रविवार, 25 नवंबर 2018

10 तथ्य


भारत के बारे में
10 ऐसे तथ्य जो मजाकिया होने के साथ सच भी हैं...

1.
भारत एक ऐसा देश है
जो कई स्थानीय भाषाओं द्वारा विभाजित है
और
एक विदेशी भाषा द्वारा  एकजुट है.

2.
भारत में लोग
ट्रैफिक सिग्नल की रेड लाइट पर भले ही ना रुकें,
लेकिन अगर
एक काली बिल्ली रास्ता काट जाए तो हजारों लोग लाइन में खड़े हो जाते हैं.
अब तो लगता है
ट्रैफिक पुलिस में भी काली बिल्लियों की भर्ती करनी पड़ेगी.

3.
भारत का मतदाता
वोट देने से पहले उम्मीदवार की जाति देखता है,
न कि उसकी योग्यता.
अब इन लोगों को कौन समझाये कि भाई तुम देश के लिए नेता ढूंढ रहे हो,
न कि अपने लिए जीजा.

4.
भारत एक ऐसा देश है,
जहाँ एक्टर्स क्रिकेट खेल रहे हैं,
क्रिकेटर्स राजनीति खेल रहे है,
राजनेता पोर्न देख रहे हैं,
और पोर्न स्टार्स एक्टर बन रहे हैं.

5.
भारत में आप
जुगाड़ से करीब-करीब सब कुछ पा सकते हैं.

6.
हम
एक ऐसे देश में रहते हैं,
जहाँ
नोबेल शान्ति पुरस्कार मिलने से पहले लगभग कोई भारतीय नहीं जानता था कि कैलाश सत्यार्थी कौन है.
लेकिन अगर एक
रशियन टेनिस खिलाड़ी
हमारे देश के एक क्रिकेटर को नहीं जानती
तो ये हमारे लिए अपमान की बात है.

7.
भारत
गरीब लोगों का
एक अमीर देश है,
भारत की जनता ने दो फिल्मों,
बाहुबली और बजरंगी भाईजान,
पर 700 करोड़ खर्च कर दिए.

8.
हम भारतीय
अपनी बेटी की पढ़ाई से ज्यादा खर्च बेटी की शादी पे कर देते हैं.

9.
हम एक ऐसे देश में
रहते है, जहाँ एक पुलिसवाले को देखकर लोग सुरक्षित महसूस करने के बजाए घबरा जाते हैं.

10.
हम भारतीय
हेलमेट सुरक्षा के लिहाज से कम,
चालान के डर से ज्यादा पहनते है

गुरुवार, 22 नवंबर 2018

FAMILY

धरती  पर  प्यार  से  तीन  शब्दों  की  रचना  हुयी  है .......

1.   Boyfriend
2.   Girlfriend
3.   Family

किन्तु  एक  बात ध्यान देने वाली  है  कि .....

Boyfriend   और 
Girlfriend    इन  दो  शब्दों   के    
                  अन्तिम  तीन  अक्षर से  बनता  है  end  
इसलिये  ये  सम्बन्ध एक दिन ख़त्म हो  जाते हैं  परन्तु .....

तीसरा  शब्द  है  :
FAMILY  =  FAM  +  ILY      
जिसके पहले  तीन अक्षर से बनता  है :

FAM = Father  And  Mother  

आैर अन्तिम  तीन अक्षर  से :
ILY  =  I  Love You 

अत: जिस शब्द का आरम्भ पिता एंव माता से और अन्त प्यार के  साथ  हो,  वह शब्द सही मायने मे परिवार है !!!

ऐ उम्र !

ऐ उम्र !
कुछ कहा मैंने,
पर शायद तूने सुना नहीँ..!
तू छीन सकती है बचपन मेरा,
पर बचपना नहीं..!!

हर बात का कोई जवाब नही होता...,
हर इश्क का नाम खराब नही होता...!
यूं तो झूम लेते है नशे में पीनेवाले....,
मगर हर नशे का नाम शराब नही होता...!

खामोश चेहरे पर हजारों पहरे होते है....!
हंसती आखों में भी जख्म गहरे होते है....!
जिनसे अक्सर रुठ जाते है हम,
असल में उनसे ही रिश्ते गहरे होते है....!

किसी ने खुदा से दुआ मांगी.!
दुआ में अपनी मौत मांगी,
खुदा ने कहा, मौत तो तुझे दे दु मगर...!
उसे क्या कहु जिसने तेरी जिंदगी मांगी...!

हर इंन्सान का दिल बुरा नही होता....!
हर एक इन्सान बुरा नही होता.
बुझ जाते है दीये कभी तेल की कमी से....!
हर बार कुसुर हवा का नही होता.. !!

गुलजार

बुधवार, 21 नवंबर 2018

किराये की साइकिल . .

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पहले (1985-90) हम लोग गर्मियों में किराए की छोटी साईकिल लेते थे, अधिकांस लाल रंग की होती थी जिसमें पीछे कैरियर नहीं होता। जिससे आप किसी को डबल न बैठाकर घूमे। किराया शायद 25-50 पैसे प्रति घंटा होता था किराया पहले लगता था ओर दुकानदार नाम पता नोट कर लेता थाा 

किराये के नियम कड़े होते थे .. जैसे की पंचर होने पर सुधारने के पैसे, टूट फूट होने पर आप की जिम्मेदारी, खैर ! हम खटारा छोटी सी किराए की  साईकिल पर सवार उन गलियों के युवराज होते  थे, पूरी ताकत से पैड़ल मारते, कभी हाथ छोड़कर चलाते और बैलेंस करते, तो कभी गिरकर उठते और फिर चल देते।

अपनी गली में आकर सारे दोस्त, बारी बारी से, साईकिल चलाने मांगते किराये की टाइम की लिमिट न निकल जाए, इसलिए तीन-चार बार साइकिल लेकर दूकान के सामने से निकलते। 

तब किराए पर साइकिल लेना ही अपनी रईसी होती। खुद की अपनी छोटी साइकिल रखने वाले तब रईसी झाड़ते। 

वैसे हमारे घरों में बड़ी काली साइकिलें ही होती थी। जिसे स्टैंड से उतारने और लगाने में पसीने छूट जाते। जिसे हाथ में लेकर दौड़ते, तो एक पैड़ल पर पैर जमाकर बैलेंस करते।

ऐसा  करके फिर कैंची चलाना सीखें। बाद में डंडे को पार करने का कीर्तिमान बनाया, इसके बाद सीट तक पहुंचने का सफर एक नई ऊंचाई था। फिर सिंगल, डबल, हाथ छोड़कर, कैरियर पर बैठकर साइकिल के खेल किए। 

ख़ैर जिंदगी की साइकिल अभी भी चल रही है। बस वो दौर वो आनंद नही है।

क्योंकि कोई माने न माने पर जवानी से कहीं अच्छा वो खूबसूरत बचपन ही हुआ करता था .. जिसमें दुश्मनी की जगह सिर्फ एक कट्टी हुआ करती थी और सिर्फ दो उंगलिया जुडने से दोस्ती फिर शुरू हो जाया करती थी। अंततः बचपन एक बार निकल जाने पर सिर्फ यादें ही शेष रह जाती है और रह रह कर याद आकर सताती है।

