरता विनम्रता के प्रति अनास्था है, छिपा हुआ अहं भी है। कार्य पूर्व ही अविश्वास व अहं का मिश्रण असफलता ही न्योतता है। सम्यक् विनम्र व्यक्ति, विनम्रता को झुकने के भावार्थ में नहीं लेता। सच्चाई उसका पथप्रदर्शन करती है। निश्छलता उसे दृढ व्यक्तित्व प्रदान करती है।

अहंकार सदैव आपसे दूसरों की आलोचना करवाता है। वह आपको आलोचना-प्रतिआलोचना के एक प्रतिशोध जाल में फंसाता है। अहंकार आपकी बुद्धि को कुंठित कर देता है। आपके जिम्मेदार व्यक्तित्व को संदेहयुक्त बना देता है। अहंकारी दूसरों की मुश्किलों के लिए उन्हें ही जिम्मेवार कहता है और उनकी गलतियों पर हंसता है। जबकि अपनी मुश्किलो के लिए सदैव दूसरों को जवाबदार ठहराता है। और लोगों से द्वेष रखता है।

विनम्रता हृदय को विशाल, स्वच्छ और ईमानदार बनाती है। यह आपको सहज सम्बंध स्थापित करने के योग्य बनाती है। विनम्रता न केवल दूसरों का दिल जीतने में कामयाब होती है अपितु आपको अपना ही दिल जीतने के योग्य बना देती है। जो आपके आत्म-गौरव और आत्म-बल में उर्ज़ा का अनवरत संचार करती है। आपकी भावनाओं के द्वन्द समाप्त हो जाते है। साथ ही व्याकुलता और कठिनाइयां स्वतः दूर होती चली जाती है। एक मात्र विनम्रता से ही सन्तुष्टि, प्रेम और सकारात्मकता आपके व्यक्तित्व के स्थायी गुण बन जाते है।

गुरुवार, 13 जून 2019

👉 ईश्वर पर विश्वास

जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने को थी।

वो एकांत जगह की तलाश में घुम रही थी, कि उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी। उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिये।

वहां पहुँचते  ही उसे प्रसव पीडा शुरू हो गयी।

उसी समय आसमान में घनघोर बादल वर्षा को आतुर हो उठे और बिजली कडकने लगी।

उसने दाये देखा, तो एक शिकारी तीर का निशाना, उस की तरफ साध रहा था।

घबराकर वह दाहिने मुड़ी, तो वहां एक भूखा शेर, झपटने को तैयार बैठा था।

सामने सूखी घास आग पकड चुकी थी और पीछे मुड़ी, तो नदी में जल बहुत था।

मादा हिरनी क्या करती?
वह प्रसव पीडा से व्याकुल थी।
अब क्या होगा? 

क्या हिरनी जीवित बचेगी? क्या वो अपने शावक को जन्म दे पायेगी?
क्या शावक जीवित रहेगा? 

क्या जंगल की आग सब कुछ जला देगी?
क्या मादा हिरनी शिकारी के तीर से बच पायेगी?
क्या मादा हिरनी भूखे शेर का भोजन बनेगी?
वो एक तरफ आग से घिरी है और पीछे नदी है। क्या करेगी वो?

हिरनी अपने आप को शून्य में छोड़, अपने बच्चे को जन्म देने में लग गयी ।

कुदरत का कारिश्मा देखिये। बिजली चमकी और तीर छोडते हुए, शिकारी की आँखे चौंधिया गयी ।
उसका तीर हिरनी के पास से गुजरते, शेर की आँख में जा लगा, शेर दहाडता हुआ इधर उधर भागने लगा।

और शिकारी , शेर को घायल ज़ानकर भाग गया।
घनघोर बारिश शुरू हो गयी और जंगल की आग बुझ गयी।

हिरनी ने शावक को जन्म दिया।

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हमारे जीवन में भी कभी कभी कुछ क्षण ऐसे आते है, जब हम चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई निर्णय नहीं ले पाते। तब सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर अपने उत्तरदायित्व व प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। अन्तत: यश, अपयश, हार, जीत, जीवन, मृत्यु का अन्तिम निर्णय ईश्वर करता है। हमें उस पर विश्वास कर उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए।

कुछ लोग हमारी सराहना करेंगे,
कुछ लोग हमारी आलोचना करेंगे।

दोनों ही मामलों में हम फायदे में हैं,

एक हमें प्रेरित करेगा और
दूसरा हमारे भीतर सुधार लाएगा।।

अच्छा सोचें👌
सच्चा सोचें👍

👉 हमें यह नहीं पता कि...........