पर आज के बच्चो का बचपन एक मोबाईल चुराकर ले गया है।

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

एक चिड़िया और चिड़ा की प्रेम कहानी


एक दिन चिड़िया बोली - मुझे छोड़ कर
कभी उड़ तो नहीं जाओगे ?
चिड़ा ने कहा - उड़
जाऊं तो तुम पकड़ लेना.
चिड़िया-मैं तुम्हें पकड़
तो सकती हूँ,
पर फिर पा तो नहीं सकती!
यह सुन चिड़े की आँखों में आंसू आ गए और उसने
अपने पंख तोड़ दिए और बोला अब हम
हमेशा साथ रहेंगे,
लेकिन एक दिन जोर से तूफान आया,
चिड़िया उड़ने लगी तभी चिड़ा बोला तुम उड़
जाओ मैं नहीं उड़ सकता !!
चिड़िया- अच्छा अपना ख्याल रखना, कहकर
उड़ गई !
जब तूफान थमा और चिड़िया वापस
आई तो उसने देखा की चिड़ा मर चुका था
और एक डाली पर लिखा था.....
""काश वो एक बार तो कहती कि मैं तुम्हें
नहीं छोड़ सकती""
तो शायद मैं तूफ़ान आने से
पहले नहीं मरता ।।

फ़ासले ऐसे भी होंगे...

‘‘जुबिन, हमारे वहां शिफ़्ट होने का क्या हुआ?’ उसने व्यग्रता से पूछा था. ‘बात चल रही है यार, समय लगता है...तुम तब तक दिल्ली में ही कोई काम क्यों नहीं ढूंढ़ लेतीं? तुम्हारा समय कट जाएगा.’ ‘पर हमें वहां आना है जुबिन...बच्चे और मैं तुम्हारा साथ चाहते हैं.’ 

‘करता हूं जल्दी कुछ...ओके बाय बाय. मेरी कैब आ गई है, अब फ़ोन रखता हूं. अपना और बच्चों का ख़्याल रखना.’ इतना कहकर जल्दबाज़ी में फ़ोन काट दिया गया. वह हाथों में रिसीवर पकड़े ख़ाली आंखों से दीवार को ताकती खड़ी रह गई थी. आसमान में बादल उमड़-घुमड़ रहे थे और ऐसे ही बादल उसके मन में भी घुमड़ रहे थे. आठ साल...एक लंबा अरसा था कम से कम उसके लिए... बीच के एक-दो साल छोड़ दिए जाएं तो आठ साल हो चुके थे जुबिन को अमेरिका जाकर और इन आठ सालों में उसने हर दिन उसे याद किया होगा, मगर क्या जुबिन के लिए भी वह उतनी ही दिल अज़ीज़ थी? क्या उनके रिश्ते में सचमुच अभी भी उतना ही लगाव बाक़ी है, जितना शादी के पहले वे महसूस किया करते थे?

आज जुबिन से करीब डेढ़ हफ़्ते बाद बात हुई थी. वह भी तब, जब उसने वॉट्सऐप पर तीखा-सा संदेश भेजा था. उसकी इच्छा थी कुछ सुख-दुख की बातें करे, बताए उसे कि उसके जाने के बाद वह कितनी अकेली हो गई है. कितनी मुश्क़िल होती है उसे अकेले सब कुछ संभालने में, अब बच्चे भी बड़े होते जा रहे हैं. क्या इस साल वह उसे और बच्चों को अपने साथ ले जाने वाला है? पर सब कुछ मन में ही रह गया. दो मिनट से भी कम की बातचीत में उसने बस ऊपरी तौर पर हालचाल पूछे और ख़्याल रखने की हिदायत के साथ फ़ोन काट दिया. क्या पति-पत्नी के बीच की प्यारभरी बातचीत ऐसी ही होती है? क्या इतना भी नहीं पूछा जा सकता था कि मेरे बिना कैसे रहती हो तुम? क्या यह नहीं कहा जा सकता था कि तुम्हारी बहुत याद आती है...पर...

उसकी आंखें भर आई थीं. यह सब सुने तो उसे अरसा हो गया था. शादी के बाद बमुश्क़िल सालभर साथ रहे होंगे दोनों... उसके बाद तो बस चिर विरह ही आया था उसके हिस्से में. अक्सर सोचती थी कि जुबिन को अपना करियर, अपना काम, अपनी तऱक्क़ी इतनी प्यारी थी तो उसने शादी की ही क्यों उससे? वह तो अच्छी-ख़ासी पढ़-लिख रही थी...उसे याद आया शादी के कुछ दिन बाद उसने जुबिन से लाड़ जताते हुए पूछा था, आख़िर बताओ तो तुमने मुझसे शादी क्यों की? उम्मीद थी कि वह कोई रोमैंटिक-सी बात कहेगा, मगर उसने छूटते ही कहा,‘क्या करता यार, शादी न करता तो तुम जैसी कम्पेटिटर को रास्ते से कैसे हटाता? मुझे हराने की आदत है, हारने की नहीं मगर तुम थी कि कहीं जीतने ही नहीं दे रही थीं.’

‘वॉट नॉनसेंस...’ वह बौखलाई थी...जुबिन ठठाकर हंस पड़ा था,‘अरे, जस्ट किडिंग बाबा..आई लव यू सच्ची.’
मगर अब उसे लगता कि वह जस्ट किडिंग नहीं था. वह तो कड़वा सच था जो जुबिन के मुंह से अचानक बाहर आ गया था. वह सचमुच बहुत ही होशियार छात्रा थी...कम्प्यूटर साइंस में पोस्टग्रैजुएशन करने वाली गिनी-चुनी लड़कियों में से एक. पिताजी के तबादले के कारण जुबिन के शहर में और उसी के कॉलेज में आ धमकी थी. उसके आने से पहले जुबिन कॉलेज का टॉपर था, मगर उसने पहले सेमेस्टर में ही उसके रिकॉर्ड को तोड़ दिया था. 98 प्रतिशत हासिल करके वह सभी की नज़रों में चढ़ गई थी. उसे याद आया, जुबिन पहले साल उससे बहुत ही कटा-कटा रहता था. एमएससी के पहले साल कॉलेज में टॉप करने पर तो उसने उसे बधाई तक नहीं दी थी. उसे भी क्या फ़र्क़ पड़ता था? जुबिन जैसे कई उसके आगे-पीछे थे मगर उसका एक मात्र लक्ष्य था अमेरिका से पीएचडी करने के लिए कॉलेज की छात्रवृत्ति पाना और इसके लिए वह जी-तोड़ मेहनत कर रही थी. 