हमें यह नहीं पता कि क्या ढ़कना है और क्या खुला रखना है ??
हम भारत वासियों को कवर चढ़ाने का बहुत शौक है |

बाज़ार से बहुत सुंदर सोफा खरीदेंगे लेकिन फिर उसे भद्दे  सफेद जाली के कवर से ढक देंगे |🤔

बढ़िया रंग का सुंदर सूटकेस खरीदेंगे, फिर उस पर मिलिट्री रंग का कपड़ा चढ़ा देंगे |🤔

मखमल की रजाई पर फूल वाले फर्द का कवर!!!🤔
फ्रिज पर कवर!🤔
माइक्रोवेव पर कवर!🤔
वाशिंग मशीन पर कवर!🤔
मिक्सी पर कवर!🤔
थर्मस वाली बोतल पर कवर!🤔
TV पर कवर!🤔
कार पर कवर!🤔
कार की कवर्ड सीट पर एक और कवर!🤔
स्टेयरिंग पर कवर!🤔
गियर पर कवर!🤔
फुट मैट पर एक ओर कवर!🤔
सुंदर शीशे वाली डाइनिंग टेबल पर प्लास्टिक का कवर!🤔
स्टूल कवर!🤔
चेयर कवर!🤔
मोबाइल कवर!🤔
बेडशीट के ऊपर बेड कवर!🤔
गैस के सिलिंडर पर कवर!🤔
RO पर कवर!🤔
किताबों पर कवर!🤔

काली कमाई पर कवर!!!🤔
गलत हरकतों पर कवर!!!🤔
बुरी नियत पर कवर!!!🤔

लेकिन.....

कचरे के डिब्बे पर ढक्कन नदारद!!😁
खुली नालियों के कवर नदारद!!😁
कमोड पर ढक्कन नदारद!!😁
मैनहोल के ढक्कन नदारद!!😁
सर से हेलमेट नदारद!!😁
खुले खाने पर से कवर नदारद!!😁
आधुनिकता में तन से कपडे नदारद!!😁
इन्सानों के दिल से इंसानियत नदारद!!😁

क्या ढकना है और क्या खुला रखना है!!!
हम लोग आज तक ये नहीं समझ पाये।

👉 "एहसास"

रामायण कथा का एक अंश
जिससे हमे सीख मिलती है "एहसास" की...😊
    

श्री राम, लक्ष्मण एवम् सीताa' मैया चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे,
राह बहुत पथरीली और कंटीली थी!
की यकायक श्री राम के चरणों मे कांटा चुभ गया!

श्रीराम रूष्ट या क्रोधित नहीं हुए, बल्कि हाथ जोड़कर धरती माता से अनुरोध करने लगे!
बोले- "माँ, मेरी एक विनम्र प्रार्थना है आपसे, क्या आप स्वीकार करेंगी?"

धरती बोली- "प्रभु प्रार्थना नहीं, आज्ञा दीजिए!"

प्रभु बोले, "माँ, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज मे इस पथ से गुज़रे, तो आप नरम हो जाना!
कुछ पल के लिए अपने आँचल के ये पत्थर और कांटे छुपा लेना!
मुझे कांटा चुभा सो चुभा, पर मेरे भरत के पाँव मे आघात मत करना"

श्री राम को यूँ व्यग्र देखकर धरा दंग रह गई!
पूछा- "भगवन, धृष्टता क्षमा हो! पर क्या भरत आपसे अधिक सुकुमार है?
जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गए, तो क्या कुमार भरत सहन नही कर पाँएगें?
फिर उनको लेकर आपके चित मे ऐसी व्याकुलता क्यों ?"

श्री राम बोले- "नही...नही माते, आप मेरे कहने का अभिप्राय नही समझीं! भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पाँव को नही, उसके हृदय को विदीर्ण कर देगा!"