फिर अचानक कॉलेज के एक कार्यक्रम को दोनों को साथ मिलकर आयोजित करने का ज़िम्मा सौंपा गया. इस बार जुबिन का रंग-ढंग पूरी तरह से बदला हुआ था. वह न केवल उससे खुलकर बातचीत करने लगा था, वरन उसके निकट रहने का भी प्रयास करता मालूम होता था. उसने भी इस दोस्ती के हाथ को थाम बढ़ाया...जुबिन भी उसी छात्रवृत्ति के लिए तैयारी कर रहा था अत: कार्यक्रम के बाद भी अक्सर दोनों मिलने लगे. साथ-साथ पढ़ने लगे, नोट्स साझा करने लगे...और ऐसे ही एक दिन उसके नोट्स में जुबिन का पत्र आया. उसके जीवन का पहला प्रेम पत्र, जिसे पढ़कर वह सचमुच अपने आपे में नहीं रही थी. उस दिन उसे लगा कि वह भी जुबिन को पसंद करती थी. इतने दिन तो पढ़ाई की लगन के चलते उसने कितनों के मौखिक प्रणय निवेदन ठुकरा दिए थे मगर इस तरह के इज़हार का यह पहला मौक़ा था. पता नहीं कैसा सम्मोहन था उस पत्र में कि वह बावरी-सी हो गई. सारे लक्ष्य धुंधला गए और याद रहा बस जुबिन और उसका प्रेम-पत्र...उसके अंदर के यौवन ने मानो अंगड़ाई ली थी और उसने प्रणय का उत्तर प्रणय से देना स्वीकार किया था.

कुछ ही दिनों में उसकी दुनिया बदल गई थी. जुबिन के प्रणय निवेदन को स्वीकारने के बाद उसका बहुत सारा व़क्तजुबिन के साथ बीतने लगा था. वह अक्सर कहता,‘अरे क्या करना है तुम्हें आगे पढ़कर, अमेरिका जाकर...मैं हूं न. हम शादी करेंगे और मैं तुम्हारा पूरा ख़्याल रखूंगा. किसी भी बात की कमी न होने दूंगा.’ कभी कहता,‘यार तुम लड़कियों को इतनी बढ़िया मौक़ा मिलता है-शादी करो और ऐश की ज़िंदगी जियो...ज़्यादा ही लगे तो किसी कॉलेज में पढ़ाने लगो... और तुम हो लोग फालतू के पचड़ों में पड़ जाती हो.’ 

उसकी दादी अक्सर कहा करती थीं,‘जब दिमाग़ पर शनि महाराज चढ़ते हैं तो मति मारी जाती है. सही-ग़लत कुछ समझ में नहीं आता.’ क्या ऐसा ही हुआ था उसके साथ उन दिनों? जैसे ब्रेनवॉश हो गया हो...जैसे किसी ने दिमाग़ में बसे उसके सारे सपनों को मिटाकर नई इबारत लिख डाली हो...कैसे दिनोंदिन जुबिन का नशा सिर चढ़कर बोलने लगा था. अमेरिका जाने के, आगे पढ़ने के उसके सारे ख़्वाब धुंधलाने लगे थे और आंखों में एक ही चमकदार सपना हिलोरें मारने लगा था-जुबिन की जीवनसाथी बनने का.
परीक्षा से पहले जुबिन ने उसे अपने घरवालों से मिलवाया. सुंदर, सुशिक्षित, ख़ानदानी लड़की को अपनाने में उन्हें भला कैसी हिचक होती? इसी तरह जुबिन और उसका परिवार भी उसके मां-पापा को पसंद आ गए थे. जुबिन के परिवार की सुदृढ़ आर्थिक पृष्ठभूमि और जुबिन की क़ाबिलियत को देखते हुए जुबिन के नौकरी में न होने की चिंता करने का कारण न था. उनके लिए एक और राहत की बात यह थी बेटी के दिमाग़ से आगे पढ़ने का भूत उतर गया था. अब वे उसकी शादी करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर सकते थे.

स्नातकोत्तर की परीक्षा के बाद दोनों विवाह बंधन में बंध गए. परीक्षा के नतीजों में इस बार टॉप पर जुबिन था, मगर उसे इसकी क्या परवाह होती...? उसे तो उसके इच्छित साथी यानी जुबिन का साथ मिल गया था. प्यार में पगा एक साल पलक झपकते बीत गया. जुबिन और वह, वह और जुबिन...मानो इसके अलावा आसपास कुछ था ही नहीं. इसी बीच जुबिन को पीएचडी के लिए छात्रवृत्ति मिली और यहां उसे अपनी कोख में पलते अंश के अस्तित्व का अहसास हुआ. जुबिन तो मानो ख़ुशी से पागल ही हो गया था. आख़िर दो-दो ख़ुशख़बरियां एक साथ उसकी झोली में आई थीं. सभी उस नन्हे मेहमान के क़दमों की शुभता का बखान करते न थकते थे. 

वह ख़ुश थी, पर आशंकित भी थी. जुबिन को तीन महीने में जाना था और उसके बाद कम से कम छह महीने तो भारत आने की उम्मीद थी ही नहीं. कैसे कटेगा इतना लंबा अरसा? जुबिन के बिना तो एक दिन भी काटना मुश्क़िल था उसके लिए. उस पर नए मेहमान की ज़िम्मेदारी सब कुछ गड्डमड्ड हो गया था उसके जीवन में. कितनी बार सोचती काश जुबिन का मन बदल जाए और वह अमेरिका जाने का इरादा छोड़ दे, जैसे उसने जुबिन के लिए सब छोड़ दिया, भुला दिया... मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. जुबिन चला गया अपनी पढ़ाई पूरी करने और वह उसके अंश को कोख में लिए बिसूरती रही विरहा की रातों में. फिर मां का बुलावा आया कि जुबिन तो है नहीं, प्रसव तक मायके में ही रह लेगी और वह मायके आ गई.

उसके कमरे में सब कुछ वैसा ही था, जैसा वह छोड़ गई थी. अपनी पुस्तकों पर हाथ फेरते उसे बीते दिन बेतरह याद आने लगे...अपने कमरे में उसने दीवार पर मार्कर से लिख रखा था-आई कैन, आई विल.. शादी के समय सारे घर की पुताई हुई थी मगर जाने क्या सोचकर मां ने उसे लिखा रहने दिया था और उसके आसपास ऐसा टेक्सचर करवा दिया था कि वह सुन्दर दिखाई देने लगा था. उस इबारत पर हसरत से हाथ फेरते हुए एकबारगी उसके मन में आया था-क्या कुछ ग़लत हो गया है? दो बूंद आंसू पलकों की कोर पर आकर थम गए थे, पर तभी मां की बात याद आई,‘अब जो कुछ सोचना, अच्छा ही सोचना. मां की सोच बच्चे पर बड़ा असर डालती है.’ उसने मन से सारी शंका-कुशंकाओं को परे धकेल दिया था. सोच लिया था-निर्णय मेरा तो उसके परिणामों की ज़िम्मेदारी भी मेरी ही है.

नौ माह बीते और उसने एक स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया. बच्ची के जन्म के बाद उसके जीवन का सूनापन भरने लगा था. उसकी तीमारदारी में दिन कैसे गुज़र जाता, पता ही नहीं चलता. जुबिन की भी ख़ुशी का पारावार न था. अभी कुछ महीने वह बच्ची को देख न सकेगा और तब तक उसे बिटिया की फ़ोटो और वीडियो से ही संतोष करना होगा, इसका उसे मलाल था. बिटिया का नाम जूही रखा गया. जुबिन और माही की बेटी जूही. 

उसे याद आया, जूही के जन्म के छह माह बाद जुबिन दो सप्ताह के लिए भारत आया था. सारे दिन बस माही और जूही में व्यस्त रहता. शादी के बाद की शायद यही सुनहरी यादें थीं उसके खाते में जो उसे जुबिन से जोड़े रखे हुए थीं. इसके बाद लंबी दूरी क़ायम हो गई थी. पहले-पहले तो लगातार बातचीत होती थी, स्काइप भी कर लिया करता था जुबिन, पर धीरे-धीरे ‘रिसर्च का काम बढ़ गया है, अक्सर फ़ील्ड में रहता हूं.’ का जुमला लगातार दोहराया जाने लगा...कहीं पढ़ा था उसने कि दूरियों की भी आदत हो जाती है. क्या जुबिन को भी उससे दूर रहने की आदत हो गई थी?

ख़ैर, समय कहां ठहरता है सो यहां भी नहीं ठहरा. जुबिन वापस आया अपने सिर पर कामयाबी का ताज पहने...वहां की पढ़ाई कैसी है, कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं. कितना कुछ था उसके पास कहने के लिए, मगर वह लाड़-दुलार कहीं खो गया था, कुछ तो बदला-बदला सा था दोनों के बीच. माही को लगा शायद इतने दिनों की दूरी के चलते ऐसा महसूस हो रहा है. उसने भरसक कोशिश की उसके क़रीब रहने की, उसे भरपूर प्यार देने की.

रिसर्च के दौरान ही जुबिन को एक बड़ी कंपनी में नौकरी का प्रस्ताव मिला था और वह उसके बारे में गंभीर था, मगर वीज़ा में कुछ मुश्क़िलें थीं अत: जुबिन ने दिल्ली में ही काम करना शुरू कर दिया. माही और जूही भी उसके साथ दिल्ली आ बसे. ज़िंदगी पटरी पर आने लगी थी. 

जूही स्कूल जाने लगी थी. माही चाहती थी कि वह भी कुछ काम शुरू करे, मगर जुबिन पहले परिवार पूर्ण करना चाहता था. जूही का एक भाई भी हो, जुबिन की इस इच्छा को भी माही ने स्वीकार किया. सालभर में उनके घर में फिर किलकारी गूंजी...जतिन का जन्म हुआ. जुबिन की कुंडली में शायद बच्चों के क़दमों से ही भाग्योदय लिखा था. जतिन तीन माह का होते-होते उसके पुराने प्रस्ताव को हरी झंडी मिल गई. वीज़ा मिलने के रास्ते खुल गए और जुबिन फिर सात समुंदर दूर उड़ने की तैयारी करने लगा. माही का दिल इस बार बुरी तरह से आशंकित था. दिल्ली जैसा शहर, वह अकेली दो बच्चों के साथ कैसे मैनेज करेगी? 

‘अरे यार चिंता किस बात की है? ढेर से रुपए भेजता रहूंगा मैं...जेब में रुपया हो तो सारी दिक़्क़तें भाग जाती हैं और यूं भी घर में सर्वेंट्स है, ड्राइवर है...डोंट वरी.’ 
‘पर तुम तो नहीं हो जुबिन. तुमसे दूर रह-रहकर थक गई हूं मैं,’ उसकी आवाज़ रुआंसी हो गई थी.

‘अरे यार, बस कुछ माह या हद से हद एक साल. फिर तो मुझे परिवार को साथ रखने की अनुमति मिल जाएगी. बस चली आना उड़कर मेरे पास..’ जुबिन ने उसे अपने आगोश में समेटते हुए कहा था. उसने जुबिन के सीने में मुंह छिपा लिया था.

मगर कुछ माह या एक साल ख़त्म ही नहीं हुआ. माही के पास सुविधाएं थीं, रुपए थे मगर जिस प्यार की ख़ातिर उसने अपना सब कुछ छोड़ दिया था, वही उसके जीवन से दूर होता जा रहा था. 

आज जुबिन के व्यवहार से उसे बड़ा धक्का लगा था. अब कहता है, दिल्ली में नौकरी ढूंढ़ लूं. जब नौकरी करना चाहती थी तब इसे एक और बच्चा चाहिए था...इडियट. यह प्यार नहीं था, उसका इस्तेमाल किया जा रहा था और वह...पढ़ी-लिखी लड़की होने का दंभ भरती मूर्खों की तरह इस्तेमाल होती जा रही थी. जुबिन उसे अपनी इच्छा के मुताबिक़ नचाता जा रहा था और वह कठपुतली बनी नाचती जा रही थी. वह अपने जीवन में सुखी था और यहां वह बेकार ही परेशान हो रही थी उसकी याद में.
कभी-कभी उसके मन में ख़्याल आता,‘कहीं जुबिन के जीवन में उसके अलावा कोई और तो नहीं आ गया है? नहीं तो उसमें ऐसा परिवर्तन आने का कारण क्या है?’ जुबिन द्वारा सोशल मीडिया पर साझा किए जा रहे फ़ोटो, घटनाएं आदि भी उसे विचलित करती थीं मगर दूसरे ही क्षण वह उस ख़्याल को मन से झटक देती. यह सब सोचना भी उसके लिए असहनीय था. कभी-कभी वह अपने बारे में सोचती तो हैरत में पड़ जाती...? इतनी कमज़ोर तो वह कभी भी नहीं थी, क्या प्यार आदमी को इतना कमज़ोर बना देता है? ऐसा क्या हुआ है जो उसकी दुनया केवल जुबिन के इर्दगिर्द ही आकर सिमट गई है? जितना सोचती, उतना ही इस भंवर में उलझती जाती और निकलने कोई रास्ता नहीं दिखाई देता. 

इसी उहापोह में एक और साल बीत गया. जुबिन प्रमोशन की कतार में था. व्यस्त से व्यस्ततम होता जा रहा था. ह़फ्ते में बमुश्क़िल दो बार बात होती. माही ने जतिन को स्कूल में दाख़िला दिला दिया था. अब उसके पास काफ़ी समय था...कुछ काम शुरू किया जा सकता है, इस पर सोच-विचार कर ही रही थी कि अवसर घर चला आया. सुहैल जो उसका कॉलेज मेट था, कम्प्यूटर ऐप्लिकेशन का एक स्टार्टअप शुरू करना चाहता था और उसके लिए माही की मदद चाहता था. माही पहले तो हिचकिचाई. उसे पढ़ाई छोड़े आठ साल हो चुके थे...क्या उससे हो पाएगा? मगर सुहैल को पूरा विश्वास था कि माही थोड़ी-सी तैयारी के बाद इस काम को सफलता से कर पाएगी.

ईश्वर का नाम लेकर माही ने वापस पढ़ना-लिखना शुरू किया. उनका लक्ष्य स्मार्ट टच तकनीक पर आधारित ऐसे उत्पाद विकसित करने का था, जिसका उपयोग लोग अपने घरों में सुरक्षा की दृष्टि से कर सकें. माही और सुहैल ने कुछ विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में तकनीक का अध्ययन करना शुरू किया. जैसे-जैसे दृष्टि स्पष्ट होती गई, माही का आत्मविश्वास वापस आने लगा. उसे लग रहा था मानो उसके जीवन में लंबी अंधेरी रात के बाद अब सूर्योदय हुआ है. कुछ ही समय में उसने जुबिन के पीछे पागल होती, भावुक माही को परदे के पीछे ठेल दिया था और अब सामने थी कॉलेज की पुरानी माही, कुछ करने के उत्साह से भरी, जिजीविषा से भरपूर...