"हृदय विदीर्ण!! ऐसा क्यों प्रभु?",
धरती माँ जिज्ञासा भरे स्वर में बोलीं!

"अपनी पीड़ा से नहीं माँ, बल्कि यह सोचकर कि...इसी कंटीली राह से मेरे भैया राम गुज़रे होंगे और ये शूल उनके पगों मे भी चुभे होंगे!
मैया, मेरा भरत कल्पना मे भी मेरी पीड़ा सहन नहीं कर सकता, इसलिए उसकी उपस्थिति मे आप कमल पंखुड़ियों सी कोमल बन जाना..!!"

अर्थात 
रिश्ते अंदरूनी एहसास, आत्मीय अनुभूति के दम पर ही टिकते हैं।
जहाँ गहरी आत्मीयता नही, वो रिश्ता शायद नही परंतु दिखावा हो सकता है 

इसीलिए कहा गया है कि...
रिश्ते खून से नहीं, परिवार से नही,
मित्रता से नही, व्यवहार से नही,
बल्कि...
सिर्फ और सिर्फ आत्मीय "एहसास" से ही बनते और निर्वहन किए जाते हैं।
जहाँ एहसास ही नहीं, 
आत्मीयता ही नहीं ..
वहाँ अपनापन कहाँ से आएगाl

गुरुवार, 30 मई 2019

👉 यह हमेशा ध्यान रखे

1) निम्बू-मिर्च खाने के लिये है.. कही टाँगने के लिए नहीं है।

2) बिल्लियाँ जंगली या पालतू जानवर है, बिल्ली के रास्ता काटने से कुछ गलत नहीं होता.. बल्कि चूहों से होनेवाले नुक्सान को बचाया जा सकता है।

3) छींकना एक नैसर्गिक क्रिया है, छींकने से कुछ अनहोनी नहीं होती ना हि किसी काम में बाधा आती है। छींकने से शरीर की सोई हुई मांसपेशियां सक्रिय  हो जाती है।

4) भूत पेड़ों पर नहीं रहते, पेड़ों पर पक्षी रहते है।

5) चमत्कार जैसी कोई चीज नहीं होती। हर घटना के पीछे वैज्ञानिक कारण होता है।

6) तांत्रिक, बाबा, कर्मकांडी जैसे लोग झुठे होते है, जिन्हें शारारिक मेहनत नहीं करनी ; ये वही लोग है। 

7) जादू टोना, या किसी ने कराया ऐसा कुछ नहीं होता, ये दुर्बल लोगों के मानसिक विकार है। 
जादू-टोना करके आपके ग्रहो की दिशा बदलने वाले बाबा, हवा और मेघों की दिशा बदलकर बारिश नहीं ला सकते क्या? सीमाओं पर हमारे जवानों को शहीद होने से बचा नहीं सकते है क्या ?

8 ) वास्तुशास्त्र भ्रामक है। सिर्फ दिशाओ का डर दिखाकर लूटने का तरीक़ा है।
वास्तविक तो पृथ्वी ही खुद हर क्षण अपनी दिशा बदलती है। अगर कुबेर जी उत्तर दिशा में है तो एक ही स्थान या दिशा में अमीर और गरीब दोनों क्यों पाये जाते है?

9) मन्नत के लिये बलि, टिप या चढ़ावे से भगवान प्रसन्न होकर फल देते है, तो क्या भगवान् रिश्वतखोर है?
आध्यात्म मोक्ष के लिए है, धन कमाने के लिए नहीं। 

नोट -- यह मेसैज 15 दूसरे ग्रूप्स में भेजने से कोई खुशखबरी नहीं मिलेगी और इसको डिलीट करने पर कोई अनहोनी भी नहीं होगी। 
परंतु इसे Farword करने से आपके कई मित्र मेहनत और कर्म का महत्त्व जरूर जान सकेंगे। 

कर्मयोगी बनो, मन का डर भगाओ।

👉 एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई

🏳️ध्यान से पढ़ियेगा👇      〰️〰️〰️〰️〰️ एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई कि  ये फिल्म अभिनेता (या अभिनेत्री) ऐसा क्या करते हैं कि इनको एक फिल्म...