उत्साह से भरकर उसने जुबिन को अपने नए काम के बारे में बताया. उसने छूटते ही कहा, ठीक है, करती रहो छोटे-मोटे काम, तुम्हारा मन लगा रहेगा और मैं भी यहां शांति से काम कर सकूंगा...बच्चों का ध्यान रखना मगर. माही को बुरा लगा उसके इतने ठंडे जवाब पर, मगर उसने अब सब भूलकर आगे बढ़ने की ठान ली थी. अब माही का अधिकाधिक समय काम में ही बीतता था अत: उसने मां-पापा को अपने पास बुला लिया. उनके आने से उसके लिए निश्चिंत होकर अपने काम में ध्यान देना आसान हो गया.
उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने अपना पहला सुरक्षा उत्पाद बनाया. एक बड़े समारोह में इसका प्रदर्शन रखा गया. इस उत्पाद को लोगों का अच्छा प्रतिसाद मिला. माही और सुहैल आगे कुछ सोचते, उससे पहले ही एक बड़ी कंपनी ने उनकी कंपनी में बड़ा निवेश करने का प्रस्ताव दिया. यह प्रस्ताव इतना बड़ा था कि जल्दी ही समाचारों की सुर्ख़ियों में छा गया और यहां-वहां से बधाई के दौर शुरू हो गए. माही और सुहैल की ख़ुशी की सीमा न थी.

उसी रात जुबिन का फ़ोन घनघनाया. माही को यह अपेक्षित था, मगर उसमें आज न तो वैसी व्यग्रता थी न ही वैसा उल्लास. उसे अंदाज़ा था जुबिन की प्रतिक्रिया का. उसने शांत आवाज़ में कहा,‘‘बोलो जुबिन. कैसे याद किया?’’

‘‘याद किया मतलब? अपनी पत्नी को याद नहीं करूंगा क्या? और हां, आज ख़बर मिली सुहैल की कंपनी की...बढ़िया है.’’

‘‘सुहैल की नहीं, मेरी और सुहैल की कंपनी की जुबिन...’’ उसने सुधार किया.

‘‘अरे, तुम इसमें मत उलझो अब, यूं भी मेरा प्रमोशन हो गया है और एक दो महीने में तुम लोगों के वीज़ा की प्रक्रिया चालू कर दूंगा मैं...’’ 

‘‘माना कि तुम्हें हारने की आदत नहीं है, मगर इसके लिए मैं हारने की आदत डाल लूं, ये नहीं होगा. हर बार तुम नहीं जीतोगे जुबिन, इसबार मेरी बारी है,’’ माही का स्वर तीखा हो चला था.
‘‘क्या मतलब?’’ जुबिन अचकचाया था.

‘‘मतलब यह कि जब मुझे तुम्हारी बहुत ज़रूरत थी, तब तुम मेरे साथ नहीं थे जुबिन. मैं वहां आना चाहती थी, तुम्हारे साथ रहना चाहती थी... मगर अब मेरा मन बदल गया है.’’ माही ने स्पष्ट शब्दों में कहा.
‘‘क्या? होश में तो हो तुम?’’ जुबिन के स्वर में उग्रता थी.

‘‘हां जुबिन, होश आ गया है. अब इस शहर में मेरी अपनी पहचान है, अपना काम है, अपना अस्तित्व है...अब मैं अमेरिका नहीं आना चाहती. बार-बार अपनी पहचान खोना मेरे लिए मुमक़िन नहीं है.’’
‘‘और मेरे बारे में सोचा? मैं कैसे रहूंगा तुम्हारे और बच्चों के बिना?’’

‘‘वैसे ही, जैसे अब तक रहते आए हो और वैसे ही जैसे हम लोग इतने साल रहें...और फिर मन न लगे तो वापसी के रास्ते तो खुले ही हैं न जुबिन,’’ माही ने सर्द आवाज़ में कहा और फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया. दोनों बच्चों को कलेजे से सटाते हुए उसे आज बेहद राहत का एहसास हो रहा था.

मंगलवार, 3 जुलाई 2018

👉 समाज में रेप की घटनाये

मैने 30 जून को अंग प्रदर्शन  और छोटे कपड़े पहनने को लेकर एक पोस्ट की थी आप सभी ने उस को बहुत सरहाया था और 1 या 2 भाई और 1 या 2 दीदी ने कहा की जो छोटी बच्चियो का रेप होता है क्या वो अंग प्रदर्शन करती है। मैंने तब भी कहा था की जो समाज में अंग प्रदर्शन हो रहा है उस की देख कर समाज में रेप की घटनाये बढ़ रही है आज उस का एक सबूत देता हूँ।

आज कानपुर में एक घटना हुई है:------

कानपुरः मोबाइल पर पॉर्न देख 4 बच्चों ने किया 4 साल की बच्ची का रेप

उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक अजीब मामला सामने आया है। यहां चार साल की बच्ची के साथ रेप की घटना सामने आई है। हैरानी वाली बात यह है कि रेप का आरोप 6 से 10 साल की उम्र वाले चार बच्चों पर लगा है और बच्चों ने यह अश्लील हरकतें कथित रूप से पॉर्न विडियो से सीखीं। फिलहाल, पुलिस ने सभी चार बच्चों के खिलाफ पॉक्सो ऐक्ट के तहत केस दर्ज कर लिया है। उनसे पूछताछ की जा रही है। 

चार साल की बच्ची के साथ बच्चों के रेप किए जाने का यह मामला जिले के महाराजपुर थाना क्षेत्र का है। थाना प्रभारी राकेश मौर्य ने बताया कि घटना 30 जून शनिवार की है। बच्ची के पिता की ओर से इस मामले में 2 जुलाई को प्राथमिकी दर्ज कराई गई। 

बदहवास हालत में खेत में मिली 
बच्ची के पिता ने दी गई तहरीर में कहा है कि उनकी बच्ची बदहवास हालत में खेत में मिली थी। जब होश में आई और आपबीती बयां की तो लोग दंग रह गए। बच्ची ने कहा कि उसके साथ गंदी हरकत की गई।

मौर्य ने बताया कि एक आरोपी 12 वर्ष का है जबकि अन्य तीन की उम्र छह से 10 साल के बीच है। बताया गया कि बच्ची बदहवास हालत में खेत में पाई गई और जब होश में आई और आपबीती बयां की तो लोग दंग रह गए। सभी आरोपियों को को बाल न्यायालय के समक्ष पेश करने के बाद बाल सुधार गृह भेज दिया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सभी ने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को कबूल लिया है। 

आरोपियों को बाल सुधार गृह भेजा 
पुलिस ने बताया कि सभी आरोपियों को बाल न्यायालय के समक्ष पेश करने के बाद बाल सुधार गृह भेज दिया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सभी ने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को कबूल लिया है। 

बच्ची ने घटना के बारे में जब परिवार वालों को बताया तो पड़ोसियों ने एफआईआर दर्ज नहीं कराने की सलाह दी थी लेकिन पिता ने हिम्मत दिखाई और पुलिस को सूचना दी। मौर्य ने बताया कि प्रकरण में आगे जांच की जा रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह भी कहा जा रहा है कि इन बच्चों ने रेप से पहले पॉर्न फिल्में देखीं और मासूम बच्ची के साथ वही चीजें दोहराने की कोशिश कीं। 

पुलिस ने बताया कि जांच में पता चला कि बच्चे मोबाइल में पॉर्न विडियो देखते थे। उसी से उन्हें सेक्स के बारे में जानकारी हुई। मोबाइल पर देखने के बाद उन्होंने वैसी ही हरकत बच्ची के साथ की। 

शनिवार, 30 जून 2018

👉 अश्लीलता किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं

मुझे ज्ञान देने वालो के लिए आज एक मोका फिर से

लड़कियो के नग्न घूमने पर जो लोग या स्त्रियां ये कहते कि कपडे नहीं सोच बदलो....
उन लोगो से मेरे कुछ प्रश्न है???

1) हम सोच क्यों बदले?? सोच बदलने की नौबत आखिर आ ही क्यों रही है??? आपने लोगो की सोच का ठेका लिया है क्या??

2) आप उन लड़कियो की सोच का आकलन क्यों नहीं करते?? उसने क्या सोचकर ऐसे कपडे पहने की उसके स्तन पीठ जांघे इत्यादि सब दिखाई दे रहा है....इन कपड़ो के पीछे उसकी सोच क्या थी?? एक निर्लज्ज लड़की चाहती है की पूरा पुरुष समाज उसे देखे,वही एक सभ्य लड़की बिलकुल पसंद नहीं करेगी की कोई उस देखे

3) अगर सोच बदलना ही है तो क्यों न हर बात को लेकर बदली जाए??? 
आपको कोई अपनी बीच वाली ऊँगली का इशारा करे तो आप उसे गलत मत मानिए…… सोच बदलिये.. वैसे भी ऊँगली में तो कोई बुराई नहीं होती…. 
आपको कोई गाली बके तो उसे गाली मत मानिए… उसे प्रेम सूचक शब्द समझिये…..
हत्या ,डकैती, चोरी, बलात्कार, आतंकवाद इत्यादि सबको लेकर सोच बदली जाये…
सिर्फ नग्नता को लेकर ही क्यों????

4) कुछ लड़किया कहती है कि हम क्या पहनेगे ये हम तय करेंगे....पुरुष नहीं.....
जी बहुत अच्छी बात है.....आप ही तय करे....लेकिन हम पुरुष भी किस लड़की का सम्मान/मदद करेंगे ये भी हम तय करेंगे, स्त्रीया नहीं.... और हम किसी का सम्मान नहीं करेंगे इसका अर्थ ये नहीं कि हम उसका अपमान करेंगे

5) फिर कुछ विवेकहीन लड़किया कहती है कि हमें आज़ादी है अपनी ज़िन्दगी जीने की.....
जी बिल्कुल आज़ादी है, ऐसी आज़ादी सबको मिले, व्यक्ति को चरस गंजा ड्रग्स ब्राउन शुगर लेने की आज़ादी हो,गाय भैंस का मांस खाने की आज़ादी हो, वैश्यालय खोलने की आज़ादी हो, पोर्न फ़िल्म बनाने की आज़ादी हो... हर तरफ से व्यक्ति को आज़ादी हो।

6) फिर कुछ नास्तिक स्त्रीया कुतर्क देती है की जब नग्न काली की पूजा भारत में होती है तो फिर हम औरतो से क्या समस्या है??

पहली बात ये की काली से तुलना ही गलत है।। और उस माँ काली का साक्षात्कार जिसने भी किया उसने उसे लाल साडी में ही देखा....माँ काली तो शराब भी पीती है....तो क्या तुम बेवड़ी लड़कियो की हम पूजा करे?? काली तो दुखो का नाश करती है....तुम लड़किया तो समाज में समस्या जन्म देती हो...... और काली से ही तुलना क्यों??? सीता माता या पार्वती माता से क्यों नहीं?? क्यों न हम पुरुष भी काल भैरव से तुलना करे जो रोज कई लीटर शराब पी जाते है???? शनिदेव से तुलना करे जिन्होंने अपनी सौतेली माँ की टांग तोड़ दी थी।

7) लड़को को संस्कारो का पाठ पढ़ाने वाला कुंठित स्त्री समुदाय क्या इस बात का उत्तर देगा की क्या भारतीय परम्परा में ये बात शोभा देती है की एक लड़की अपने भाई या पिता के आगे अपने निजी अंगो का प्रदर्शन बेशर्मी से करे??? क्या ये लड़किया पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से देखती है ??? जब ये खुद पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से नहीं देखती तो फिर खुद किस अधिकार से ये कहती है की "हमें माँ/बहन की नज़र से देखो"

कौन सी माँ बहन अपने भाई बेटे के आगे नंगी होती है??? भारत में तो ऐसा कभी नहीं होता था....

सत्य ये है की अश्लीलता को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता। ये कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधो की तरफ ले जाने वाली एक नशे की दूकान है। और इसका उत्पादन स्त्री समुदाय करता है।

मष्तिष्क विज्ञान के अनुसार 4 तरह के नशो में एक नशा अश्लीलता (सेक्स) भी है।

चाणक्य ने चाणक्य सूत्र में सेक्स को सबसे बड़ा नशा और बीमारी बताया है।।

अगर ये नग्नता आधुनिकता का प्रतीक है तो फिर पूरा नग्न होकर स्त्रीया अत्याधुनिकता का परिचय क्यों नहीं देती?

गली गली और हर मोहल्ले में जिस तरह शराब की दुकान खोल देने पर बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है उसी तरह अश्लीलता समाज में यौन अपराधो को जन्म देती है।।

रविवार, 27 मई 2018

"मोदी जी" आप को "शर्म" आनी चाहिए


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कि आपने "अपने परिवार" और अपने भाइयों को अपनी "कैबिनेट" में या "राजनीति" में लाने का ज़रा भी "प्रयास नहीं किया" आप को इस बात के लिए भी "शर्म" आनी चाहिए कि आप के "भाई" साधारण नागरिक का जीवन जी रहे हैं और आप की "भतीजी गरीबी" में "मर गई"  !!

"मोदी जी" आप को "शासन चलाने" की कला "मुलायम सिंह" से "सीखनी" चाहिए जहाँ "सैफई" के उनके परिवार के करीब "36 सदस्य" आज "उत्तर प्रदेश" में "ब्लाक प्रमुख" के पदों पर सुशोभित हैं वही "मुलायम सिंह" जिन्हें "दो वक़्त की रोटी" भी मुश्किल से नसीब होती थी आज "करोडपति" ही नहीं "अरबपति" हैं  !!


"30 वर्ष" पहले "बहन मायावती" का "पूरा परिवार" दिल्ली में "एक कमरे" में रहा करता था, आज "मायावती के भाई" का "बंगला" सुन्दरता में "ताज महल" को भी "मात" दे रहा है  !!

"देवगोडा" अपने "पोते" को "100 करोड़" की "बहु भाषाई फिल्म" में बतौर "सुपर हीरो" उतार रहे हैं, "कर्नाटक" के "हासन जिले" में "आधी से ज्यादा" खेती की ज़मीन "देवगोडा परिवार" की है  !!

"कर्नाटक" के मुख्यमंत्री "सिद्धारमैया" का "बेटा" जो  "सरकारी अस्पताल" में "मुख्य चिकित्सक" है और "छोटा पुत्र" जिसका अभी हाल में "निधन" हुआ है, उसका "ब्रुसेल्स" में बड़ा कारोबार है, और उसके बच्चे "जर्मनी" में "पढ़" रहे हैं

"सोनिया का दामाद" जो कि "मुरादाबाद" में "पुराने पीतल" के आइटम "बेचा" करता था, आज "पांच सितारा होटल" का "मालिक" है, उसका "शिमला" में एक "महल" है और "लक्ज़री कारों" का "मालिक" है  !!

जबकि "आप की माँ" आज भी "ऑटोरिक्शा" में चलती है और आप के "भाई ब्लू कालर जॉब" यानि मेंहनत "मजदूरी" कर रहे हैं और आप की एक "भतीजी" शिक्षामित्र है (आप उसे टीचर की नौकरी भी नहीं दिलवा पाए ) जो कि दूसरो के "कपडे सिलती" है तथा "ट्यूशन पढ़ा" कर अपनी "जीविका" चला रही है !!

"मोदी जी" देश बहुत "शर्मिंदा" है कि आप "प्रधानमंत्री" होते हुए भी अपने "भाइयों" को "MLA या MP" का "टिकट नहीं दिलवा पाए" आप "चाहते" तो अपनी "बहनों" को "राज्य सभा" में "MP" बनवा सकते थे और आप के "जीजा", "जिला स्तर" के "चुनाव लड़" कर "ब्लाक प्रमुख" तो बन ही सकते थे, आप "सीखने" में बहुत "सुस्त" हैं "15 वर्ष" तक "गुजरात" में और "प्रधानमंत्री" का "3/4 कार्यकाल", "दिल्ली" में बिताने के बाद भी आप "लालू, मुलायम, सोनिया गाँधी, बहन मायावती" से कुछ भी "नहीं सीखे" और अपनी "रसोई का खर्च" भी "खुद वहन" कर रहे हैं  !!
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उपरोक्त बातो से हमे "शर्मिंदा" तो होना पड़ा लेकिन उतना ही "गर्व" भी है 

कि हमने अपने जीवन का "वोट", "2014" में एक बहुत ही "ईमानदार और देशभक्त इंसान" को वोट दिया "हम सभी गर्व" करते है की हमे अपने जीवन में आप जैसे देशभक्त का मार्गदर्शन मिला सच में "ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठ" की "पराकाष्ठा" है 

प्रश्न - विनाश काले विपरीत पूजा क्या है?

उत्तर - हिन्दुओं द्वारा परमात्मा को भूलकर पीर, फकीर, साई की पूजा की जा रही है, पिशाच संस्कृति के राक्षसों को हिंदू मंदिरों व घरों में स्थापित किया जा रहा है, पूजा जा रहा है, फिर भी पूछते हो कि विनाश काले विपरीत पूजा क्या है?

कब्र या मजार मरे हुए आदमी की होती है | हिंदू समाज में अगर कोई व्यक्ति मरने वाले के पीछे चार कदम भी रखता है तो उसे घर आकर स्नान करना पडता है| फिर हम मजार पर चढ़ा हुआ प्रसाद बच्चों को क्यों खिलाते है? क्या वह अपवित्र नहीं है? 

सभी कब्र उन मुसलमानों की हैं जो हमारे पूर्वजों से लड़ते हुए मारे गए थे, इस हालत में उनकी कब्रों पर जाकर मन्नत मांगना क्या हमारे उन वीर पूर्वजों का अपमान नहीं हैं जिन्होंने अपने धर्म की रक्षा करते हुए खुशी- खुशी अपने प्राणों को बलि वेदी पर समर्पित कर दिया था?

बहराइच उत्तर प्रदेश में गाजी मियाँ की मजार है जिसको पूजने के लिए देश के कोने कोने से हिंदू आते है|

इतिहास का थोडा सा भी जानकार व्यक्ति जानता है कि महमूद गजनवी के उत्तर भारत को बुरी तरह से लूटने बर्बाद करने के बाद सन् 1030 में उसके भांजे सालार गाजी ने भारत को दारूल इस्लाम बनाने के उद्देश्य से भारत पर आक्रमण किया| सिन्ध, पंजाब, हरियाणा को रौंदता हुआ उत्तर प्रदेश के बहराइच तक जा पहुँचा| 

रास्ते में लाखों हिंदुओं का कत्लेआम किया, लाखो हिंदुओं को इस्लाम में धर्मांतरित किया और लाखों हिंदू ओरतों के बलात्कार हुए, हजारों मंदिरों- गुरुकुलों का विध्वंस कर दिया गया तथा इस्लाम के जिहाद की आंधी तेज चलने लगी|

ऐसे संकट के समय में बहराइच के राजा सुहेल देव पासी ने गाजी मियाँ की सेना का सामना किया जिसमें सालार गाजी मारा गया| 
सलाह गाजी के सेनापति ने वही उसकी कब्र बनवा दी| आज हिंदू उसे अपने कुल देवता मानकर पूजते है| अगर गाजी जिंदा रहता तो वह हिंदुओं का ओर कत्लेआम करता|

क्या हिन्दुओं के ब्रह्मा, विष्णु, महेश, राम, कृष्ण, दुर्गा अथवा तैंतीस कोटि देवी- देवता शक्तिहीन हो चुकें हैं, क्या उनमें एक भी ऐसा देवता नहीं जिसे हमारे मूर्त हिन्दू अपना देवता मान सकें| हिन्दुओं के लिए शव (कब्र) पूजा का अर्थ है प्रेत योनि की दुर्गति| किसी भी शव की पूजा उसे पूजने वाले की कभी सदगति नहीं हो सकती| 

हिंदू समाज को इन मजार, कब्रों, पीरों की पूजा बंद करनी चाहिए|

उस परमपिता परमेश्वर की पूजा करनी चाहिए जो सभी के दिलों में बसता है|

धन्यवाद 👏

गुरुवार, 8 मार्च 2018

👉 नीलामे दो दीनार

नीलामे दो दीनार. कडवा है पर सत्य है । 
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...नीलामे दो दीनार..... "जबरदस्ती का भाईचारा ढोते हिंदुओं अपना इतिहास तो देखो................. ...
समयकाल.. ईसा के बाद की ग्यारहवीं सदी..

भारत अपनी पश्चिमोत्तर सीमा पर अभी-अभी ही राजा जयपाल की पराजय हुई थी ...

इस पराजय के तुरंत पश्चात का अफगानिस्तान के एक शहर..... गजनी का एक बाज़ार..!

ऊंचे से एक चबूतरे पर खड़ी कम उम्र की सैंकड़ों हिन्दु स्त्रियों की भीड .. जिनके सामने हज़ारों वहशी से दीखते बदसूरत किस्म के लोगों की भीड़ लगी हुई थी.. जिनमें अधिकतर अधेड़ या उम्र के उससे अगले दौर में थे.. !

कम उम्र की उन स्त्रियों की स्थिति देखने से ही अत्यंत दयनीय प्रतीत हो रही थी.. उनमें अधिकाँश के गालों पर आंसुओं की सूखी लकीरें खिंची हुई थी.. मानो आसुओं को स्याही बना कर हाल ही में उनके द्वारा झेले गए भीषण दौर की कथा प्रारब्ध ने उनके कोमल गालों पर लिखने का प्रयास किया हो.. !

एक बात जो उन सबमें समान थी... किसी के भी शरीर पर वस्त्र का एक छोटा सा टुकड़ा नाम को भी नहीं था.. सभी सम्पूर्ण निर्वसना ..... !

सभी के पैरों में छाले थे.. मानो सैंकड़ों मील की दूरी पैदल तय की हो.. ! सामने खड़े वहशियों की भीड़ अपनी वासनामयी आँखों से उनके अंगों की नाप-जोख कर रही थी.. ! कुछ मनबढ़ आंखों के स्थान पर हाथों का प्रयोग भी कर रहे थे.. !

सूनी आँखों से अजनबी शहर और अनजान लोगों की भीड़ को निहारती उन स्त्रियों के समक्ष हाथ में चाबुक लिए क्रूर चेहरे वाला घिनौने व्यक्तित्व का एक गंजा व्यक्ति खड़ा था.. मूंछ सफाचट.. बेतरतीब दाढ़ी उसकी प्रकृतिजन्य कुटिलता को चार चाँद लगा रही थी.. !
दो दीनार..... दो दीनार... दो दीनार...

हिन्दुओं की खूबसूरत औरतें.. शाही लडकियां.. कीमत सिर्फ दो दीनार.. 
ले जाओ.. ले जाओ.. बांदी बनाओ... एक लौंडी... सिर्फ दो दीनार..
दुख्तरे हिन्दोस्तां.. दो दीनार.. !
भारत की बेटी.. मोल सिर्फ दो दीनार.. !

उस स्थान पर मुसलमानों ने एक मीनार बना रखी है.. जिस पर लिखा है- 'दुख्तरे हिन्दोस्तान.. नीलामे दो दीनार..' अर्थात ये वो स्थान है... जहां हिन्दु औरतें दो-दो दीनार में नीलाम हुईं !

महमूद गजनवी हिन्दुओं के मुंह पर अफगानी जूता मारने.. उनको अपमानित करने के लिये अपने सत्रह हमलों में लगभग चार लाख हिन्दु स्त्रियों को पकड़ कर गजनी उठा ले गया.. घोड़ों के पीछे.. रस्सी से बांध कर..! महमूद गजनवी जब इन औरतों को गजनी ले जा रहा था.. तो वे अपने पिता.. भाई और पतियों से बुला-बुला कर बिलख-बिलख कर रो रही थीं.. अपनी रक्षा के लिए पुकार कर रही थी..! लेकिन करोडो हिन्दुओं के बीच से.. उनकी आँखों के सामने..वो निरीह स्त्रियाँ मुठ्ठी भर मुसलमान सैनिकों द्वारा घसीट कर भेड़ बकरियों की तरह ले जाई गई ! रोती बिलखती इन लाखों हिन्दु नारियों को बचाने न उनके पिता बढे.. न पति उठे.. न भाई और न ही इस विशाल भारत के करोड़ो समान्य हिन्दु ...

महमूद गजनी ने इन हिन्दु लड़कियों और औरतों को ले जा कर गजनवी के बाजार में समान की तरह बेच ड़ाला ! विश्व के किसी धर्म के साथ ऐसा अपमान नही हुआ जैसा हिन्दुओं के साथ ! और ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि इन्होंने तलवार छोड़ दी.. ! सोचते हैं कि जब अत्याचार बढ़ेगा तब भगवान स्वयं उन्हें बचाने आयेंगे.. !
क्यों... ????????????

हिन्दुओं को समझ लेना चाहिये कि भगवान भी अव्यवहारिक अहिंसा व अतिसहिष्णुता को नपुसंकता करार देते हैं !
ये तो अब भी नहीं बदले हैं....
तुम्हारी तैयारी क्या है.. ?

मंगलवार, 30 जनवरी 2018

👉 नागार्जुन ने यह कविता आपातकाल के प्रतिवाद में लिखी थी।

ख़ूब तनी हो, ख़ूब अड़ी हो, ख़ूब लड़ी हो

प्रजातंत्र को कौन पूछता, तुम्हीं बड़ी हो


डर के मारे न्यायपालिका काँप गई है

वो बेचारी अगली गति-विधि भाँप गई है

देश बड़ा है, लोकतंत्र है सिक्का खोटा

तुम्हीं बड़ी हो, संविधान है तुम से छोटा


तुम से छोटा राष्ट्र हिन्द का, तुम्हीं बड़ी हो

खूब तनी हो,खूब अड़ी हो,खूब लड़ी हो


गांधी-नेहरू तुम से दोनों हुए उजागर

तुम्हें चाहते सारी दुनिया के नटनागर

रूस तुम्हें ताक़त देगा, अमरीका पैसा

तुम्हें पता है, किससे सौदा होगा कैसा


ब्रेझनेव के सिवा तुम्हारा नहीं सहारा

कौन सहेगा धौंस तुम्हारी, मान तुम्हारा

हल्दी. धनिया, मिर्च, प्याज सब तो लेती हो

याद करो औरों को तुम क्या-क्या देती हो


मौज, मज़ा, तिकड़म, खुदगर्जी, डाह, शरारत

बेईमानी, दगा, झूठ की चली तिजारत

मलका हो तुम ठगों-उचक्कों के गिरोह में

जिद्दी हो, बस, डूबी हो आकण्ठ मोह में


यह कमज़ोरी ही तुमको अब ले डूबेगी

आज नहीं तो कल सारी जनता ऊबेगी

लाभ-लोभ की पुतली हो, छलिया माई हो

मस्तानों की माँ हो, गुण्डों की धाई हो


सुदृढ़ प्रशासन का मतलब है प्रबल पिटाई

सुदृढ़ प्रशासन का मतलब है 'इन्द्रा' माई

बन्दूकें ही हुईं आज माध्यम शासन का

गोली ही पर्याय बन गई है राशन का


शिक्षा केन्द्र बनेंगे अब तो फौजी अड्डे

हुकुम चलाएँगे ताशों के तीन तिगड्डे

बेगम होगी, इर्द-गिर्द बस गूल्लू होंगे

मोर न होगा, हंस न होगा, उल्लू होंगे

👉 एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई

🏳️ध्यान से पढ़ियेगा👇      〰️〰️〰️〰️〰️ एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई कि  ये फिल्म अभिनेता (या अभिनेत्री) ऐसा क्या करते हैं कि इनको एक फिल्म...